लखनऊ. गंगा-जमुनी तहजीब की जिन्दा मिसाल हरीश चन्द्र धानुक का निधन हो गया. मोहर्रम के दिनों में हरीश चन्द्र धानुक पुराने लखनऊ की सड़कों पर मातम करते हुए नज़र आते थे. बशीरतगंज इलाके में रहने वाले हरीश चन्द्र धानुक के घर से निकलने वाला ताजिया पूरे देश में मशहूर है. इसे किशनू खलीफा के ताजिये के नाम से जाना जाता है. हरीश चन्द्र धानुक के घर से यह ताजिया 1880 में निकलना शुरू हुआ था जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी निकालने का सिलसिला चलता आ रहा है.
हरीश चन्द्र धानुक ने ताज़ियेदार सेवक संघ बनाया था. इस संघ में हिन्दू ताज़ियेदारों को जोड़ा था. वह खुद इस संगठन के अध्यक्ष थे. हरीश चन्द्र धानुक रेलवे में जूनियर इंजीनियर थे, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते थे.
बहुत साधारण वेशभूषा में वह मोहर्रम की मजलिसें करने आते थे और सबसे आगे बैठते थे. ज़्यादातर धर्मगुरु भी उन्हें पहचानते थे. मोहर्रम के दौरान सफाई और स्ट्रीट लाईट की समस्याओं पर उनका बड़ा ध्यान रहता था. जहाँ समस्या नज़र आती वह खुद जाकर सम्बंधित विभाग में शिकायत दर्ज करा आते थे.
उनके निधन से गंगा-जमुनी तहजीब का पिलर ढह गया है. पुराने शहर में जिसने भी सुना वह दुखी नज़र आया.