नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में बेहत कम दिन का वक्त रह गया है। इस बीच वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पिंकी आनंद सहित देश के 600 से अधिक वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को एक लेटर लिखा है। अब सवाल है कि लोकसभा चुनाव से पहले क्यों लेटर लिखा गया है। इसको लेकर पता चला है कि न्यायपालिका को लेकर ये पत्र लिखा गया है। इस लेटर पर गौर करे तो इसमें कहा गया है कि इस खास ग्रुप का काम अदालती फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव डालना है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जिनसे या तो नेता जुड़े हुए हैं या फिर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 500 से ज्यादा वरिष्ठ वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका खतरे में है और इसे राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव से बचाना होगा।
वकीलों ने लिखा कि न्यायिक अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। हम वो लोग हैं, जो कानून को कायम रखने के लिए काम करते हैं। हमारा यह मानना है कि हमें अदालतों के लिए खड़ा होना होगा। अब साथ आने और आवाज उठाने का वक्त है। उनके खिलाफ बोलने का वक्त है जो छिपकर वार कर रहे हैं। हमें निश्चित करना होगा कि अदालतें लोकतंत्र का स्तंभ बनी रहें। इन सोचे-समझे हमलों का उन पर कोई असर ना पड़े।
26 मार्च को लिखी गई चिट्ठी
‘रिस्पेक्टेड सर,हम सभी आपके साथ अपनी बड़ी चिंता साझा कर रहे हैं। एक विशेष समूह न्यायपालिका पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। यह ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडा के तहत उथले आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।
उनकी इन हरकतों से न्यायपालिका की पहचान बतानेवाला सौहार्द्र और विश्वास का वातावरण खराब हो रहा है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हैं, खासतौर से उन केसेस में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है। ये हथकंडे हमारी अदालतों को नुकसान पहुंचा रही हैं और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा हैं।
ये विशेष समूह कई तरीके से काम करता है। ये हमारी अदालतों के स्वर्णिम अतीत का हवाला देते हैं और आज की घटनाओं से तुलना करते हैं। ये महज जानबूझकर दिए गए बयान हैं ताकि फैसलों को प्रभावित किया जा सके और राजनीतिक फायदे के लिए अदालतों को संकट में डाला जा सके।
यह देखकर परेशानी होती है कि कुछ वकील दिन में किसी राजनेता का केस लड़ते हैं और रात में वो मीडिया में चले जाते हैं, ताकि फैसले को प्रभावित किया जा सके। ये बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी गढ़ रहे हैं। यह हरकत ना केवल हमारी अदालतों का असम्मान है, बल्कि मानहानि भी है। यह हमारी अदालतों की गरिमा पर किया गया हमला है।
माननीय न्यायाधीशों पर भी हमले किए जा रहे हैं। उनके बारे में झूठी बातें बोली जा रही हैं। ये इस हद तक नीचे उतर आए हैं कि हमारी अदालतों से उन देशों की तुलना कर रहे हैं, जहां कानून नाम की चीज नहीं है। हमारी न्यायपालिका पर अन्यायपूर्ण कार्यवाही का आरोप लगाया जा रहा है।”
2 पॉइंट्स का विशेष जिक्र
1. राजनेताओं का दोहरा चरित्र
ये देखकर हैरत होती है कि राजनेता किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और फिर अदालतों में उन्हें बचाने पहुंच जाते हैं। अगर अदालत का फैसला उनके पक्ष में नहीं जाता है तो वे कोर्ट के भीतर ही कोर्ट की आलोचना करते हैं और फिर बाद में मीडिया में पहुंच जाते हैं। आम आदमी के मन में हमारे लिए जो सम्मान है, उसके लिए ये दोहरा चरित्र खतरा है।
2. पीठ पीछे हमला और झूठी जानकारियां
कुछ लोग अपने केस से जुड़े न्यायाधीशों के बारे में झूठी जानकारियां सोशल मीडिया पर फैलाते हैं। ऐसा वे अपने केस में अपने ढंग से फैसले का दबाव बनाने के लिए करते हैं। ये हमारी अदालतों की पारदर्शिता के लिए खतरा है और कानूनी उसूलों पर हमला है। इनकी टाइमिंग भी तय होती है। जब देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, तब ये ऐसा कर रहे हैं। हमने यह चीज 2018-19 में भी देखी थी।