नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों की ओर से कोरोना के मरीजों से लिए जाने वाले बिल पर लगाम लगाने के लिए दायर याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को सरकार के पास जाने को कहा। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मसले पर कोर्ट आदेश नहीं दे सकता है।
वकील अमित साहनी ने दायर याचिका में कहा कि कोरोना के मरीजों से निजी अस्पताल इलाज के लिए काफी ज्यादा पैसा ले रहे हैं। याचिका में कहा गया था कि जिन मरीजों को इलाज की जरूरत है और उन्हें आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत है उन्हें पैसे की कमी की वजह से अस्पताल में एडमिट करने से मना नहीं किया जाए।
याचिका में कहा गया कि एक निजी अस्पताल ने कोरोना के मरीजों के लिए फीस संबंधी सर्कुलर जारी किया है। इसमें दो से तीन बेड वाले के लिए प्रतिदिन 40 हजार रुपये, एक कमरे या निजी कमरे के लिए 50 हजार रुपये प्रतिदिन, आईसीयू में जाने पर प्रतिदिन 75 हजार रुपये, वेंटिलेटर वाले आईसीयू के लिए प्रतिदिन एक लाख रुपये प्रतिदिन का खर्च बताया गया है।
अस्पताल के मुताबिक कोरोना का मरीज अस्पताल में चाहे जितना दिन रहे लेकिन कम से कम उससे तीन लाख रुपये लिए जाएंगे। मरीज से दैनिक आधार पर बिल वसूला जाएगा। ऐसे में उसे तीन लाख रुपये से ज्यादा भी देने पड़ सकते हैं। याचिका में कहा गया था कि अस्पताल के मुताबिक कोरोना के मरीज को दो से तीन बेड वाले कमरे में भर्ती होने के पहले चार लाख रुपये जमा करने होंगे। अगर वो एक निजी कमरा लेना चाहता है तो उसे पांच लाख रुपये जमा करना होगा।
अगर उसे आईसीयू में भर्ती करना है तो उसे आठ लाख रुपये जमा करने होंगे। अस्पताल के मुताबिक इस पैकेज में रहने, खाने, जांच, दवाइयां और अन्य चार्ज भी शामिल होंगे। याचिका में कहा गया था कि दिल्ली सरकार ये सुनिश्चित करे कि निजी अस्पताल मरीजों से अनाप-शनाप बिल नहीं वसूलें और पैसे की कमी की वजह से किसी मरीज को अस्पताल में एडमिट करने से मना नहीं किया जाए।