बीते कुछ सालों में महिला सुरक्षा की बात अक्सर राजनेताओं की जुबान से सुनने को मिलती रही है लेकिन ये सिर्फ बातें बनकर रह गया है।
जिस महिला सुरक्षा की बात हमारे राजनेता करते हैं शायद मौजूदा दौर में दम तोड़ता हुआ नजर आ रहा है। समाज में अब महिला अपराध चरम पर जा पहुंचा है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार कई कदम उठाती है लेकिन इसके बावजूद आज की नारी कही भी सुरक्षित नजर नहीं आ रही है।
आलम तो ये हैं कि आज की तारीख में अगर कोई बेटी पैदा होती है तो उस घर में खुशी के दीये नहीं जलते हैं। आप सोच रहे होंगे कि बेटी पैदा होना आज भी अभिशाप माना जाता है तो गलत सोच रहे हैं।
दरअसल इन मां-बाप को बेटी पैदा होने पर खुशी होती है लेकिन उसकी सुरक्षा को लेकर हमेशा उनके मन में एक डर सताता रहता है। समाज में इन भूखे भेडिय़े से कैसे कोई अपनी बेटी को बचााये, इसको लेकर पूरी जिंदगी वो सोचता रहता है। जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती है, वैसे-वैसे मां-बाप को उसकी सुरक्षा की चिंता भी सताने लगती है।
इसका ताजा उदाहरण है कोलकाता में डॉक्टर से दरिंदगी। दरिंदगी ऐसी जिसे बयां करने से भी डर लगता है। पहले रेप और उसे मौत की नींद सुला दिया गया। ये घटना इतनी ज्यादा भयानक थी कि पूरे देश को झकझोर के रख दिया। डॉक्टरों का गुस्सा चरम पर है और पूरे देश में इस वक्त प्रदर्शन चल रहा है।
डॉक्टरों की हड़ताल से आम आदमी काफी परेशान है क्योंकि उसे समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। डॉक्टर हड़ताल पर बैठे हैं और अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। बेटी के साथ रेप और उसकी हत्या के बाद से माता-पिता न्याय की गुहार लगा रहे हैं। जांच चल रही है लेकिन अभी तक नतीजे पर नहीं पहुंची है।
हाल के दिनों में यौन शोषण से लेकर रेप के मामले एकाएक बढ़ गए है। पुलिसिया तत्र इतना कमजोर हो चुका है वो इसे रोकने में पूरी तरह से विफल हो चुका है। एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर दिन 86 रेप हो रहे हैं। कुछ में केस दर्ज होता है जबकि कुछ मामले दब जाते हैं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में पर्याप्त वृद्धि का विवरण दिया गया है, जो 2020 में 3,71,503 मामलों से बढक़र 2022 में 4,45,256 मामले हो गए हैं। 2021 के 4,28,278 मामलों की तुलना में 2022 के आंकड़े डराने के लिए काफी है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रुरता’ (31.4 प्रतिशत), ‘महिलाओं का अपहरण और व्यपहरण’ (19.2प्रतिशत), ‘महिलाओं पर उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से हमला’ (18.7 प्रतिशत) और ‘बलात्कार’ (7.1 प्रतिशत) शामिल है। प्रति लाख महिला आबादी पर अपराध दर 2021 में 64.5 से बढक़र 2022 में 66.4 हो गई।
उल्लेखनीय है कि देश में दहेज निषेध अधिनियम के तहत 13,479 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 1,40,000 से अधिक मामले ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता ‘ (आईपीसी की धारा 498 ए) के अंतर्गत वर्गीकृत किए गए।आंकड़े देखने से साफ लग रहा है कि महिला अपराध रुकने का नाम नहीं ले रही
है। दूसरी तरफ सरकार भले महिला अपराध को लेकर गंभीर होने का दावा कर रही हो लेकिन फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इसके साथ ही मौजूदा हालात को देखते हुए महिला सुरक्षा की बात भी करना बेमानी होगा।