नई दिल्ली। एलओसी और एलएसी पर जमीनी सीमा विवाद के साथ-साथ अब हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान के बीच बन रहा गठजोड़ भारत के लिए नए खतरे के रूप में उभर रहा है। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दखल के बाद अब भारत यहां फाइटर जेट्स की अलग से स्क्वाड्रन बनाने पर काम कर रहा है। इसीलिए अब भारत के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत को बेसिन टेस्ट के बाद हिन्द महासागर में तैनात किये जाने की योजना है। इस एयरक्राफ्ट कैरियर में 26 फाइटर एयरक्राफ्ट और 10 हेलीकॉप्टर रखे जा सकते हैं।
वैसे तो भारत की समुद्री सेना अपनी क्षमताओं के मामले में चीन और पाकिस्तान दोनों को हिन्द महासागर क्षेत्र में पछाड़ सकती है लेकिन समुद्री डोमेन में चीन-पाकिस्तान की इस उभरती हुई नई चुनौती को माकूल जवाब देने के लिए तैयार रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भारतीय नौसेना से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि समुद्र में चीन और पाकिस्तान की बढ़त रोकने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है।
पाकिस्तान ने मुंबई हमले के लिए नौकाओं से आतंकी भेजने के लिए समुद्र का ही इस्तेमाल किया था। इसलिए भारतीय नौसेना लंबी समुद्री सीमा और व्यापारिक हितों की सुरक्षा के लिए एक-एक कैरियर बैटल ग्रुप पूर्व और पश्चिम में रखना चाहती है। रूस से खरीदा गया एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य पहले से ही भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर कारवार (कर्नाटक) में तैनात है। इसीलिए भारतीय नौसेना आईएनएस विक्रांत को पूर्वी कमांड के केन्द्र पूर्वी समुद्र तट पर विशाखापट्टनम में रखना चाहती है।
आईएनएस विक्रांत का निर्माण फरवरी 2009 में कोचिन शिपयार्ड में शुरू हुआ था। इस एयरक्राफ्ट कैरियर में 26 फाइटर एयरक्राफ्ट और 10 हेलीकॉप्टर रखे जा सकते हैं। यह एक आधुनिक विमान वाहक पोत है जिसका वजन लगभग 40 हजार मीट्रिक टन है। इस विमानवाहक पोत को दो शाफ्टों पर मौजूद चार जनरल इलेक्ट्रिक गैस टर्बाइनें ऊर्जा देकर चलाती हैं। ये गैस टर्बाइनें एक लाख 10 हजार अश्वशक्ति ऊर्जा पैदा करती हैं। यह 262 मीटर (860 फीट) लंबा और 60 मीटर (200 फीट) चौड़ा है। इसे मिग-29के और अन्य हल्के लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए डिजाइन किया गया है। यह विमान वाहक पोत पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता प्रदान करेगा।
आईएनएस विक्रांत के बंदरगाह परीक्षण पूरे हो चुके हैं। इस साल सितम्बर तक सिस्टम और उपकरण के साथ पानी (बेसिन टेस्ट) में परीक्षण शुरू करने के लिए तैयार है। सारे परीक्षण पूरे होने के बाद इसे 2021 के अंत तक भारतीय नौसेना में शामिल किए जाने की उम्मीद है। बंदरगाह परीक्षण पूरे होने के बाद बेसिन ट्रायल में अंतिम तौर पर यह जांचा जाता है कि विमानवाहक पोत में लगे सारे सिस्टम्स ठीक तरह से काम कर रहे या नहीं और उसे समुद्र में उतारा जा सकता है या नहीं। यह परीक्षण पोत में लगे सिस्टम्स और उपकरणों के निर्माताओं की उपस्थिति होती है। बेसिन ट्रायल पहले ही शुरू किया जाना था लेकिन कोविड की वजह से निर्माताओं की उपस्थिति नहीं हो पा रही थी, इसलिए बेसिन ट्रायल्स में देरी हुई है।