साइंटिस्ट्स का कहना है कि 20 सालों में समुद्र का रंग बदल गया है। ये नीले से हरे हो गए हैं। साइंटिस्ट्स के मुताबिक, इसका असर समुद्री जीवों के साथ सी-फूड पर निर्भर लोगों पर पड़ेगा।इसकी वजह क्लाइमेट चेंज को बताया गया है।
साइंटिस्ट्स ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र की सतह पर फाइटोप्लैंकटन (समुद्र में पाए जाने वाले छोटे पौधों की तरह दिखने वाले जीव) बढ़ गए हैं। ये मरीन लाइफ को कंट्रोल करते हैं। इन फाइटोप्लैंकटन में पौधों की तरह ही हरा क्लोरोफिल होता है। इस वजह से पानी की सतह हरी दिख रही है।
साइंटिस्ट्स के मुताबिक, समुद्र का रंग बदलना खतरे की घंटी है। क्योंकि फाइटोप्लैंकटन के बढ़ने से समुद्र में डेड जोन बढ़ रहा है। इन डेड जोन में समुद्री जीव-जंतु सांस नहीं ले पाते हैं और वो मर जाते हैं।
दरअसल, फाइटोप्लैंकटन कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। दूसरी तरफ, समुद्र में रहने वाले दूसरे जीव-जंतु जिंदा रहने के लिए इसी ऑक्सीजन को इन्हेल करते हैं। फाइटोप्लैंकटन के बढ़ने से समुद्र में जीव-जंतुओं के लिए जगह कम हो रही है। ऑक्सीजन भी कम होने लगा है। ऐसे में डेड जोन बनते जा रहे हैं।
समुद्र का रंग बदलने से लोगों पर असर
इंसान जीवन के लिए मरीन लाइफ पर भी डिपेंडेंट है। वो सी-फूड खाते हैं, मछली पालन करते हैं, पानी के आस-पास फल-फूड आइटम्स उगाते हैं। समुद्र के डेड जोन बनने से मरीन लाइफ खत्म हो जाएगी। ऐसे में इंसानों का जीवन मुश्किल हो जाएगा।
सैटेलाइट डेटा में हुआ खुलासा
साइंटिस्ट्स का कहना है कि पानी के बदले हुए रंग को हम या कोई भी इंसान नहीं आसानी से नहीं देख सकता है। इसका खुलासा 2002 से 2022 के बीच लिए गए सैटेलाइट डेटा में हुआ है। डेटा के मुताबिक, 56% समुद्र नीले से हरे हो गए हैं।
बदलाव चौंकाने वाले नहीं बल्कि डराने वाले हैं
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) की साइंटिस्ट स्टेफनी डुट्किविक्ज ने कहा- हम जो बदलाव देख रहे हैं, वो चौंकाने वाले नहीं बल्कि डराने वाले हैं। ये बदलाव क्लाइमेट चेंज के कारण हो रहे हैं और वातावरण में होने वाले इन बदलावों की वजह ह्यूमन एक्टीविटीज हैं।
इंसान इकोसिस्टम को प्रभावित कर रहा
ब्रिटेन के साउथेम्प्टन में नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर के ओशन एंड क्लाइमेट साइंटिस्ट और रिसर्च के प्रमुख लेखक बीबी कैल के नेतृत्व में टीम ने ये रिसर्च की। कैल ने कहा- हमने दुनिया के आधे से ज्यादा महासागरों के पानी की छानबीन की और उनके रंगों में बदलाव का पता लगाया। स्टडी में सामने आया कि इंसान पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) को बेहद गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।
उन्होंने कहा- रंग परिवर्तन के बारे में चिंता करनी चाहिए क्योंकि रंग पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति को दर्शाते हैं। अगर ये बदल रहा तो इससे जाहिर होता है कि हमारा पारिस्थितिकी तंत्र पहले जैसा नहीं रह रहा है।
क्लाइमेट चेंज का कोरल रीफ को खतरा
साइंटिस्ट्स का कहना कि क्लाइमेट चेंज से ओशन चेंज हो रहा है। ओशन दुनिया की 25% कार्बन डाइऑकसाइड को एबजॉर्ब कर लेता है। क्लाइमेट चेंज से तापमान बढ़ रहा है। इससे समुद्र का पानी भी तेजी से गर्म हो रहा है, जिस वजह कोरल ब्लीचिंग हो रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र में आने वाले तूफान भी बढ़ रहे हैं, इससे कोरल रीफ तबाह हो रही है।
ह्यूमन एक्टीविटीज तापमान बढ़ा रहीं
कई रिपोर्ट्स में जलवायु परिवर्तन की वजह इंसानों को बताया गया है। हम एनर्जी के लिए फॉसिल फ्यूल्स जलाते हैं। इससे हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) होता है।
इससे एयर पॉल्यूशन, ग्लोबल वॉर्मिंग यानी वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। वैश्विक स्तर पर एनर्जी के लिए कोयला, क्रू़ड ऑयल और नेचुरल गैस का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर मौजूदा तरीके से ही ग्रीन हाउस गैसों का एमिशन होता रहा, तो 2050 तक धरती का तापमान दो डिग्री और बढ़ जाएगा। ऐसा होने पर कहीं भीषण सूखा पड़ेगा तो कहीं विनाशकारी बाढ़ आएगी। ग्लेशियर पिघलेंगे, समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा। इससे समुद्री जीवन पर असर होगा। समुद्र के किनारे बसे कई शहर पानी में डूब जाएंगे और उनका नामोनिशान मिट जाएगा।
क्लाइमेट चेंच की एक वजह अल नीनो
अल नीनो एक वेदर ट्रेंड है, जो हर कुछ साल में एक बार होता है। ये घटना दुनिया के सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर में होती है। इसमें ईस्ट पैसिफिक ओशन में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है। वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) ने बताया कि इस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया था।
ब्रिटानिका के मुताबिक अल-नीनो की पहली रिकॉर्डेड घटना साल 1525 में घटी थी। इसके अलावा 1600 ईस्वी के आसपास पेरू के मछुआरों ने महसूस किया कि समुद्री तट पर असामान्य रूप से पानी गर्म हो रहा है। बाद में रिसर्चर्स ने बताया था कि ऐसा अल-नीनो की वजह से हुआ था।
पिछले 65 सालों में 14 बार अल-नीनो प्रशांत महासागर में सक्रिय हुआ है। इनमें 9 बार भारत में बड़े स्तर पर सूखा पड़ा। वहीं, 5 बार सूखा तो पड़ा लेकिन इसका असर हल्का रहा।