2020 में सबसे ज्यादा ब्रोकर्स हुए डिफॉल्ट, NSE ने 18 ब्रोकर्स को निकाला

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज NSE के 18 और एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज BSE के 16 ब्रोकर्स इस साल डिफॉल्ट हुए हैं, जो पिछले 20 साल में सबसे ज्यादा है। इसको इस तरह से देखा जा सकता है कि डॉटकॉम का बुलबुला फूटने और 2001-2002 में केतन पारेख का घोटाला सामने आने के बाद 2020 में सबसे ज्यादा ब्रोकर्स ने डिफॉल्ट किया है।

कई मामले ऐसे रहे हैं जिनमें ब्रोकर्स ने वायदा बाजार में सटोरिया गतिविधियां चलाने के लिए इनवेस्टर्स के शेयर गिरवी रखकर बाजार से कर्ज लिया हुआ था। कभीकभार तो उन्होंने निवेशकों को गिरवी रखे शेयरों के लिए ब्याज भी दिया था लेकिन बहुत से मामलों में निवेशकों को अपने शेयर गिरवी रखे जाने की भनक तक नहीं लगी थी।

नवंबर 2019 से अब तक NSE ने 18, BSE ने 16 ब्रोकर्स को डिफॉल्टर करार दिया है

NSE नवंबर 2019 से अब तक 18 ब्रोकर्स को डिफॉल्टर करार देकर हटा चुका है जबकि इस दौरान BSE ने अपने 16 ब्रोकर्स को डिफॉल्टर करार देकर निकाला है। स्टॉक एक्सचेंजों ने जिन बड़े ब्रोकरेज हाउस को डिफॉल्ट के चलते हटाया है, उनमें सबसे बड़ा कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग है और लिस्ट में हालिया नाम अनुग्रह स्टॉक ब्रोकिंग का है। इस लिस्ट में उन दो ब्रोकरेज फर्म्स के नाम नहीं हैं जिन्होंने अपना कारोबार अचानक खुद बंद कर दिया।

इंडिया निवेश के कारोबार बंद करने पर ‘फंडेड FD’ की प्रैक्टिस का पता चला

इंडिया निवेश के अचानक कारोबार बंद कर देने पर HDFC बैंक और इडलवाइज कस्टोडियल सर्विसेज में मुकदमेबाजी शुरू हो गई और इससे क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस की तरफ से जमानत के तौर पर फंडेड फिक्स्ड डिपॉजिट लिए जाने की व्यवस्था दुनिया के सामने आई। इस मामले में 100 करोड़ रुपये के फंडेड FD को लेकर विवाद चल रहा है, जिसका भुगतान करने से HDFC बैंक ने मना कर दिया है।

एक्शन फाइनेंशियल नाम की लिस्टेड ब्रोकरेज फर्म ने सभी इनवेस्टर्स के पैसे नहीं चुकाए हैं लेकिन इसके बारे में ज्यादा जानकारी पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि 90% ट्रेडिंग एक्टिविटी हैंडल करने वाले स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट पर ऐसी जानकारी अरसे से अपडेट नहीं है।

सेटलमेंट गारंटी फंड का इस्तेमाल पिछले दो दशक में एक बार भी नहीं हुआ है?

एक ब्रोकर ने बताया, “पिछले एक साल में मार्केट रेगुलेटर सेबी की तरफ से किए गए उपायों से कुछ ब्रोकरेज हाउस के गलत कारोबारी तौर तरीकों का पर्दाफाश हुआ और वे इनवेस्टर्स के पैसे लौटाने में आखिरकार डिफॉल्ट ही कर गए।”

कार्वी और अनुग्रह की जांच के दौरान एडवोकेट रविचंद्र हेगड़े ने सेटलमेंट गारंटी फंड से जुड़ा यह अहम तथ्य पेश किया था कि इसका इस्तेमाल पिछले दो दशक में एक बार भी नहीं हुआ है। कई मामलों में क्लीयरिंग ब्रोकर्स ने अवैध तरीके से गिरवी रखे गए निवेशकों के शेयर कथित तौर पर क्लीयरिंग कॉरपोरेशंस के दबाव में बेच दिए ताकि सेटलमेंट गारंटी फंड का इस्तेमाल न करना पड़े।

ब्रोकर्स के डिफॉल्ट से निपटने के लिए जारी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर 1 अगस्त से लागू

इस साल जुलाई में सेबी ने ब्रोकर्स के डिफॉल्ट से निपटने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर वाला सर्कुलर जारी किया, जो 1 अगस्त से लागू हुआ। माना जा रहा है कि इससे निवेशकों की शिकायतों या फंड की कमी के तौर पर शुरुआती संकेत मिलेंगे। ब्रोकर्स के डिफॉल्ट के ज्यादातर मामले पिछले साल के हैं जब उनको पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए क्लाइंट्स के शेयरों का एक्सेस मिला हुआ था।

2019 में डिफॉल्ट हुए ब्रोकर्स ने दूसरे बिजनेस या दूसरे क्लाइंट्स को ट्रेडिंग के लिए ज्यादा मार्जिन मुहैया कराने के मकसद से अपने क्लाइंट्स के शेयर गिरवी रख दिए थे। पिछले साल नवंबर में कार्वी की कहानी सामने आने के बाद सेबी ने एक नियम बनाया जिससे ब्रोकर्स के पास क्लाइंट्स के शेयरों का एक्सेस नहीं रह गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here