आप ऐसे समाज को क्या कहेंगे जहां इंसानों के हकों के लिए आवााज बुलंद करने वालों को ही मार दिया जाता है या फिर उन्हें चुप कराने के लिए तरह-तरह से प्रताडि़त किया जाता है। जी हां, भारत ही नहीं दुनिया के अधिकार देशों में इंसानों के हक के लिए आवाज उठाने वाले लोग सुरक्षित नहीं है। उनका आवाज उठाना रास नहीं आता। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले की खबरें अक्सर अखबार की सुर्खियां बनती है। भारत ही नहीं दुनिया भर में मानवाधिकार के रक्षकों के साथ मार-पिटाई व हत्या जैसी खबरें आती रहती है।
आंकड़ों के अनुसार साल 2820 में पूरी दुनिया में करीब 331 मानवाधिकार रक्षकों की हत्या कर दी गई। इनमें से दो तिहाई लोग पर्यावरण, जमीन और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे थे। यह जानकारी ग्लोबल एनालिसिस 2020 रिपोर्ट में सामने आई। जिन 331 मानवाधिकार रक्षकों की हत्या हुई है उसमें 6 भारत के भी थे।
रिपोर्ट के मुताबिक मरने वालों में से सबसे ज्यादा लोग कोलंबिया के थे, जहां 177 मानवाधिकार रक्षकों की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद फिलीपीन्स में 25, होंडुरस में 20, मेक्सिको के 19, अफगानिस्तान के 17, ब्राजील के 16, ग्वाटेमाला के 15, इराक और पेरू के आठ-आठ और भारत के 6 मानवाधिकार रक्षकों की हत्या की गई।
भारत में मारे गए इन 6 मानवाधिकार रक्षकों के नाम राकेश सिंह निर्भीक, पंकज कुमार, शुभम मणि त्रिपाठी, जन कुमार दास, बाबर कादरी और देवजी माहेश्वरी थे।रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से सबसे ज्यादा 69 प्रतिशत मानवाधिकार रक्षक पर्यावरण, जमीन और आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे थे।
बाकी 20 प्रतिशत महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई और 20 प्रतिशत को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो भ्रष्ट्राचार के खिलाफ खड़े थे।
मारे गए 331 मानवाधिकार रक्षकों में 44 महिलाएं भी शामिल थी। बीते वर्ष 26 फीसदी रक्षकों को अकेले आदिवासियों के हकों के लिए लडऩे की वजह से मार दिया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से अब तक आदिवासियों के लिए लड़ रहे 327 लोगों की हत्या के मामले सामने आ चुके हैं।इतना ही नहीं मानवों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे रक्षकों को दुनिया भर में तरह-तरह से प्रताडि़त भी किया गया है। इनकी आवाज दबाने का सबसे आसान तरीका हिरासत में लेना या नजरबन्द करना दिखता है।
पिछले दिनों ही सऊदी अरब में मानवाधिकार कार्यकर्ता हथलौल को तीन साल बाद जेल से रिहाई मिली। हथलौल का जुर्म इतना था कि उन्होंने महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार मांगा था।
रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2020 के बीच मानवाधिकार रक्षकों के प्रताडऩा के 919 मामले सामने आए। इन मामलों में धमकी देने और निगरानी करने के मामलों को शामिल नहीं किया गया है। इसका कारण है कि यह ऐसे मामले हैं जिनका पाला अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे लोगों से रोज ही पड़ता है।
यदि हत्या के मामले को छोड़ दें तो करीब 29 प्रतिशत मामलों में आवाज दबाने के लिए गिरफ्तारी या फिर नजरबन्द करने का सहारा लिया गया है।
तो वहीं 19 प्रतिशत मामलों में इन लोगों के लिए कानूनी कार्रवाई की गई है। शर्मनाक यह है कि 13 फीसदी में उन पर हमला किया गया था जबकि 7 फीसदी मामलों में अलग-अलग तरीकों से उनका उत्पीडऩ किया गया था।
इसके अलावा 6 प्रतिशत मामलों में मानवाधिकार रक्षकों के दफ्तरों और घरों पर छापा मारा गया और 5 फीसदी मामले में उन्हें अलग-अलग तरीकों से कष्ट दिया गया था।यदि प्रताडऩा की बात करें तो इस बार भी पर्यावरण, जमीन और आदिवासियों के हकों के लिए लडऩे वालों को सबसे ज्यादा तंग किया गया था।प्रताडऩा के कुल मामलों में 21 प्रतिशत मामले इन्हीं लोगों के खिलाफ सामने आए हैं, जबकि महिला हकों की लड़ाई लड़ रहे 11 फीसदी लोगों को तरह-तरह से प्रताडि़त किया गया था।
सबसे शर्म की बात यह है कि इसके लिए सरकारी मशीनरी का भी सहारा लिया गया था।मानवाधिकार रक्षकों के साथ ज्यादाती के ज्यादातर मामले 25 देशों में ही सामने आए हैं। पर ऐसा होना न केवल किसी देश के लिए बल्कि पूरे मानव समाज के लिए खतरा है, जहां आम लोगों की भलाई के लिए उठने वाली आवाज को कुछ लोगों के फायदे के लिए दबा दिया जाता है।