लखनऊ। हज यात्रियों का पहला जत्था सउदी अरब के लिए रवाना हुआ। यात्रियों ने कहा कि उनका सालों का सपना पूरा हो रहा है। हज को इस्लाम के 5 फर्ज में से एक माना गया है। इसके अलावा 4 फर्ज कलमा, रोज़ा, नमाज़ ,ज़कात है। इन्हें इस्लाम के 5 स्तंभ में भी माना गया है।
हज हर साल होने वाला मुसलमानों का सबसे बड़ा आयोजन है। दुनिया भर से मुसलमान सऊदी अरब में 40 दिन इबादत करते हैं।
सऊदी एयरपोर्ट पहुंचने पर हाजी सबसे पहले मक्के शहर पहुंचते हैं। यहां एहराम पहनते हैं जो बिना सिला हुआ एक खास प्रकार का सफेद कपड़ा होता है। वहीं महिलाएं भी सफेद रंग का कपड़ा पहनती हैं।
मक्के शहर के बाद सभी हाजी मक्का पहुंचते हैं और यहां उमरा और तवाफ़ (काबा का चक्कर लगाना) करते हैं। उसके बाद यहीं नमाज अदा करते हैं। मक्के के बाद यात्री मिना रवाना होते हैं, वहीं रात गुज़ारते हैं, सुबह 9 तारीख को अराफ़ात के मैदान में सभी हाजी जमा हो जाते हैं।
शैतान जो सांकेतिक रूप से बड़ा सा चट्टान
अराफात के मैदान में पहुंचने के बाद हाजी खड़े होकर दुआ मांगते है। अपने गुनाहों की माफी मांगते है। फिर वहां से रात होने से पहले मुज़दलफ़ा शहर आ जाते हैं। हाजी मुज़दलफ़ा में खुले आसमान के नीचे रात गुज़ारते हैं। वहीं से कंकड़ चुनते है। वहीं कंकड़ शैतान पर मारना होता है। 10 ज़िल हिज्जा यानी 10 तारीख को हाजी को वापस मिना लाया जाता है। वहां भी शैतान को कंकड़-पत्थर मारा जाता है।
शैतान जो सांकेतिक रूप से बड़ा सा चट्टान होता है। जिसे अरबी में जमरात कहा जाता है। शैतान को कंकड़ मारने के बाद 10 ज़िल हिज को बकरीद का दिन होता है सभी हाजी को कुर्बानी करनी होती है।
वहीं इस कुर्बानी के लिए बकरा या भेड़ चुना जाता है। कुर्बानी के बाद मर्द सिर के पूरे बाल मुंडवा देते हैं। महिलाएं थोड़ा सा बाल कटवाती हैं। 11 तारीख को वापस मक्का लौट जाते और तवाफ़ करते है। 12 तारीख को तवाफ़ ए विदा (आखरी तवाफ़) और दुआ करते हैं। जिससे हज मुकम्मल होता है।