नई दिल्ली। सैनिकों के लिए 89 ऐप्स बैन करने के आदेश के खिलाफ एक लेफ्टिनेंट कर्नल ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि मिलिट्री इंटेलीजेंस के डाइरेक्टर जनरल से 6 जुलाई का उनका आदेश वापस लेने को कहा जाए। कोर्ट मंगलवार को उनकी याचिका पर सुनवाई कर सकता है। 6 जुलाई को सेना ने अपने जवानों और अधिकारियों को फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत 89 ऐप्स डिलीट करने का आदेश दिया था। इसके लिए 15 जुलाई तक का समय दिया है।
हाईकोर्ट जाने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि वह फेसबुक के एक्टिव यूजर हैं। इस प्लेटफार्म से वह अपने दोस्तों और परिवार के साथ जुड़े हैं। इनमें से कई लोग विदेश में रहते हैं। उनकी बेटी भी विदेश में है।
फंडामेंटल राइट्स को नुकसान
याचिका में ले. कर्नल ने कहा कि उन्हें 9 जुलाई को न्यूज रिपोर्ट के जरिए सेना के आदेश का पता चला। आदेश के तहत सेना के सभी जवानों और अधिकारियों को 15 जुलाई तक फेसबुक, इंस्टाग्राम और 87 और ऐप्स हटाना है। इस बारे में 10 जुलाई को उन्हें मिलिट्री इंटेलिजेंस के डाइरेक्टर जनरल का लेटर भी मिला। याचिका में दावा कि कि नया आदेश फंडामेंटल राइट्स को नुकसान पहुंचाता है। इसमें फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन और राइट टू प्राइवेसी जैसे अधिकार भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि सेना के जवानों के फंडामेंटल राइट्स मनमाने तरीके से न बदले जाए, जबतक इसके लिए नया कानून न बने। नहीं तो इससे आर्मी एक्ट के प्रावधनों को नुकसान पहुंचेगा है और यह असंवैधानिक है।
तनाव में रह रहे जवानों को मिलती है राहत
उन्होंने कहा कि जवान वीरान इलाकों, विपरीत मौसम और कड़ी परिस्थितियों में तैनात रहते हैं। उन पर दुश्मन के हमले का खतरा भी रहता है। इस वजह से वह अधिक तनाव में रहते हैं। कभी वे खुद को गोली मार लेते हैं और कभी अधिकारियों पर भी हमला कर देते हैं। अधिकतर मामले जवानों को छुट्टी देने से इन्कार करने के बाद आते हैं। जवान ऐसे में अपने परिवार से फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म से जुड़े रहते हैं। ये प्लेटफार्म जवानों का तनाव घटाते हैं।
दुनिया की कोई भी आर्मी ऐसा आदेश नहीं देती
याचिका में कहा गया है कि फैसले के पीछे सुरक्षा चिंताओं और डाटा चोरी होने का हवाला दिया जा रहा है, लेकिन प्लेटफार्म पर बैन लगाना ऑर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) का सीधा उल्लंघन है। दुनिया की कोई भी प्रोफेशनल आर्माी अपने जवानों पर इस तरह के बेकार के प्रतिबंध नहीं लगाती है।