स्मृति शेष : लालजी टंडन का एक सभासद से लेकर राज्यपाल तक का सफरनामा…

लखनऊ । मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार सुबह 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सभासद से राज्यपाल का सफर तय करने वाले लालजी टंडन उर्फ बाबू जी ने अपनी जिदंगी में राजनीति के कई उतार चढ़ाव देखे। उनके सभी दलों के नेताओं से अच्छे रिश्ते थे। उन्होंने राजनीति के हर फन को करीब से देखा। राजधानी लखनऊ में 12 अप्रैल, 1935 को जन्मे लालजी टंडन का सियासी सफर वर्ष 1960 से शुरू हुआ। इन छह दशकों में तमाम उतार-चढ़ाव के साथ लखनऊ नगर निगम के पार्षद से लेकर संसद और बाद में राज्यपाल की कुर्सी तक उनकी यादगार यात्रा रही है।

उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की। 1952 में जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने। विद्यार्थी जीवन में ही लालजी टंडन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए थे। 1958 में लालजी का कृष्णा टंडन के साथ विवाह हुआ। उनके तीन बेटों में आशुतोष टंडन इस समय योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।

लखनऊ नगर महापालिका से दो बार सभासद चुने गए थे। 1974 में लखनऊ पश्चिम विधानसभा से विधायक का चुनाव वह डेढ़ हजार मतों से हार गए थे। इस दौरान वह लखनऊ महानगर जनसंघ के अध्यक्ष बने थे।

वह जेपी आंदोलन के उत्तर प्रदेश के सह संयोजक बने। वर्ष 1978 से 1984 तक इसके बाद वर्ष 1990 से 96 तक वह दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे। इस दौरान 1991-92 में वह उप्र सरकार में मंत्री भी रहे।

वर्ष 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार वह लखनऊ से ही उप्र विधानसभा के सदस्य चुने गए। इस दौरान 1997 से 2002 तक भाजपा शासन काल में वह प्रदेश के नगर विकास मंत्री रहे।

वर्ष 2009 में जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की तो भाजपा ने लालजी टंडन को ही वाजपेयी की लखनऊ लोकसभा सीट सौंप दी, वह लखनऊ से सांसद बने। 2014 के चुनाव में भाजपा ने लालजी टंडन की जगह राजनाथ सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था।

करीब चार वर्ष तक सक्रिय राजनीति से दूर रहने वाले टंडन ने 23 अगस्त 2018 को बिहार के राज्यपाल की कुर्सी संभालकर खुद को दलीय राजनीति से मुक्त कर लिया। जुलाई 2019 में मध्यप्रेदश के राज्यपाल बनाए गए। दो वर्ष पहले लालजी टंडन ने ‘अनकहा लखनऊ ‘ पुस्तक भी लिखी, जिसका लोकार्पण उप राष्ट्रपति एम़ वेंकैया नायडू ने किया था।

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