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वैज्ञानिकों ने एक्टिव रेस्पिरेटर मास्क और नैनो-सैनिटाइजर को बनाने में हासिल की सफलता

नई दिल्ली।  कोरोना वायरस की लड़ाई में अहम हथियार बन चुके मास्क को लेकर बीते दिनों एक खबर आई जिससे लोग सकते में आ गए। केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर एन-95 मास्क को कोरोना से लडऩे में अक्षम बताया। इसके बाद मास्क को लेकर लोग परेशान है कि कौन सा मास्क कोरोना की लड़ाई में सुरक्षित है।

फिलहाल इस बीच खबर आई है कि कोलकाता के एक अनुसंधान संस्थान एस एन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज (एसएनबीएनसीबीएस) ने एक एक्टिव रेस्पिरेटर मास्क और नैनो-सैनिटाइजर को बनाने में सफलता हासिल की है जो कोविड-19 का मुकाबला करने में मददगार हो सकता है।

एसएनबीएनसीबीएस भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है। इस मास्क को प्रोफेसर समित कुमार रे के मार्गदर्शन में प्रोफेसर समीर के पाल और उनकी टीम ने बनाया है। साथ ही इसमें सांस छोडऩे के लिए वाल्व और सूक्ष्म कणों को नियंत्रण करने के लिए एक फिल्टर भी लगा हुआ है। जिसकी मदद से सांस लेना आसान हो जाता है।

इसके अलावा इस एक्टिव रेस्पिरेटर मास्क की मदद से सांस के द्वारा निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को पुन: सांस लेने योग्य किया जा सकता है जिससे सांस लेने में आसानी हो जाती है। साथ ही गर्मी और उमस के कारण शरीर से निकले पसीने की समस्या को भी नए तरीके से हल कर सकता है, जिससे इसे लगाना आरामदेह हो जाता है। साथ ही यह मास्क व्यक्ति की बातचीत को भी ज्यादा स्पष्ट कर देता है।

कोरोनावायरस की लड़ाई में मास्क सबसे अहम हथियार बन गया है। फिलहाल कोरोना से लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है। इसलिए मास्क जीवन का जरूरी हिस्सा बन गया है। सरकार ने भी मास्क को अनिवार्य बना दिया है। लोग मास्क का उपयोग कर रहे हैं लेकिन लोगों को अनेक तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से लोग मास्क लगाने से परहेज कर रहे हैं, जिससे वायरस के फैलने का खतरा बना रहता है।

बाजार में मौजदू मास्क में सबसे बड़ी समस्या है सांस द्वारा छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड । इसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में मास्क का लम्बे समय तक प्रयोग स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है। यहां तक कि इससे दिमागी हाइपोक्सिया तक भी हो सकता है।

मालूम हो कि हाइपोक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त और शरीर के ऊतकों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। इसके साथ ही मास्क एक अंदर पसीना और गर्मी भी एक बड़ी समस्या है जिसकी वजह से बार-बार मास्क उतारना पड़ता है। इसके अलावा मास्क लगाने से आवाज भी साफ नहीं सुनाई देती यह भी एक समस्या है, लेकिन एसएनबीएनसीबीएस द्वारा विकसित यह मास्क इन समस्याओं को हल करने में मददगार हो सकता है।

इसके साथ ही संस्थान ने एक नैनो-सैनिटाइजर भी विकसित किया है जिसमें एक सूक्ष्मजीव-रोधी परत भी है। आमतौर पर उपलब्ध सेनिटाइटर्स के बार-बार उपयोग करने से त्वचा शुष्क हो जाती है। क्योंकि इसी तरह सेनिटाइटर्स वायरसों को रोकते हैं। लेकिन इस सैनिटाइजर का असर लम्बे समय तक बना रहता है। जिसकी वजह से लम्बे समय तक वायरस से लड़ता रहता है और हाथों को आरामदेह रखता है।

इन दोनों ही उत्पादों का निर्माण देश में किया जा रहा है। इसको 15 अगस्त 2020 को लांच किया जाएगा। यह कितने कारगर हैं यह तो इनके बाजार में आने के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन यदि यह सचमुच में बताये गए विवरण के अनुरूप ही कारगर हैं तो यह काफी हद तक आम मास्क से होने वाली समस्याओं को हल कर देंगे। साथ ही यह इस महामारी से लडऩे में भी काफी मददगार होंगे।

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