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अंबाला के लोगों को आने वाले कुछ महीनों तक दिन-रात उड़ान भरता नजर आएगा राफेल

अंबाला। अंबाला के लोगों को आने वाले कुछ महीनों तक राफेल दिन-रात उड़ान भरता नजर आएगा। दरअसल, यहां पहुंचने के बाद भारतीय वायुसेना इस पर राउंड द क्लॉक ट्रेनिंग करने वाली है। यह ट्रेनिंग इस विमान से संबंधित हर सेक्शन की होगी। अंबाला एयरबेस से रिटायर हुए सार्जेंट खुशबीर सिंह दत्त ने बताया कि 80 के दशक में जब वे नौकरी में थे तो जगुआर फाइटर प्लेन भारत आया था। तब पायलट और तकनीकी स्टाफ ने दिन-रात ट्रेनिंग ली थी।

जगुआर आने से पहले भी वायुसेना का मनोबल बहुत ऊंचा था
रिटायर्ड सार्जेंट खुशबीर सिंह बताते हैं कि जब मैं सर्विस में था तो जगुआर खरीदा गया था। तब इतनी मीडिया नहीं थी। बहुत कम चीज बाहर आती थीं, लेकिन एयरफोर्स के अंदर की बात करूं तो वायुसेना का मनोबल बहुत ऊंचा हो गया था। विमान के आने से पहले ही जवानों में इसकी चर्चाएं शुरू हो गई थीं। इसके आने के बाद वायुसेना का हर सैनिक इसे देखना चाहता था। उस दौर में जगुआर बहुत ताकतवर था।

एक फाइटर उड़ाने के लिए 15 से ज्यादा ट्रेड शामिल होती हैं
दत्त बताते हैं कि एक जहाज उड़ाने के लिए 15 से ज्यादा ट्रेड इनवॉल्ड होती हैं। आम लोगों को तो जहाज उड़ता नजर आता है। उन्हें सिर्फ पायलट वर्किंग कंडीशन में दिखता है, लेकिन उस जहाज से जुड़ी 15 से ज्यादा ट्रेड बैक में काम कर रही होती हैं। एक नई चीज बेस पर आएगी तो इन सभी के लिए आने वाले दिन चुनौती भरे होंगे। ये सब इसे समझने के लिए दिन-रात प्रैक्टिस करने वाले हैं।

उड़ान से 3 घंटे पहले प्रैक्टिस शुरू की जाती है
दत्त कहते हैं कि फाइटर उड़ने से तीन घंटे पहले उससे जुड़ी प्रैक्टिस शुरू हो जाती हैं। ऐसा नहीं होता कि आप रात में उसे ठीक हालत में छोड़कर गए तो सुबह उसी हालत में उड़ाना शुरू कर देते हैं, बल्कि सुबह फिर जीरो से शुरू करना पड़ता है। हर तरह की चेकिंग के बाद ही उसे रन-वे पर उतारा जाता है। इस पूरे प्रोसेस में करीब तीन घंटे लग जाते हैं।

भारतीय वायुसेना से रिटायर्ड सार्जेंट खुशबीर सिंह दत्त।

एयरफोर्स को 43 फ्लाइटिंग स्क्वाड्रन चाहिए, हमारे पास सिर्फ 34
भारतीय वायुसेना को 43 फ्लाइटिंग स्क्वाड्रन चाहिए, लेकिन हमारे पास सिर्फ 34 हैं। इनमें से भी 6-8 साल में 8 स्क्वाड्रन डी-ग्रेड होने जा रहे हैं। तब सिर्फ 26 स्क्वाड्रन रह जाएंगे। इससे हमारी जहाजों की क्षमता वैसे ही आधी हो जाएगी। ऐसे में भारत को और फाइटर खरीदकर वायुसेना की ताकत को बढ़ाना चाहिए। हमारे पास स्किल्ड मैनपावर हैं, लेकिन उस लेवल के फाइटर चाहिए। राफेल के आने से हमारी क्षमता बढ़ेगी, लेकिन अभी और फाइटर की जरूरत है।

अंबाला एयरबेस पर तैनाती बहुत महत्वपूर्ण
दत्त बताते हैं कि अंबाला एयरबेस वेस्टर्न एयर कमांड का बहुत ही महत्वपूर्ण एयरबेस है। यह बेस एयरफोर्स के लिए दाएं और बाएं हाथ की तरह काम करता है। पाकिस्तान के अलग-अलग बॉर्डर इस एयरबेस से 200, 250 और 300 किलोमीटर दूरी पर हैं। चीन का बॉर्डर भी इस एयरबेस से नजदीक है। अंबाला में तैनाती दोनों देशों को कवर करेगी।

एयरफोर्स के लिए तोहफा है राफेल
राफेल का मतलब तूफान होता है। यह फाइटर हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है। आज जो भी फाइटर हैं, वे अत्याधुनिक नहीं रहे। पिछले 20 साल से कोई फाइटर नहीं खरीदा गया। इसकी बड़ी वजह राजनीति रही। अब जब पाकिस्तान और चीन हमारे देश की सीमाओं को बुरी नजर से देख रहे हैं तो राफेल एयरफोर्स के लिए एक तोहफे की तरह है। इससे सेना के जवानों का मनोबल ऊंचा होगा।

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