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कमल रानी वरुण ने अपने दम पर पूरा किया था सियासी सफर

कानपुर। उत्तर प्रदेश सरकार की प्राविधिक शिक्षा मंत्री रही कमल रानी वरुण की रविवार को कोरोना से मौत हो गयी। कानपुर की जनता भी लोकप्रिय व मधुर स्वभाव की अपनी नेता की मौत की खबर सुनकर स्तब्ध है। कमल रानी वरुण का राजनीतिक सफर वैसे तो कानपुर के नगर निगम से शुरू हुआ था पर उससे पहले वह सेवा भारती से जुड़कर सामाजिक कार्य करके अच्छी खासी पहचान बना चुकी थी।
नगर निगम के सदन में वह दो बार चुनकर पहुंचीं। इसके बाद दो बार लोकसभा का चुनाव जीतकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में कानपुर की आवाज बनीं। उन्होंने पहली बार भाजपा को घाटमपुर विधानसभा सीट से जीत दिलाई और मरते वक्त तक उत्तर प्रदेश की सरकार में कैबिनेट मंत्री रही।
कानपुर परिक्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का दलित चेहरा सदैव रामनाथ कोविंद रहे लेकिन वे कभी चुनाव मैदान में नहीं उतरे। पार्टी उन्हें संवैधानिक पद पर विराजमान करती रही और वह राष्ट्रपति भवन तक जा पहुंचे। दूसरी ओर कमल रानी वरुण जमीनी स्तर पर कार्य करके भाजपा में अपनी पैठ मजबूत करती रहीं।
उन्होंने सबसे पहले सेवा भारती से सामाजिक कार्य करना शुरू किया। उन्हें यह कार्य करने के लिए उनके पति किशन लाल वरुण ने प्रेरित किया जो एलआईसी में प्रशासनिक अधिकारी थे और आरएसएस से जुड़े हुए थे। सेवा भारती से जुड़कर उन्होंने क्षेत्र में सामाजिक कार्य किये और उनको एक नई पहचान मिली। इसी पहचान को देखते हुए भाजपा ने 1989 में द्वारिकापुरी सुरक्षित सीट से नगर निगम पार्षद का टिकट दिया और वह जीती भी।
दूसरी बार इसी सीट से फिर 1995 में पार्षद बनी। इस दौरान उन्होंने ऐसे कुछ कार्य किये कि उनकी पहचान जनपद में बड़े नेताओं में होने लगी। पार्टी ने भी 1996 में उन्हें घाटमपुर (सुरक्षित) संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतारा। अप्रत्याशित जीत हासिल कर लोकसभा पहुंची कमलरानी ने 1998 में भी उसी सीट से दोबारा जीत दर्ज की। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हें सिर्फ 585 मतों के अंतराल से बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल संखवार के हाथों पराजित होना पड़ा था। सांसद रहते कमलरानी ने लेबर एंड वेलफेयर, उद्योग, महिला सशक्तिकरण, राजभाषा व पर्यटन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समितियों में रहकर काम किया।
सांसद का चुनाव हारने के बाद कुछ वर्षों के लिए उन्होंने राजनीति में सक्रियता कम कर दी। पार्टी ने 2012 में उन्हें रसूलाबाद (कानपुर देहात) से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया, लेकिन वह जीत नहीं सकी। 2015 में पति की मृत्यु हो गयी और राजनीति से लगभग उन्होंने दूरी भी बना ली, लेकिन पार्टी ने फिर उन पर विश्वास जताया और 2017 में घाटमपुर सुरक्षित सीट से उम्मीदवार बना दिया।
इस बार उन्हें जीत मिली और घाटमपुर में पहली बार भाजपा का खाता भी खुला। क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने व जनता की समस्याओं को अपना समझ दूर करवाने में उनकी महती भूमिका रहती थी। जनता के बीच अच्छी पकड़ के साथ पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा व लगन को देखते हुए 2019 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था और प्राविधिक मंत्रालय दिया गया था।
लखनऊ में जन्मीं और लखनऊ में ही मौत
उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री रही कमल रानी वरुण का जन्म लखनऊ में 3 मई 1958 को हुआ था। उनकी शादी कानपुर निवासी एलआईसी में प्रशासनिक अधिकारी किशन लाल वरुण से हुई थी। किशन लाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिबद्ध स्वयंसेवक थे। समाजशास्त्र से एमए कमल रानी को उनके पति गृहिणी ही बनाकर नहीं रखना चाहते थे। इसी के चलते उनको सेवा भारती से जोड़ा और जब भी कोई चुनाव होता था तो बूथ में पर्ची बाटने की जिम्मेदारी दी जाती थी।
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