नई दिल्ली। राजस्थान की सियासी उठापटक के बीच बसपा विधायकों के मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने गुरूवार को फैसला दिया कि विधायकों को नोटिस जारी किए जाएंगे। 8 अगस्त तक नोटिसों की तामील करवाने की जिम्मेदारी जैसलमेर जिला जज को दी गई है। जरूरत पड़ने पर वे पुलिस की मदद भी ली जा सकती है। गहलोत गुट के विधायक जैसलमेर में बाड़ेबंदी में हैं। बसपा से कांग्रेस में गए 6 विधायक भी उनमें शामिल हैं। अब जैसलमेर और बाड़मेर के प्रमुख अखबारों में भी नोटिस पब्लिश करवाया जाएगा।
इस मामले में भाजपा विधायक मदन दिलावर और खुद बसपा ने भी हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि सिंगल बेंच ने स्टे नहीं दिया और रही नोटिस की बात तो बाड़ेबंदी में विधायकों को नोटिस कैसे तामील हो पाएंगे? डिवीजन बेंच ने कहा कि सिंगल बेंच ने स्टे की अर्जी खारिज नहीं की है, इसलिए हम स्टे नहीं दे सकते। लेकिन, नोटिस तामील करवाने की व्यवस्था कर रहे हैं।
बसपा के 6 विधायकों के 9 महीने पहले कांग्रेस में शामिल होने और इसके लिए स्पीकर की मंजूरी के आदेश को दिलावर और बसपा ने सिंगल बेंच में भी चुनौती दे रखी है। इस पर 11 अगस्त को सुनवाई होगी। डिवीजन बेंच ने गुरूवार को सिंगल बेंच को निर्देश दिए कि उसी दिन सुनवाई पूरी कर फैसला सुना दिया जाए। यानी स्टे पर 11 अगस्त को फैसला आना तय हो गया है। बसपा ने अपील की है कि जब तक मामला कोर्ट में रहे तब तक 6 विधायकों को फ्लोर टेस्ट में किसी के पक्ष में वोट नहीं डालने दिया जाए।
स्टे मिला तो गहलोत सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी…
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि उनके खेमे में 102 विधायक हैं। इनमें बसपा के 6 एमएलए भी शामिल हैं। लेकिन कोर्ट ने बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने पर स्टे दिया तो गहलोत की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। उन्हें बहुमत साबित करने में दिक्कत आएगी। क्योंकि-
200 सदस्यों वाली विधानसभा से 6 सदस्य कम हुए तो 194 रह जाएंगे। तब बहुमत के लिए संख्या बल 98 होना जरूरी होगा। लेकिन, गहलोत के 102 में से 6 विधायक कम होने से उनके खेमे में 96 ही रह जाएंगे।
900 करोड़ के घोटाले के केस में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राहत
इस मामले में हाईकोर्ट ने एडीजे कोर्ट के आदेश पर बुधवार को रोक लगा दी। एडीजे कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट को आदेश दिया था कि घोटाले में शेखावत पर लगे आरोपों की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) से जांच करवाई जाए।
संजीवनी को-ऑपरेटिव सोसायटी के 900 करोड़ रुपए के घोटाले में शेखावत पर आरोप हैं कि सोसायटी की बड़ी रकम शेखावत और उनके परिवार की कंपनियों में ट्रांसफर की गई। गजेंद्र सिंह शेखावत और संजीवनी सोसायटी के फाउंडर विक्रम सिंह एक समय प्रॉपर्टी के बिजनेस में पार्टनर रहे थे। हालांकि, घोटाला सामने आने से काफी पहले ही दोनों अलग हो गए थे।
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