नई दिल्ली। फाइनल ईयर परीक्षाओं को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज भी फैसला नहीं सुनाएगा। दरअसल, मामला आज लिस्ट में नहीं होने की वजह से फैसला अब किसी और दिन सुनाया जाएगा। ऐसे में अब स्टूडेंट्स को परीक्षाओं पर होने वाले फैसले के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।
18 अगस्त को हुई थी आखिरी सुनवाई
यूजीसी की गाइडलाइन के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच कर रही है।
इससे, पहले सोमवार को फैसला आने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने ट्वीट कर बताया था कि कोर्ट बुधवार तक फैसला सुना सकता है।
आखिरी सुनवाई में क्या हुआ?
यूनिवर्सिटी और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सेस की फाइनल ईयर या सेमेस्टर की परीक्षाओं को 30 सितंबर तक कराने के यूजीसी की गाइडलाइन को चुनौती देनी वाली विभिन्न याचिकाओं पर एक साथ 18 अगस्त को आखिरी सुनवाई हुई। इस दौरान विभिन्न राज्यों – महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और ओडिशा की दलीलों को भी सुना गया। दरअसल, इन राज्यों की सरकारों ने पहले परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला स्वयं ही ले लिया था। सुनवाई के दौरान यूजीसी ने इन राज्यों के फैसले को आयोग के सांविधिक विशेषाधिकारों के विरूद्ध बताया गया था।
सरकार ने कहा- UGC को नियम बनाने का अधिकार
सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में कहा कि फाइनल ईयर की परीक्षा कराना ही छात्रों के हित में है। सरकार और UGC का पक्ष कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे थे। उन्होंने सुनवाई के दौरान कोर्ट से यह भी कहा कि परीक्षा के मामले में नियम बनाने का अधिकार UGC को ही है।
UGC की दलील- स्टैंडर्ड खराब होंगे
इससे पहले यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि फाइनल ईयर की परीक्षा रद्द करने का दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार का फैसला देश में उच्च शिक्षा के स्टैंडर्ड को सीधे प्रभावित करेगा। दरअसल, यूजीसी के सितंबर के अंत तक फाइनल ईयर की परीक्षा कराने के फैसले के खिलाफ जारी याचिका पर कोर्ट में जवाब दिया।
क्या है स्टूडेंट्स की मांग
दायर याचिका में स्टूडेंट्स ने फाइनल ईयर की परीक्षा रद्द करने की मांग की है। इसके साथ ही स्टूडेंट्स ने आंतरिक मूल्यांकन या पिछले प्रदर्शन के आधार पर पदोन्नत करने की भी मांग की है। इससे पहले पिछली सुनवाई में, यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा था कि राज्य नियमों को बदल नहीं सकते हैं और परीक्षा ना कराना छात्रों के हित में नहीं है। 31 छात्रों की तरफ से केस लड़ रहे अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा है कि, हमारा मसला तो यह है कि UGC की गाइडलाइंस कितनी लीगल हैं।
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