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स्मृति शेषः दोस्तों के साथ-साथ विरोधियों में भी लोकप्रिय थे प्रणब दा

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं हैं। कड़ी मेहनत और अनुशासन के दम पर अपनी ख़ास शख्सियत गढ़ने वाले प्रणब मुखर्जी का निधन, भारतीय राजनीतिक क्षितिज में शून्यता पैदा कर गया। सहयोगियों के साथ-साथ राजनीतिक विरोधियों के दिलों में भी विशेष सम्मान रखने वाले प्रणब दा नेताओं की भीड़ में अपनी अलग पहचान के साथ हमेशा याद किए जाएंगे।
कई रोचक किस्से
कच्चे घर से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचने वाले प्रणब दा के कई रोचक किस्से हैं। बचपन में प्रणब दा को घर में प्यार से पलटू नाम से बुलाया जाता था। तो बात उस समय की है, जब गोलमटोल पलटू गांव से सात किलोमीटर दूर स्थित स्कूल पैदल जाया करते थे। रास्ते में उन्हें नदी नाले भी पार करने होते थे, इसलिए यूनिफार्म बस्ते में रखकर लुंगी में ही स्कूल जाया करते थे।
ताकि ड्रेस खराब न हो। उन दिनों दक्षिण भारत में तैनात इंडियन सिविल सर्विसिज (आईसीएस) के एक अधिकारी स्कूल का निरीक्षण करने आए तो हेडमास्टर साहब उन्हें सबसे बड़ी क्लास दसवीं में ले गए। जहां आईसीएस अधिकारी ने छात्रों से पूछा कि अखबार पढ़ते हो, तो बच्चों ने मना कर दिया।
उस समय तीन चार गांवों को मिलाकर एक ही गांव में, वो भी सबसे पहले स्कूल में ही अखबार आता था। अखबार भी एक दिन पुराना होता था। हेडमास्टर साहब ने आईसीएस अधिकारी को बताया कि उनके स्कूल में एक बच्चा है, जो अखबार पढ़ने का शौक रखता है, वो सातवीं जमात में है। अधिकारी हैरान हुए और सातवीं क्लास में पहुंच गए, तब अधिकारी ने पूछा कि कौन बच्चा है तो हेडमास्टर ने गोलमटोल पलटू की तरफ इशारा किया। अधिकारी ने पलटू से सवाल दागा, बताओ अमेरिका में कौन-सा चुनाव होने वाला है और कौन चुनाव जीत सकता है।
तब पलटू ने सब सही बताया। यही पलटू जब प्रणब बनकर केंद्र में मंत्री बने तो वह एक कार्यक्रम के सिलसिले में दक्षिण भारत के नीलगिरी क्षेत्र में किसी कॉलेज के समारोह में मुख्य अतिथि बनकर गए। उन्हें आईसीएस अफसर के बारे में याद था, उन्होंने समारोह खत्म होने के बाद रिटायर्ड हो चुके इस अधिकारी की खोज की।
पता चला कि वह तो कार्यक्रम में आगे की लाइन में बैठे थे, तब प्रणब उनके घर गए और उनके साथ चाय पी। तब अधिकारी ने बताया कि उन्होंने एक किताब लिखी थी, जिसमें तेजतर्रार पलटू की अखबार पढ़ने की घटना का जिक्र किया हुआ है।
बहन के दुलारे
पलटू अपने से छह साल बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी के बहुत चहेते थे। बहन की 18 साल की उम्र में शादी हो गई, अन्नपूर्णा देवी ने उन्हें हमेशा बेटे की तरह माना। अन्नापूर्णा ने हमेशा से अपने घर में प्रणब के लिए एक कमरा रिजर्व रखा। अन्नापूर्णा के साथ-साथ प्रणब अपने बड़े भाई पीयूष के साथ अखबार में छपी खबरों और विश्लेषणों पर गंभीर चर्चा करते थे।
आजादी की लड़ाई में भूमिका
प्रणब मुखर्जी के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। बात उन दिनों की है, जब उनके पिता जेल में थे। लाहौर प्रस्ताव का पालन करने के लिए हर साल 26 जनवरी का तिरंगा फहराने का फैसला लिया गया। तब प्रणब के बड़े भाई पीयूष छत पर तिरंगा फहराते और नीचे प्रणब शपथ पढ़ा करते थे, जो कि बहुत लंबी होती थी। प्रणब की बहन अन्नपूर्णा ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनका पलटू भी कभी राजनीति आकाश में छा जाएगा।
दादा की हाजिर जवाबी
संसद में प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी के लिए कई बार संकट मोचक की भूमिका निभायी। उनकी हाजिरी जवाबी और हर विषय पर गहन अध्ययन कमाल का था। अक्रॉस दा पार्टी लाइन लीडर उन्हें ऐसे ही नहीं माना गया, प्रणब हर किसी की बात गंभीरता से सुनते और फिर उन्हें राय रखने का मौका देते। इसके बाद ही फैसला लेते। जबतक सक्रिय राजनीति में रहे सुबह छह बजे उठकर रात दस बजे तक काम करना उनकी आदत में शुमार रहा।
जसवंत को नसीहत
संसद में किसी मुद्दे पर टैक्स कम करने पर बहस हो रही थी। जसंवत सिंह खड़े होकर बोल रहे थे, उन्होंने प्रणब दादा को घेरा तो प्रणब दादा ने कहा कि मैं तो केवल कभी पाइप ही पिया करता था, आप तो और ही पीते हो, मेरी सलाह है उसे छोड़ दो।
वाजपेयी ने कहा दादा से पंगा मत लो
बात उन दिनों की है, जब अटल बिहारी वाजपेयी सदन में बैठे थे और मुरली मनोहर जोशी हिंदुत्व की परिभाषा को लेकर बोल रहे थे, तब प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बीच में टोका और हिंदुत्व के बारे में बोला। तब अटल जी भी मुरली मनोहर जोशी से बोले कि प्रणब दा से पंगा मत लीजिए, ये तो चंडी पाठ करते हैं।
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