Categories: दुनिया

पाक की तरह ईरान को भी मोहरा बनाना चाहता है चीन

पिछले हफ्ते भारतीय विदेश नीति के हिसाब से दो घटनाएं अचानक हुईं, लेकिन वे दोनों ही महत्वपूर्ण रहीं। पहली, भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की चीनी रक्षामंत्री वेई फेंग्हे से भेंट और दूसरी, तेहरान रुककर ईरान के रक्षामंत्री से उनकी भेंट। ये दोनों घटनाएं पूर्व-नियोजित और सुनिश्चित नहीं थीं, लेकिन इनके परिणाम भारतीय विदेश नीति की दृष्टि से सार्थक हो सकते हैं।

ध्यान देने लायक बात यह है कि जब राजनाथ के मास्को में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने की खबर छपी तो विदेश मंत्रालय ने साफ-साफ कहा कि हमारे रक्षामंत्री चीन के रक्षामंत्री से वहां बात नहीं करेंगे। लेकिन बात हुई और दो घंटे हुई। चीनी रक्षामंत्री फेंग्हे ने तीन बार अनुरोध किया कि वे भारत के रक्षामंत्री से मिलना चाहते हैं और वे खुद चलकर उनके होटल आए।

चीन के इस शिष्टाचार का एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत ने पिछले एक-डेढ़ हफ्ते में पेंगौंग झील के दक्षिण में चुशूल क्षेत्र की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया है। चीन को यह संदेश पहुंच चुका है कि भारत दबने वाला नहीं है।

दोनों रक्षामंत्रियों ने अपनी-अपनी सरकार के पहले से जाहिर रवैयों को जरूर दोहराया। लेकिन सारे मामलों को बातचीत से सुलझाने की पेशकश की। भारत के सैनिकों का बलिदान हुआ है और भारत में प्रतिशोध का भाव बढ़ा हुआ है। इसके बावजूद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी बात सलीके से पेश की।

चीनी रक्षामंत्री और साथ बैठे उनके अफसरों पर इस बात का काफी असर हुआ कि राजनाथ जी ने दोनों देशों के बीच शांति के लिए चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की ऐतिहासिक उक्ति उद्धृत की। शायद इसी का परिणाम है कि अगले दो-तीन दिन में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की मॉस्को में चीनी विदेश मंत्री से भेंट होगी।

चीनी रक्षामंत्री का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में ऊंचा स्थान है और राजनाथ भी मोदी मंत्रिमंडल में सबसे वरिष्ठ हैं। वे भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसी तरह वेई फेंग्हे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नजदीकी माने जाते हैं।

अब तक हमारे विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चीनी नेताओं से कई बार बात कर चुके हैं लेकिन मास्को में हुए उक्त संवाद का असर कुछ बेहतर ही होगा। यह असंभव नहीं, जैसा कि मैं शुरु से कह रहा हूं, कि अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग के बीच संपूर्ण भारत-चीन सीमांत को पक्का करने पर सीधी बात हो सकती है।

यह ठीक है कि भारत-चीन, दोनों की जनता आवेश में है लेकिन दोनों देशों के नेता जानते हैं कि सीमांत पर युद्ध हुआ तो दोनों के लिए 1962 से भी ज्यादा विनाशकारी होगा। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने अभी तक कोई भी उत्तेजक बात नहीं कही है। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि भारत चीनी अतिक्रमण को चुपचाप बर्दाश्त कर लेगा। भारत की सैन्य-तैयारी में कोई कमी नहीं है।

सैन्य-तैयारी के साथ-साथ कूटनीतिक मुस्तैदी भी भारत पूरी तरह दिखा रहा है। हमारे रक्षामंत्री का अचानक ईरान पहुंच जाना आखिर किस बात का सबूत है? इधर चीन ने ईरान के साथ जबरदस्त पींगें बढ़ाई हैं। एक-डेढ़ माह पहले दुनिया को पता चला कि चीन अब ईरान में 400 अरब डाॅलर की पूंजी लगाएगा। अगले 25 साल में होनेवाले इस चीनी विनियोग का लक्ष्य क्या है? ईरान को भी पाकिस्तान की तरह अपना मोहरा बना लेना। वह ईरान में सड़कें, रेलें, बंदरगाह, स्कूल और हॉस्पिटल बनाएगा।

ईरानी फौज को वह प्रशिक्षण, हथियार, जासूसी-सूचना आदि में सहयोग देगा। उसका लक्ष्य है, अमेरिका और उसके मित्रों इजराइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के खिलाफ मोर्चाबंदी करना। चीन फिर अमेरिका के विरोधियों- फिलस्तीन, सीरिया और तुर्की आदि को भी हवा देना चाहेगा। आजकल अमेरिका चीन का जितना विरोधी हो रहा है, उससे भी ज्यादा वह ईरान का है। ट्रम्प प्रशासन ने परमाणु मसले को लेकर ईरान पर दोबारा प्रतिबंध थोप दिए हैं। चीन इसी का फायदा उठाना चाहता है।

यह चीनी कूटनीतिक चक्रव्यूह भारत के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है, हालांकि प्रकट रूप से ऐसा कहा नहीं जा रहा। भारत ने ईरान के चाहबहार बंदरगाह और चाहबहार-जाहिदान सड़क बनाने का जो जिम्मा लिया हुआ है, वह खटाई में पड़ सकता है। मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों से ईरान के जरिए आवागमन की व्यवस्था अधर में लटक सकती है। अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए भारत ने जो जरंज-दिलाराम सड़क बनाई थी, चीन चाहेगा कि भारत उसके उपयोग से वंचित हो जाए।

पाक का वर्चस्व बढ़ाने के लिए चीन तालिबान की पीठ भी ठोक सकता है। चीन चाहेगा कि शिया ईरान और सुन्नी पाकिस्तान में कोई सांठ-गांठ हो जाए। हमारे रक्षामंत्री की यह ईरान यात्रा इन्हीं सब आशंकाओं के निराकरण की दृष्टि से हुई है। ईरान के संबंध अमेरिका से बहुत खराब हैं और आजकल भारत से अमेरिका के संबंध बहुत अच्छे हैं। इसके बावजूद भारत के रक्षामंत्री और विदेश मंत्री ईरानी नेताओं से बात कर रहे हैं, इसका अर्थ क्या है? क्या यह नहीं कि भारत किसी का पिछलग्गू नहीं है। वह अपने राष्ट्रहितों की रक्षा को सर्वोपरि समझता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

admin

Share
Published by
admin

Recent Posts

आतंकी हमले नौसेना और खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों की मौत

दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में भारतीय नौसेना के अधिकारी…

4 hours ago

सऊदी अरब का दौरा बीच में छोड़ भारत लौट रहे PM मोदी

 नई दिल्ली। पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले को भारत ने किस गंभीरता से लिया…

4 hours ago

लखनऊ के नवाबों की घर में कटी नाक, दिल्ली से नहीं कर पाए हिसाब बराबर

नई दिल्ली। गेंदबाजों की शानदार वापसी और फिर केएल राहुल- अभिषेक पोरेल के शानदार अर्धशतकों के…

4 hours ago

Attack: आतंकियों ने क्यों रचा ये कायराना षड्यंत्र?

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आज आतंकियों ने पर्यटकों पर हमला किया। इस हमले में…

4 hours ago

सीएम योगी, मायावती-अखिलेश समेत विपक्ष ने आतंकी हमले की निंदा

 लखनऊ। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले की निंदा भाजपा सहित विपक्षी पार्टियों…

4 hours ago

बढ़ाई गई निगरानी, पहलगाम आतंकी हमले के बाद यूपी में अलर्ट

लखनऊ। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट हो गई हैं।…

4 hours ago