नाबालिग बच्चे की मां ही सर्वाधिक उपयुक्त नैसर्गिक अभिभावक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज।  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिग बच्चे की मां ही उसकी सबसे उपयुक्त नैसर्गिक अभिभावक हो सकती है। बच्चा अपनी मां की अभिरक्षा में सर्वाधिक सुरक्षित माना जाएगा। हालांकि कानून की नजर में बच्चे  का हित सबसे से ऊपर होता है। अदालत को बच्चे की कस्टडी पर विचार करते समय यह देखना होता है कि बच्चे का हित किसके साथ सबसे ज्यादा सुरक्षित है।

इसके बावजूद यदि मां के साथ कोई विशेष परिस्थिति के कारण देखभाल करने में अक्षम नहीं है  तो उसे ही सबसे उपयुक्त अभिभावक माना जाएगा। कोर्ट ने तीन वर्षीय बच्चे को उसकी दादी और ताऊ की अभिरक्षा से मुक्त कराकर मां की सुपुर्दगी में देने का निर्देश दिया है। एटा की रीतू की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया है।

कोर्ट ने दादी और ताऊ की ओर से उठाई गई इस आपत्ति का भी जवाब दिया कि वह दोनों बच्चे के लिए अजनबी नहीं है। नजदीकी रिश्तेदार हैं इसलिए उनकी अभिरक्षा को अवैध निरुद्धि नहीं कहा जा सकता है और न ही उनके विरुद्ध बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी की जा सकती है।

इस पर कोर्ट का कहना था कि मां के होते हुए यदि बच्चा अपने नजदीकी रिश्तेदारों की अभिरक्षा में है तो इसे अवैध निरुद्धि ही माना जाएगा। क्योंकि मां बच्चे की नैसर्गिक अभिभावक है। हालांकि कोर्ट ने दादी और ताऊ की बच्चे के भविष्य के प्रति चिंता को स्वाभाविक करार दिया है।

मामले के अनुसार रीतू की शादी 2015 में श्याम सुुंदर उर्फ श्यामू के साथ हुई थी। उनके दो बच्चे मोहन उर्फ भोले और झलक हुए। श्यामू बेरोजगार था और इससे ऊब कर उसने खुदकुशी कर ली । रीतू का कहना था जब वह श्यामू की तेहरवीं में शामिल होने अपनी ससुराल गई तो उससे बुरा बर्ताव किया गया और भोले को उसकी सास और जेठ ने जबरदस्ती अपने पास रख लिया। भोले की अभिरक्षा लेने के लिए उसने पुलिस अधिकारियों को प्रार्थनापत्र दिए मगर कोई कदम नहीं उठाया गया। तब उसने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की है।

कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी पक्षों को हाजिर होने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश पर भोले की दादी और ताऊ उसे लेकर अदालत में हाजिर हुए। कोर्ट ने मामले की सुनवाई अपने चैंबर में की। न्यायाधीश ने तीन साल के भोले से भी बात की। हालांकि बेहद छोटी  उम्र का होने के कारण उसकी पसंद में कोई स्पष्टता नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि कानून की नजर में बच्चे की मां या पिता ही उसके नैसर्गिक अभिभावक हैं। भोले की दादी की उम्र अधिक हो चुकी है वह खुद अपनी बेटी और दामाद के साथ रह रही हैं। जबकि ताऊ ने भोले को उसकी मां की अभिरक्षा में देने पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

कोर्ट ने भोले को एक सप्ताह में उसकी मां की सुपुर्दगी में देने का आदेश दिया है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो सीजेएम एटा से कहा है कि वह पुलिस की मदद से भोले की सुपुर्दगी सुनिश्चित कराएं। दादी और ताऊ को सप्ताह में एक बार सुबह दस से दिन में दो बजे के बजे के बीच भोले से मिलने की छूट दी है। कोर्ट ने रीतू को निर्देश दिया है कि वह भोले की दादी से उसकी मुलाकात सम्मान व आदर के साथ कराए।

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