लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान 2025 तक इंतजार करने के मूड में हरगिज नहीं दिख रहे हैं। उनकी पार्टी ने उन्हें इसी चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर रखा है। वे कई तरह से नीतीश सरकार के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं और गठबंधन में रहने के बावजूद भाजपा की चुप्पी बता रही है कि नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।
हाथरस में दलित बेटी के साथ बरती गई क्रूरता के बाद भाजपा कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहती कि बिहार विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक उसके उलट चला जाए।
16 फीसदी है दलित वोट बैंक
बिहार में दलित वोट बैंक 16 फीसदी है। लगभग इतनी ही संख्या मुस्लिम वोट बैंक की है। यादव वोट बैंक 12 फीसदी है। शायद यही वजह है कि बिहार में दलित राजनीति बाकी जातियों की राजनीति से ज्यादा धारदार दिख रही है। जदयू में नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना कर दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की।
इससे पहले नीतीश उस जीतनराम मांझी को जदयू के समर्थन में ले आए, जिन्हें सीएम बनाने और हटाने तक की पटकथा उन्होंने खुद लिखी थी। रालोसपा को जब जदयू और भाजपा दोनों ने दरकिनार कर दिया तो उपेंद्र कुशवाहा ने दलितों की पार्टी बसपा के साथ समझौता कर नया गठबंधन बना लिया।
लोजपा का 7 निश्चय पर सवाल, जदयू ने चौधरी-मांझी से दिया जवाब
एनडीए के घटक लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान, नीतीश कुमार पर काफी मुखर रहे हैं। बाढ़ और कोरोना से बचाव के लिए किए गए सरकारी इंतजाम पर सवाल उठाए। नीतीश कुमार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना सात निश्चय पर भी सवाल उठा दिया।
यही नहीं, यहां तक कह दिया कि उनकी सरकार बनी तो वह इस योजना में हुई गड़बड़ियों की जांच भी कराएगी। चिराग ने ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया है। इस सब पर लगाम लगाने के लिए जदयू पहले मांझी को निकट लाया और अब अशोक चौधरी को बड़ी जवाबदारी दे दी।
अशोक चौधरी को पहले ही बतौर मंत्री उन्होंने भवन निर्माण जैसा महत्वपूर्ण विभाग दे रखा था। एक समय चौधरी बिहार में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे, लेकिन पिछले चुनाव से लेकर इस चुनाव तक तस्वीर ही बदल गई।
रजक को जदयू ने निकाला, राजद ने हाथों-हाथ लिया
बिहार में दलित राजनीति तेज हुई तो नीतीश सरकार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने मंत्रालय और पार्टी दोनों छोड़ राजद में जाने का फैसला लिया था, लेकिन इससे पहले ही उन्हें बेदखल कर दिया गया। श्याम रजक को हटाने और चिराग को ‘साइज’ में रखने के लिए नीतीश कुमार ने मांझी और अशोक चौधरी को तरजीह दी।
यह दलित राजनीति का ही जोर है कि राजद ने श्याम रजक की घर वापसी पर खुशी का इजहार किया। राजद ने इससे पहले रामविलास पासवान के दामाद अनिल कुमार साधु को पार्टी में तरजीह दे रखी है।
जदयू चलता रहा है लोजपा को कमजोर करने के दांव
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2005 में इसी दलित वोट वोट बैंक को साधने के लिए 22 में से 21 दलित जातियों को महादलित घोषित किया था। उन्होंने पासवान जाति को इसमें शामिल नहीं किया। इसके पीछे की मंशा रामविलास पासवान की राजनीति को प्रभावित करना था। 2018 में उन्होंने पासवान जति को भी महादलित जाति में शामिल कर लिया।
जदयू, लोजपा को कमजोर करने के बाकी जवाबी दांव भी चल सकती है। लोजपा भी इस वक्त अपने पूरे रंग में है। नीतीश सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने वाली लोजपा को भाजपा रोक भी नहीं रही है। राजनीति जिनको थोड़ी भी समझ आती है वे जानते हैं कि भाजपा, नीतीश कुमार से अंदर ही अंदर कितने दुखी है। दुख का कारण भी इतिहास है।
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