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अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर : त्योहारी सीजन में महंगाई की मार, थम नहीं रहे दाम

नई दिल्ली। त्योहारी सीजन में महंगाई ने आम उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ा दी है। उपभोक्ता महंगाई दर सितंबर में 65 बीपीएस (0.65%) बढ़कर 7.34% के स्तर पर पहुंच गई है। अगस्त में यह 6.69% पर थी। यह बढ़त इसलिए हुई, क्योंकि हाल ही में खाद्य पदार्थों की कीमतों में बहुत तेजी देखी गई है। यह पिछले 8 महीनों का सबसे ऊंचा स्तर है।

हालांकि, 2019 के सितंबर की तुलना में यह करीब दोगुनी है। उस समय यह 3.99% पर थी। उधर आईआईपी के आंकड़ों में 8 प्रतिशत की गिरावट अगस्त में आई है। यह जानकारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक है।

अगस्त में मिली थी राहत

बता दें कि खाने के सामान की महंगाई दर कुछ कम होने से अगस्त 2020 में उपभोक्ता महंगाई में थोड़ी राहत ​मिली थी। जुलाई के 6.73% के स्तर से यह कम होकर 6.69% पर पहुंच गई थी। सितंबर 2019 में खुदरा महंगाई 3.99% थी। वैसे सितंबर 2020 का आंकड़ा आरबीआई के अनुमान से भी ज्यादा है। आरबीआई का अनुमान 2 से 6 % के बीच में था।

एनएसओ ने जारी किया आंकड़ा

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य पदार्थों की महंगाई सितंबर में बढ़कर 10.68% हो गई, जो अगस्त में 9.05% थी। दूसरी ओर अगस्त में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) के मोर्चे पर झटका लगा है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले माह औद्योगिक उत्पादन 8% गिर गया था। इसके पीछे मुख्य वजह मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग और पावर जनरेशन सेक्टर्स में कम उत्पादन रहा है। अगस्त 2019 में यह 1.4% गिरा था।

अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन गिरा

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक डेटा के मुताबिक, अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन 8.6% गिरा, जबकि माइनिंग और पावर जनरेशन सेगमेंट में उत्पादन को क्रमश: 9.8% और 1.8% का झटका लगा। अगस्त 2019 में औद्योगिक उत्पादन में 1.4% की गिरावट दर्ज की गई थी।

सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने बयान में कहा कि कोविड-19 आने के बाद के महीनों के आईआईपी की महामारी से पहले के महीनों के आईआईपी से तुलना करना सही नहीं होगा। प्रतिबंधों में धीरे-धीरे मिली छूट से आर्थिक गतिविधियों में सुधार आया है।

महंगाई से अर्थव्यवस्था पर असर

लगातार महंगाई से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर हो रहा है। अप्रैल-जून की तिमाही में देश की जीडीपी 23.9% गिरी थी। हालांकि, हाल के समय में आरबीआई ने रेपो रेट में 115 बेसिस प्वाइंट यानी 1.15% की कटौती की थी। इस महीने में आरबीआई की मीटिंग में इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।

वैसे अब अनलॉक हो चुका है। उम्मीद है कि आर्थिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ेंगी। इसका असर जीएसटी कलेक्शन पर भी दिखा है। जीएसटी कलेक्शन कोविड-19 के पहले के महीनों के करीब है।

आलू, टमाटर और प्याज समेत सभी हरी शाक-सब्जियों के दाम आसमान पर हैं और फिलहाल राहत मिलने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। सब्जी कारोबारी बताते हैं कि मानसून के आखिरी दौर में जगह-जगह हुई भारी बारिश में फसल खराब होने की वहज से आवक कमजोर है।

देश की राजधानी दिल्ली स्थित आजादपुर मंडी में आलू का थोक भाव बीते एक सप्ताह से 16 रुपये से 51 रुपये प्रति किलो है। प्याज का थोक भाव थोड़ा नरम हुआ है लेकिन खुदरा भाव में कोई बदलाव नहीं है। प्याज का थोक भाव 12.50 रुपये से 35 रुपये किलो है जबकि खुदरा भाव 45 रुपये 60 रुपये प्रति किलो चल रहा है। टमाटर के दाम में बीते दिनों थोड़ी कमी आई थी, लेकिन अब फिर दाम में तेजी आ गई है। टमाटर का थोक भाव छह रुपये से 42 रुपये प्रति किलो जबकि खुदरा भाव 60 रुपये से 70 रुपये प्रति किलो है।

ग्रेटर नोएडा के सब्जी विक्रेता बलवीर ने कहा कि थोक मंडियों में सब्जियों की आवक कम है और भाव ज्यादा इसलिए उन्हें भी उंचे भाव पर सब्जियां बेचनी पड़ रही हैं।

चैंबर्स ऑफ आजादपुर फ्रूट्स एंड वेजिटेबल्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट एम.आर. कृपलानी का भी यही कहना है कि मांग के मुकाबले आपूर्ति कम होने से भाव तेज है।

कारोबारी बताते हैं कि आगे नवरात्र का त्योहार शुरू हो रहा है जिस दौरान उत्तर भारत में ज्यादातर लोग नॉन-वेज नहीं खाते हैं, इसलिए शाक-सब्जियों की मांग बढ़ जाती है और आवक में भी जल्द सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। लिहाजा, सब्जियों की महंगाई से फिलहाल राहत मिलने की गुंजाइश नहीं है।

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