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बिहार चुनाव: नतीजों से पहले किस डर से चिंतित है कांग्रेस आलाकमान

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में अब कुछ ही घंटों का समय बचा है। 10 नवंबर को ये तय हो जाएगा कि बिहार की जनता तेजस्‍वी के नए चेहरे पर भरोसा करती है या फिर नीतीश कुमार को एक और मौका देती है। चुनाव परिणाम अपने से पहले सभी एग्जिट पोल को देखते हुए ये अनुमान लगाया जा रहा है कि राज्य में विपक्षी महागठबंधन की सरकार बन सकती है।

एग्जिट पोल की माने तो आरजेडी गठबंधन को ज्‍यादा सीटें मिल रहे हैं तो वहीं कांग्रेस की भी सीटें बढ़ी हैं। बिहार में अपने अच्‍छे प्रदर्शन से उत्‍साहित कांग्रेस आलाकमान ने रणदीप सिंह सुरजेवाला और अविनाश पांडे को बिहार का पर्यवेक्षक नियुक्त किया है।

राजनीतिक जानकारों की माने तो कांग्रेस आलाकमान पर्यवेक्षक नियुक्‍त करने में इस लिए भी जल्‍दीबाजी की है कि क्‍योंकि उसे डर है कि कहीं बिहार में भी मध्‍य प्रदेश, गोवा गुजरात जैसी कहानी न दोहराई जाए।

दरअसल, बिहार चुनाव को लेकर सामने आए एग्जिट पोल में कांग्रेस-आरजेडी-वाम दलों के महागठबंधन की स्थिति मजबूत दिख रही है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व नतीजों के बाद का स्थिति और आगे की तैयारी को लेकर मंथन में जुट गया है।

बात करें मध्य प्रदेश की तो यहां करीब 15 महीने तक चली कमलनाथ सरकार इसी साल मार्च में गिर गई। ऐसा उस समय हुआ जब पार्टी के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़ा। उनके पार्टी से अलग होते ही उनके समर्थन में 22 विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

बस यहीं से कमलनाथ सरकार की मुश्किलें बढ़ीं। मुख्यमंत्री कमलनाथ और पार्टी के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह इस स्थिति को लेकर शायद तैयार नहीं थे कि कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से अलग होंगे। बस यहीं कांग्रेस से चूक हुई।

पार्टी में अंदरखाने ये बात उठी कि मध्य प्रदेश में उनकी राजनीतिक विफलता की मुख्य वजह कहीं न कहीं पार्टी नेतृत्व की कमी ही था। प्रदेश पार्टी नेताओं और आला नेतृत्व के बीच बातचीत में कमी मुख्य वजह रही। जिसके चलते कमलनाथ सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी।

गुजरात में भी इसी साल हुए राज्यसभा चुनाव से पहले बड़ा सियासी घटनाक्रम देखने को मिला जब गुजरात विधानसभा से कांग्रेस के आठ विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे की वजह से कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा।

गुजरात की चार राज्यसभा सीटों पर हुए चुनाव में तीन सीटें बीजेपी ने जीती और एक सीट कांग्रेस ने जीती। कांग्रेस उम्मीदवार शक्ति सिंह गोहिल जीत गए, वहीं पार्टी के दूसरे उम्मीदवार भरत सिंह सोलंकी हार गए। वहीं इस्तीफा देने वाले 8 कांग्रेस विधायकों में से 5 विधायक बाद में बीजेपी में शामिल हो गए।

गोवा में भी साल 2019 में ऐसा ही खेल हुआ जब कांग्रेस के दस विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया। विधानसभा में नेता विपक्ष चंद्रकांत के नेतृत्व में इन विधायकों ने केंद्रीय नेतृत्व से नाराज होकर अलग ग्रुप बनाया। इनके बीजेपी में जाने से जहां सत्ताधारी पार्टी विधानसभा में और मजबूत हुई वहीं कांग्रेस के महज पांच विधायक ही बचे हैं। वहां भी केंद्रीय नेतृत्व की अनदेखी के चलते पार्टी नेता अलग हुए।

इनके अलावा मणिपुर में भी इसी साल अगस्त में कांग्रेस का झटका लगा जब नाराज चल रहे पांच पार्टी विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया। कांग्रेस छोड़ने वालों में मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री ओकाराम इबोबी सिंह के भतीजे भी शामिल थे।

अलग-अलग राज्यों में हुए इन सियासी घटनाक्रम में कहीं ना कहीं कांग्रेस आलाकमान पर अनदेखी के आरोप लगे थे। ऐसे में पार्टी नेतृत्व बिहार चुनाव को लेकर कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है। यही वजह है कि पार्टी ने इस बार पहले ही अपनी तैयारी तेज करते हुए दो नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी के साथ सूबे के सियासी हालात पर नजर रखने के लिए भेज दिया।

बताते चलें कि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन के साथ 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। एग्जिट पोल की माने तो कांग्रेस को 20 से 30 सीटों पर जीत हासिल हो सकती है। वहीं एनडीए और आरजेडी को 100 के आसपास सीट मिल सकती है। ऐसी स्थिति में अगर मध्‍य प्रदेश की तरह कहीं बिहार में भी कांग्रेस विधायक टूटते हैं तो महागठबंधन को काफी नुकसान हो सकता है।

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