बिहार में यदि सबकुछ ठीक रहा तो कल यानी सोमवार को नई सरकार शपथ लेगी। सबकुछ ठीक रहने की बात इसलिए हो रही है क्योंकि चुनाव नतीजों में जेडीयू को जितनी सीटें मिली हैं उसको लेकर उसके मन में खटास है।
और ये खटास अब थोड़ा थोड़ा सतह पर आता हुआ दिख रहा है। नीतीश कुमार ने अपनी भाव भंगिमाओं से साफ कर दिया है कि वे सत्ता संभालने से पहले बहुत कुछ साफ कर लेना चाहते हैं।
बीजेपी के साथ सरकार बनाने से पहले वह साफ कर लेना चाहते हैं कि एनडीए की केंद्रीय इकाई में एलजेपी की क्या भूमिका रहने वाली है। यह तो शीशे की तरह साफ हो गया है कि एंटी इंकमबेंसी के साथ जेडीयू की सीटें घटने में एलजेपी की बड़ी भूमिका रही है।
जेडीयू के नेता साफ कहते हैं कि आत्मघाती सियासी पार्टी ने उनका नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में एनडीए में एलजेपी ने बने रहने को लेकर वे बीजेपी को आगाह कर चुके हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व को इस बारे में बता दिया गया है।
इस बीच जेडीयू के सीनियर लीडर विजय चौधरी ने यह एलजेपी पर कार्रवाई करने की बात उठाकर शपथ से पहले एनडीए के भीतर सियासी तापमान बढ़ा दिया है। आज एनडीए के नेता पद का चुनाव से पहले बीजेपी पर इस बारे में अपना रुख साफ करने का दबाव बढ़ गया है।
जेडीयू के ताजा रुख को देखते हुए बीजेपी ने इस काम के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी बिहार भेजा है। इसके अलावा देवेंद्र फड़नवीस और भूपेंद्र यादव ने भी बिहार में मोर्चा संभाल लिया है।
गठबंधन में बीजेपी की सीटें बढ़ जाने के साथ प्रदेश सरकार में पार्टी की भूमिका बढ़ जाने को लेकर कार्यकर्ताओं में उत्साह है तो दूसरी ओर जेडीयू खेमे में किसी दबाव को लेकर असमंजस और सावधानी दिख रही है। जेडीयू के कार्यकर्ता सरकार के गठन से पहले इस गुत्थी को सुलझा लेना चाहते हैं।
मंत्रिपरिषद में अपनी पार्टी के सदस्यों की संख्या के साथ कई मसलों पर पार्टी अपना रुख पेश कर चुकी है। माना ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर अपनी ही पार्टी के विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की मांग रख चुके हैं। विधानसभा अध्यक्ष रह चुके विजय चौधरी को वे फिर से इस काम के लिए उपयुक्त बता चुके हैं।
गठबंधन को कुल 125 सीटें मिली हैं, जो बहुमत के आंकड़े से महज तीन ज्यादा है। ऐसे में सरकार की अस्थिरता और विधानसभा की भूमिका को लेकर सभी दलों में एक खास तरह की चिंता अभी से दिखने लगी है। इस चर्चा ने भी जोर पकड़ लिया है कि नीतीश अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए अपनी पार्टी के नेतृत्व से कांग्रेस कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर सकते हैं।
उधर निर्दलीयों और छोटे दलों में तोड़फोड़ करके बीजेपी भी अपने पाले में करने की कोशिश कर सकती है। बिहार की सियासत को गहराई से समझने वाले इस सियासी प्रपंच के बखूबी भांप चुके हैं।
चिराग के लिए बढ़ेगी मुश्किलें
जेडीयू नेता विजय चौधरी के खुलकर चिराग पर कार्रवाई की मांग ने बीजेपी को धर्म संकट में डाल दिया है। माना जा रहा था, चिराग पासवान को समझाबुझा कर दिल्ली में सक्रिय रहने के लिए मना लिया जाएगा ताकि भविष्य में वह प्रदेश सरकार पर वे किसी तरह का सवाल नहीं उठाएं।
चुनाव से पहले उन्होंने नीतीश पर लगातार सियासी हमले कर उनकी छवि को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। लेकिन जेडीयू की मांग के बाद बीजेपी नेतृत्व एलजेपी को लेकर धर्मसंकट में दिख रहा है।
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