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गांव-गुरुद्वारों में चल रहीं नॉन स्टॉप रसोइयां, ताकि किसानों को न हो खाने की कमी

नई दिल्ली। कृषि सुधार कानून के खिलाफ किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं तो पंजाब के गांवों में महिलाओं व युवाओं ने रसोई का मोर्चा संभाल रखा है। यहां कहीं गांव में सांझा चूल्हा चल रहा है तो कहीं गुरुद्वारों में खाना बन रहा है। आंदोलन में डटे किसानों के लिए खाने की कमी न हो, इसके लिए दिन-रात रसोई में सरसों का साग, रोटी और पिन्नियां बन रही हैं। आसानी से बनाई जाने वाली गोभी, प्याज, गाजर, टमाटर जैसी सब्जियां कच्ची ही पहुंचाई जा रही हैं।

महिलाएं खाना तैयार कर रही हैं और युवाओं का जत्था उसे लेकर सिंघू व टिकरी बॉर्डर तक पहुंचा रहा है। खास बात यह है कि इसका पूरा खर्च गांव के लोग मिलकर उठा रहे हैं। वहीं, गुरुद्वारों से भी दिल खोलकर खाने समेत हर तरह की मदद खुलकर की जा रही है।

आंदोलन और खाने का मैनेजमेंट 4 प्वाइंट में समझें

बठिंडा जिले के रामपुरा फूल गांव में किसानों खाना बनाते ग्रामीण।

1. खाने की तैयारी और सब्जियां इकट्ठा करना

गांव में एक जगह पर सब इकट्ठा हो रहे हैं। जिसके घर या खेत में जो सामान या सब्जी है, वो लेकर वहां पहुंच जाते हैं। सरसों का साग इसलिए कि वह जल्दी खराब नहीं होता और पंजाबियों का पसंदीदा तो है ही। इस वक्त सरसों के साग का सीजन भी चल रहा है। गांव वालों ने आपस में मिलकर पहले सामान इकट्ठा किया। फिर दिन-रात डटकर सरसों का साग तैयार किया। घी, सब्जियां और बाकी रसद पैक करके तैयार कर दी।

फगवाड़ा के गांव जगतपुरा जट्‌टां में आंदोलनरत किसानों के लिए एक टन पिन्नियां तैयार की गईं हैं।

2. ऐसा खाना जो टिकाऊ हो और ज्यादा दिन चले
फगवाड़ा का गांव जगतपुरा जट्‌टां। यहां किसानों के लिए देसी घी की पिन्नियां तैयार की जा रही हैं। करीब एक टन पिन्नियां यहां तैयार हो चुकी हैं। दिन-रात जुटकर महिलाओं व युवाओं ने पिन्नियां तैयार की, जिन्हें पैक कर आंदोलन वाली जगहों पर भिजवाया जा रहा है। रोटियां तो हैं ही, लेकिन देसी घी से बनी पिन्नियां खाने से ज्यादा देर तक भूख नहीं लगती और आंदोलन में डटे किसान परेशान न हों, इसके लिए ऐसी तैयारी की गई है।

3. आंदोलन के लिए शादी जैसा मैनेजमेंट

जगतपुरा जट्टां के जसविंदर सिंह, मनजिंदर सिंह, जसवीर जौहल व जसवंत सिंह ने बताया कि तैयारी, खाना बनाने और पैकिंग का मैनेजमेंट किया गया है। सभी मिलकर पूरी देखरेख कर रहे हैं। यहां के गुरुद्वारा साहिब में यह लंगर तैयार कराया गया। इसे देखकर ऐसा लगता है कि किसी आंदोलन के लिए नहीं, बल्कि किसी शादी के लिए बंदोबस्त किए जा रहे हों।

कपूरथला के एक गांव में किसानों के लिए रोटियां बनाती महिलाएं।

4. खाने का ट्रांसपोर्टेशन

बठिंडा के रामपुरा फूल में युवा कुलदीप सिंह, अमनजीत सिंह, संदीप सिंह, अमृतपाल सिंह, प्रदीप सिंह, हरदीप सिंह व जगजीत सिंह टिकरी बॉर्डर के रास्ते में हैं। उनके ट्रैक्टर में करीब एक हजार किसानों के लिए सरसों का साग, 10 किलो देसी घी और गाजर, गोभी, प्याज, टमाटर की बोरियां लदी हैं। युवा कहते हैं कि उन्हें चले हुए 24 घंटे से ज्यादा का समय हो चुका है। खाना आंदोलन की जगह पर जा रहे हैं।

ग्रामीण कहते हैं कि आंदोलन भले ही किसान कर रहे हों लेकिन यह ऐसा कानून है, जिसका असर सब पर पड़ने वाला है। इसलिए इस आंदोलन में जैसा भी हो सके, सब अपना योगदान कर रहे हैं।

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