Categories: राजनीति

हर मुद्दे पर ला रही आर्डिनेंस, पर राम मंदिर पर क्यों बच रही बीजेपी?

नयी दिल्ली। भारतीय राजनीतिक पार्टियां अपना अपना वोटबैंक बनाने और इसे कायम रखने की हर संभव कोशिश करती है। इसके लिए वह साम, दाम, दंड, भेद सभी विकल्पों को आजमाने से नहीं चूकती है। उल्लेखनीय है कि 2014 इलेक्शन में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर बनवाने का वादा करके वोट हासिल किए थे लेकिन उनका चार साल का कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद भी इस बारे में कोई पहल नहीं की गयी है। भाजपा नेता भी इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला देकर अपनी गरदन बचाने की कोशिश कर रहे है।

सर्वोच्च न्यायालय के विरुद्ध जाकर सरकार ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में जब से संशोधन किया है तब से पूरे देश में यह बहस छिड़ी हुई है कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट में आखिर बड़ा कौन है। इसके साथ ही कोर्ट में विचाराधीन राम मन्दिर जैसे अनेक संवेदनशील मुद्दों की भी चर्चा आम हो गयी है। इन मुद्दों के दम पर सत्ता हासिल करने वाले दल अब तक कोर्ट की दुहाई देकर ही पल्ला झाड़ते रहे हैं। कई बार हम सुनते हैं कि अमुक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगायी या अमुक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब माँगा।

सत्ताधारी दल के नेता भी अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं। राम मन्दिर सहित जितने भी राष्ट्रीय मुद्दे उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं, उन मुद्दों पर सत्ताधारी नेताओं का सदैव बड़ा नपा−तुला जवाब सुनने को मिलता है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, सरकार इसमें कुछ नहीं कर सकती, अदालत जो भी निर्णय देगी सरकार उसे ही मानेगी। कुछ दिनों पूर्व शिक्षामित्रों के सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय का सरकार अक्षरशः पालन कर रही है। भले ही शिक्षामित्र कितने भी व्यग्र क्यों न हो रहे हों। यह सब देखकर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च संस्था है।

लेकिन हाल ही में देश के नेताओं ने एस−सी/एस−टी एक्ट के मामले में शीर्ष अदालत के निर्णय को जिस तरह से पलटा, उससे यह बात एकदम से स्पष्ट हो गयी है कि भारतवर्ष में वोट बैंक की राजनीति से ऊपर कुछ भी नहीं है। जनहित और स्वानुभव के आधार पर दिए गए उच्चतम न्यायालय के फैसलों को देश के नेता कभी भी बदल सकते हैं। लोकतान्त्रिक प्रणाली के दुर्पयोग का इससे बड़ा उदहारण शायद ही कोई अन्य हो। एस−सी/एस−टी एक्ट में सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध जाकर किये गए संशोधन के बाद से देश का आम जन आसानी से यह बात समझ गया है कि सरकार यदि चाहे तो राम मन्दिर और धारा 370 या ऐसे सभी मसलों को अध्यादेश बनाकर सुलझाया जा सकता है।

राजतंत्रीय या सामंतशाही व्यवस्था को शोषणकारी मानते हुए विश्व के अनेक देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना की गयी। ताकि आम जन को न्याय मिल सके। भारत के लोकतन्त्र को विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहा जाता है। अर्थात यहाँ आम आदमी को न्याय मिलने की सम्भावना अन्य देशों की अपेक्षा कहीं अधिक है। इसी बिन्दु को केन्द्र में रखते हुए ही भारतीय संविधान की संरचना हुई थी। दलितों के सबसे बड़े हितैषी और विचारक डॉ. भीमराव अम्बेडकर को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने संविधान में वे सभी प्रावधान रखवाए जो दलितों के हित में थे। दलितोत्थान के दृष्टिगत उन्होंने आरक्षण जैसी व्यवस्था भी दी। लेकिन वे दस वर्ष बाद इसकी समीक्षा भी चाहते थे।

क्योंकि दूरदर्शी डॉ. अम्बेडकर आरक्षण को बहुत लम्बे समय तक रखना उचित नहीं समझते थे। अपने जीवन के अनेक कटु अनुभवों के बावजूद भी उन्होंने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम जैसा कोई कानून नहीं बनने दिया। लेकिन जैसे ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था आगे बढ़ी वैसे ही देश में वोटों की लामबन्दी शुरू हो गयी। वोटबैंक को केन्द्र में रखकर संविधान में जहाँ अनेक संशोधन किये गए वहीं सन 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जन जाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम जैसे कानून भी बनाये गए। गाँधी जी देश से जातिवाद समाप्त करना चाहते थे लेकिन हमारे कर्णधारों ने सत्ता की चाह में वह सब किया जिससे जातिवाद न केवल बना रहे बल्कि देश जाति और सम्प्रदाय के खांचों में बंटा भी रहे।

26 जनवरी 1950 को भारत के संप्रभु लोकतान्त्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद अर्थात् 28 जनवरी 1950 को भारत का उच्चतम न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय अस्तित्व में आया था। जो कि भारतीय संविधान के भाग 5 अध्याय 4 के तहत स्थापित देश का शीर्ष न्यायिक प्राधिकरण है। भारतीय संघ की अधिकतम और व्यापक न्यायिक अधिकारिता उच्चतम न्यायालय को प्राप्त है। संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका संघीय न्यायालय और भारतीय संविधान के संरक्षक की है। संविधान के अनुच्छेद 124 से 147 तक में वर्णित नियम उच्चतम न्यायालय की संरचना और अधिकार के प्रमुख आधार हैं। इस तरह से देश की सर्वोच्च अदालत का प्रमुख कार्य संविधान की सुरक्षा और उसके अनुरूप आम जन को न्याय दिलाना है।

लेकिन देश की संसद को संविधान में संशोधन का अधिकार प्राप्त है। संसद को यह अधिकार सम्भवतः इसलिए दिया गया होगा ताकि समय के साथ बदलती परिस्थितियों और व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर कानून बनाये व संशोधित किये जा सकें। लेकिन दुर्भाग्य से भारतीय संसद को प्राप्त इस विशेष अधिकार का राजनीतिक लाभ के लिए अब तक अनेक बार दुर्पयोग हो चुका है और आगे भी होता रहेगा। संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट के पास इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।

जहाँ तक संविधान में वर्णित कानूनों के सदुपयोग और दुर्पयोग का प्रश्न है। तो इस स्थिति का सबसे अधिक व्यावहारिक अनुभव सिर्फ और सिर्फ अदालतों के पास ही होता है। शायद अपने इसी अनुभव के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय ने एस−सी/एस−टी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगायी थी न कि पूरे कानून को ही समाप्त किया था। शीर्ष अदालत के इस निर्णय का विरोध करने वाले दलित संगठनों ने यह सिद्ध कर दिया है कि उनका न तो देश की पुलिस पर भरोसा है और न ही न्याय व्यवस्था पर ही। दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस ने विरोध की इस आग में जैसे ही घी डालना शुरु किया वैसे ही भाजपा को दलित वोट बैंक अपने नीचे से खिसकता हुआ दिखाई दिया और सरकार ने अदालतों के अनुभवों को दरकिनार करते हुए आनन−फानन में एस−सी/एस−टी एक्ट को संशोधित करके सदन के पटल पर रख दिया।

दलितों के विरोध को पहले से ही हवा दे चुकी कांग्रेस के लिए यह सब एकदम से अप्रत्याशित जैसा था और उसके पास इस बिल का समर्थन करने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा ही नहीं बचा। जिसका परिणाम देश के सामने है। इस सबके बाद देश की जनता को यह भलीभांति समझ में आ जाना चाहिए कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट में बड़ा कौन है।

वहीं दूसरी तरफ स्वर्ण संगठन मोदी सरकार पर हल्ला बोल चुके हैं। कई संगठन एलान कर रहे हैं कि अगर यह काला कानून नहीं हटाया जाता या संशोधन नहीं किया जाता है तो वह नोटा विकल्प का चुनाव कर सकते है। इसको देखते हुए केन्द्र सरकार भी परेशान दिखाई दे रही है क्योंकि एक तरफ विपक्षी पार्टियां सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा रही हैं वहीं दूसरी तरफ भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाने वाला स्वर्ण भी नाराज हो गया है।

admin

Share
Published by
admin

Recent Posts

कुलभूषण को अगवा कराने वाला मुफ्ती मारा गया: अज्ञात हमलावरों ने गोली मारी

भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को अगवा कराने में मदद करने वाले मुफ्ती…

1 month ago

चैंपियंस ट्रॉफी में IND vs NZ फाइनल आज: दुबई में एक भी वनडे नहीं हारा भारत

चैंपियंस ट्रॉफी 2025 का फाइनल आज भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेला जाएगा। मुकाबला दुबई…

1 month ago

पिछले 4 टाइटल टॉस हारने वाली टीमों ने जीते, 63% खिताब चेजिंग टीमों के नाम

भारत-न्यूजीलैंड के बीच चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला रविवार को दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में खेला…

1 month ago

उर्दू पर हंगामा: उफ़! सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब से…

अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बां थी प्यारे उफ़ सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब…

1 month ago

किन महिलाओं को हर महीने 2500, जानें क्या लागू हुई शर्तें?

दिल्ली सरकार की महिलाओं को 2500 रुपये हर महीने देने वाली योजना को लेकर नई…

1 month ago

आखिर क्यों यूक्रेन को युद्ध खत्म करने के लिए मजबूर करना चाहते है ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेनी नेता की यह कहकर बेइज्जती किए जाने के बाद कि ‘आप…

1 month ago