जालंधर/कुंडली बॉर्डर। कृषि कानूनों के खिलाफ 24 सितंबर से शुरू किसान आंदोलन को 82 दिन हो चले हैं। फिलहाल सरकार और किसानों के बीच कानूनों में संशोधन को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है। 19वीं सदी से लेकर 20वीं सदी के 100 साल के किसान संघर्षों को देखा जाए तो कभी भी शासन इतनी आसानी से किसानों के आगे नहीं झुका। चाहे वो 1907 की पंजाब की सबसे लंबी चलने वाली पगड़ी संभाल जट्टा लहर हो या फिर मुजाहरा लहर।
आंदोलन कितना ताकतवर होता जा रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की सीमाओं से लगे गांवों के किसान 20 से 22 घंटे की यात्रा के बाद कुंडली बॉर्डर पहुंचे और धरने में शामिल हुए। लोक कलाकार आंदोलनकारियों का मनोरंजन कर रहे हैं। समर्थन का आलम यह है कि हरियाणा में धर्मशालाओं ने किसानों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
दिल्ली मोर्चे, पगड़ी संभाल जट्टा और मुजाहरा लहर में बहुत सी समानताएं
दिल्ली के मोर्चे में इन दोनों लहरों का मिला जुला स्वरूप देखने को मिल रहा है। दिल्ली मोर्चे, पगड़ी संभाल जट्टा और मुजाहरा लहर में बहुत सी समानताएं हैं। इन दो लहरों की सफलता पर ही दिल्ली का मोर्चा काम कर रहा है। पहला बड़ा फार्मूला पगड़ी संभाल जट्टा लहर से लिया गया है। पगड़ी संभाल जट्टा लहर की ताकत तब साहित्यकार, लेखक, शायर थे। इसी तरह दिल्ली मोर्चा में भी आमजन में जोश भरने का काम गायक कर रहे हैं।
सब कलाकार खुद लहर का हिस्सा बने हैं। दूसरा स्वरूप मुजाहरा लहर से मिलता है। मुजाहरा लहर ही पहली ऐसी लहर थी जिसमें किसान महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। दिल्ली किसान मोर्चा में भी महिलाओं ने घर-परिवार और खेतों की कमान संभाल रखी है ताकि किसानों को खेती की चिंता न हो और वो डटे रहें।
इन पर आंदोलन हुए
1. आबादकारी बिल 1906
मांग : जमीनों को साहूकारों से मुक्त कराना
9 महीने लंबा चला अब तक का इकलौता किसान आंदोलन
ब्रिटिश शासन काल में आबादकारी नामक बिल लाया गया था। इसका उद्देश्य किसानों की जमीनों को हड़पकर बड़े साहूकारों के हाथ में देना था। इस बिल के अनुसार कोई भी किसान अपनी जमीन से पेड़ तक नहीं काट सकता था। अगर किसान ऐसा करता पाया जाता तो नोटिस देकर 24 घंटे में उसकी जमीन का पट्टा कैंसिल करने का अधिकार शासन के पास था।
दूसरी सबसे खतरनाक बात यह थी कि जमीन किसान के बड़े बेटे के नाम पर ही चढ़ सकती थी। अगर उसकी औलाद नहीं होती और मुखिया किसान मर जाता तो जमीन अंग्रेजी शासन या रियासत को चली जानी थी। इस बिल को लाकर अंग्रेजों ने बारी दोआब नहर से सिंचित होने वाली जमीनों का लगान दोगुना कर दिया था।
बिल के खिलाफ 1907 में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया। इसकी अगुवाई सरदार अजीत सिंह ने की। इस लहर को हुंकारा 22 मार्च 1907 तो तब मिला जब लायलपुर में किसानों के जलसे में लाला बांके दयाल ने पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल ओए…गीत गाया। किसानों के दबाव के आगे शासन को झुकना पड़ा और नवंबर 1907 को कानून वापस ले लिए गए।
2. मुजाहरा लहर 1948
मांग : जमीन का मालिकाना हक
8 रिसायतों ने जमीनी हक दिलवाया था
मुजाहरा लहर को पैपसु लहर के नाम से भी जाना जाता है। 15 जुलाई 1948 को चली इस लहर का उद्देश्य साहूकारों की जमीनों पर पीढ़ियों से खेती कर रहे मुजाहरों को उनका मालिकाना हक दिलाना था। इस लहर में नाभा, पटियाला, जींद, मालेरकोटला, फरीदकोट, कपूरथला. नालागढ़ और कलसिया रियासत शामिल थी। सामंत लोग मुजाहरों को हक तो देना चाहते थे पर कुछ शर्तों पर।
इसके लिए उन्होंने इन्हें दो भागों में विभाजित कर दिया। 30 साल से ज्यादा समय से जमीन जोत रहे मुजाहरों को मालिकाना हक इस शर्त पर दिया जा रहा था कि वह उपज का एक हिस्सा असल मालिक को देंगे। इसे लेकर मुजाहरे कोर्ट में गए लेकिन फैसला उनके हक में नहीं हुआ। लंबे संघर्ष के बाद पैपसू राज्य ने तीन कानून पास करके मुजाहरों को मालिक बना दिया।
3. खुशहैसियत टैक्स विरोधी मोर्चा 1959
मांग : नहरी पानी से टैक्स खत्म कराना
नहरी पानी पर टैक्स के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे किसान
जिद पर अड़े सीएम प्रताप सिंह कैरों को झुकाया
भाखड़ा में डैम लगाने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने पंजाब सरकार को 104 करोड़ रुपए का कर्ज दिया था। इस बात को जनता में ज्यादा उजागर नहीं किया गया। डैम से निकलने वाली नहरों से जब किसानों की जमीन सिंचित होने लगी तो प्रताप सिंह कैरों ने किसानों पर यह कहते हुए बिल बनाकर टैक्स लगा दिया कि सिंचाई सुविधा के बदले किसान सरकार को खुशहैसियत टैक्स यानी किसानों को संपन्न बनाने के बदले टैक्स देना होगा।
21 जनवरी 1959 को किसानों ने यह टैक्स देने से मना करके मोर्चा बनाया। इस मोर्चे में 19 हजार के करीब किसानों ने भाग लिया और 10 हजार किसान जेल गए। इस मोर्चे में पहली बार 104 महिलाओं का मोर्चा बना जिसने जालंधर में बड़ा प्रदर्शन किया।
तब प्रताप सिंह कैरों ने कहा था कि किसान तो सुहागेे पर बैठा मान नहीं होता मैं तो कुर्सी पर बैठा हूं। अंत में नहरी टैक्स हटा दिया । इसी तरह से 22 मांगों को लेकर नीलीबार के मुजाहरे और मालिया बढ़ाने के खिलाफ अमृतसर किसान मोर्चे में भी किसान एकता की जीत हुई।
न उस बॉर्डर पर डरे, न इस बॉर्डर पर डरेंगे
हरियाणा में कुंडली बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन बड़ा होता जा रहा है। करीब 450 किमी दूर वाघा बॉर्डर से 20-22 घंटे की यात्रा कर भी किसान यहां पहुंच रहे हैं। सीमा से लगे गांवों के करीब 1000 किसान भी यहां धरना देने पहुंचे हैं। किसानाें ने कहा कि हम तो पहले से ही तमान बंदिशाें के बीच जान जोखिम में डालकर खेती करते आए हैं। आज सरकार देश भर के किसानों को काला कानून लाकर बंदिश में बांधना चाहती है। ऐसे में न हम उस बॉर्डर से डरे थे, न इस बॉर्डर पर डरेंगे।
तीनों कृषि कानूनों को खत्म कराकर ही घर लौटेंगे। अमृतसर के रणिका गांव के किसान सरताज कहते हैं कि खेत की जमीन पाकिस्तान बॉर्डर के पास है। हम अपनी जमीन पर भी खौफ के साए में खेती करते हैं। 6 से 7 घंटे के लिए वाघा बॉर्डर खुलता है। बीएसएफ की मौजूदगी में ही फसलाें की कटाई, बुआई और सिंचाई होती है। अब केंद्र सरकार नए कानून लाकर हमारा दर्द और बढ़ाना चाहती है। इसे हम सहन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि इस बॉर्डर और उस बॉर्डर में भी कई समानताएं हैं।
किसानों की मदद के लिए हजारों हाथ बढ़े
आंदोलन लंबा चलता देख चारों तरह से मदद के लिए हाथ आगे बढ़ रहे हैं। हरियाणा में इसके लिए खास इंतजाम किए जा रहे हैं। सर्दी के मद्देनजर भी आंदोलन स्थलों पर प्रबंध कर रहे हैं। बहादुरगढ़ में धार्मिक संस्थाओं ने किसानों के नहाने, के लिए जहां मंदिरों व धर्मशालाओं के दरवाजे खोल दिए हैं। सिंघु बॉर्डर पर भी ऐसे ही प्रबंध कर दिए गए हैं। यहीं, एक उद्यमी ने अपनी फैक्ट्री में किसानों के लिए टॉयलेट, वॉशरूम, पानी आदि की व्यवस्था कर दी।
दूसरे राज्यों और देशों के नागरिकों से भी इस आंदोलन को समर्थन मिलने लगा है। कुवैत के स्माइल सालम समरी को भारत में चल रहे किसान आंदोलन का पता चला तो उसने वहां पर अपने साथी पंजाब के अमू कुवैत, लब्बा कुवैत और जेपी यादव के माध्यम से यहां देसी घी व मावे की पिन्नियों का कैंटर भेजा।
खालसा ऐड का विश्राम घर, एक समय में 500 किसानों के ठहरने का इंतजाम
खालसा ऐड के एशिया इंचार्ज अमनप्रीत सिंह ने बताया कि विख्यात खालसा ऐड ने आंदोलन में किसानों के लिए पीने के पानी, जूस, फ्रूट व मेडिकल सुविधाओं के साथ अब अस्थायी विश्राम घर बनाया है। इसमें 500 लोग सो सकते हैं। कंबल, गद्दे, पानी, गीजर, बाथरूम और मोबाइल चार्जर की व्यवस्था है।
आंदोलन में हिस्सा ले रहे कई अध्यापक, वे यहीं से बच्चों को ऑनलाइन पढ़ा भी रहे
फरीदकोट के जंडा सिंह वाला के प्राइवेट स्कूल के टीचर गुरजिंदर सिंह टिकरी भी बॉर्डर पर डटे हैं। वह सुबह से दोपहर तक स्कूली बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाते हैं। वहीं, दीपसिंह वाला गांव का चौथी का बच्चा जरनैल सिंह ऑनलाइन पढ़ाई करता है। वह अपने पिता राजेन्द्र सिंह किरती किसान यूनियन के प्रांतीय सचिव के साथ आया है।
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