नई दिल्ली। मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानून के खिलाफ देशभर के किसान सड़क पर है। किसान इसे काला कानून कह रहे हैं और सरकार से वापस लेने की बात कर रहे हैं।
देश के किसान और सरकार आमने-सामने हैं। न तो किसान झुकने को तैयार है और न ही सरकार। जानकारों का कहना है कि किसान नहीं झुक रहे हैं यह तो समझ में आता है लेकिन सरकार का अड़ा रहना समझ से परे हैं।
देशभर के अधिकांश किसानों का कहना है कि इस कानून के चलते उनका भविष्य बर्बाद हो जायेगा, लेकिन सरकार आज भी अड़ी है कि इस कानून से किसानों की किस्मत बदल जायेगी और उनकी आय दोगुनी हो जायेगी। फिलहाल सबसे बड़ा सवाल है कि जब यह कानून किसानों का हितैषी है तो आखिर किसानों को समझ में क्यों नहीं आ रहा है।
सरकार आखिर किसानों को समझा क्यों नहीं पा रही हैं। किसानों की चिंता यूं ही नहीं है। किसानों के चल रहे देशव्यापी आंदोलन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने की बहस के बीच पिछले दो माह में (अक्टूबर और नवंबर) में किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपजों की बिक्री होने पर कम से कम 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।
यह आंकड़े बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पोर्टल एगमार्कनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से ये जानकारी सामने आई है।
एगमार्कनेट देश भर की 3000 से ज्यादा थोक मंडियों में कृषि उत्पादों की आवक एवं उनके बिक्री मूल्यों की जानकारी देता है।
दूसरे शब्दों में कहें, तो ये राशि किसानों के जेब में जानी चाहिए थी, लेकिन केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी न मिलने पर किसान इससे महरूम रह गए।
आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा नुकसान मक्का किसानों को हुआ है, जहां बाजार मूल्य सिर्फ 1,100 और 1,550 के बीच रहा, जबकि इसकी एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल है। इसके चलते अक्टूबर और नवंबर महीने में इन किसानों को सीधे 485 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।
वहीं देश भर के मूंगफली किसानों को एमएसपी से नीचे बिक्री होने पर 333 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। दालें एवं तिलहन के अलावा धान की भी एमएसपी से नीचे के मूल्य पर बिक्री हुई है। इसके चलते पंजाब और हरियाणा को छोड़कर अन्य प्रमुख धान उत्पादक राज्यों के किसानों को 220 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।
इन राज्यों- छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना- में धान का बाजार मूल्य एमएसपी से लगभग 15 फीसदी नीचे था।
द वायर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के लिए एगमार्कनेट पर उपलब्ध राज्य स्तर पर फसलों की औसत मासिक कीमतों और राज्यवार बेची गई उपज की मात्रा का इस्तेमाल किया गया है।
राज्य की मंडियों में मासिक औसत मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर प्रत्येक राज्य में बेची गई कृषि उपज की मात्रा से गुणा किया गया, ताकि प्रत्येक राज्य में प्रत्येक फसल के लिए किसानों को हुए नुकसान या लाभ का आंकड़ा निकल सके।
राष्ट्रीय स्तर पर हुए कुल नुकसान के आंकड़े पर पहुंचने के लिए केवल उन्हीं राज्यों की विभिन्न फसलों को लिया है, जहां औसत कीमतें एमएसपी से नीचे थीं, क्योंकि यह एमएसपी से नीचे की गई बिक्री के कारण हुए नुकसान का अधिक सटीक आकलन होगा।
यदि उन राज्यों को भी शामिल करते हैं, जहां कुछ राज्यों में लाभ हुआ है- विशेषकर पंजाब एवं हरियाणा में धान बिक्री- को पिछले दो महीने में राष्ट्रीय स्तर पर किसानों को 1400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
इसके अलावा सिर्फ उन्हीं राज्यों को शामिल किया है जहां 95 फीसदी या इससे ज्यादा संबंधित कृषि उत्पाद की बिक्री हुई है। वर्तमान में चल रहे कृषि आंदोलनों में किसानों की प्रमुख मांगों में से एक यह है कि एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाया जाएगा।
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