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बहुत हो गयाः अब असली रावण को जलाने की करें तैयारी

लेखक-डॉ हिदायत अहमद खान

यहां नवरात्रि में मॉं दुर्गा की पूजा-अर्चना का विधान पूर्ण होता है, वहां राक्षसराज का भी अंत होना प्रारंभ हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दशहरा के दिन भगवान राम राक्षसराज रावण का वध करते हैं। इसलिए इस दिन को विजय पर्व अर्थात विजयादशमी के साथ ही साथ न्याय और नैतिकता का पर्व दशहरा के रुप में मनाया जाता है। इस दिन दंभ से परिपूर्ण अधर्मीं रावण की मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथों पराजय होती है और धर्म स्थापित होता नजर आता है। इस दिन की याद में ही प्रतिवर्ष प्रतीकात्मक तौर पर रावण के पुतले का दहन जगह-जगह किया जाता है। इस प्रकार दशहरा हमें संदेश देता प्रतीत होता है कि अन्याय और अनैतिकता का अंत अवश्यंभावी है, फिर चाहे वह कितना ही बलशाली और शक्तिशाली क्यों न हो।

आखिर लंका नरेश रावण भी तो किसी भी तरह से, किसी भी चीज में कमजोर नहीं थे, लेकिन उन्हें गुमान हो गया था और वो अधर्म और अमर्यादित व्यवहार करने लगे थे, जिस कारण वनवास काट रहे सत्यवादी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने उन्हें किस तरह से धूल चटाई और उसका वध किया, यह कथा बचपन से हम सभी सुनते और दृष्य माध्यमों से देखते आए हैं। दरअसल यह संदेश ही सत्य के स्थापित होने का है, लेकिन अफसोस कि हम हर साल तो रावण के पुतले को प्रतीकात्मक तौर पर जला देते हैं, लेकिन अपने स्वयं के अंदर स्थापित हो चुके रावण को मारने का किंचित भी प्रयास नहीं करते हैं।

यही वजह है कि जैसे-जैसे समय व्यतीत होता चला जाता है वैसे-वैसे रावण का कद भी बढ़ता चला जा रहा है। जाने-अनजाने में हम उसके कद को आदमकद से और आला करते चले जाते हैं और उसके प्रतीक रुप वाले पुतले को फूंक कर खुश हो लेते हैं कि हमने रावण को जलाकर राख कर दिया। जबकि हकीकत तो यही है कि समाज में जिस तेजी से अपराध का ग्राफ बढ़ा है वह रावण के ही स्थापित होने का परिचायक है।

इस बात से क्या हासिल कि दशहरा हमें संदेश दे रहा है कि अन्याय और अनैतिकता का दमन हर रूप में होना है। चाहे फिर वह तीनों लोकों की शक्ति और सिद्धियों से परिपूर्ण क्यों न हो गया हो, लेकिन सामाजिक मर्यादाओं का दमन और गरिमा के विरूद्ध किया गया आचरण विनाश का कारण बनेगा ही बनेगा। गौर करें कि भगवान राम ने भी मानव अवतार धारण किया और ऐसा करते हुए उन्होंने मानव जीवन के प्रत्येक सुख-दुख को आत्मसात किया और उसके तहत व्यवहार किया, लेकिन आज का मनुष्य जीवन संघर्ष से घबराकर या तो गैर कानूनी कार्य करने लग जाता है या फिर अपने स्वयं के हाथों अपने जीवन को समाप्त कर लेता है।

ऐसा करते हुए वह भूल जाता है कि मानव जीवन मिलना कितना दुष्कर है, इसे ईश्वरीय प्रसाद मानकर कृतज्ञ होने के भाव के साथ जीवन जीना चाहिए। मानव जीवन की सार्थकता के लिए हमेशा धर्म आधारित कार्य करने चाहिए और समाज में रहते हुए सामाजिक तानेबाने को और मजबूत करने के सदा प्रयास किए जाने चाहिए, लेकिन आज का मानव तो समाज और परिवार को भूल स्वयं के सुख-दु:ख में रत् रहता है और कोशिश करता है कि दुनिया उसी के आधार सोचे, विचारे और आचरण करे। इस कारण वह दंभी के साथ ही साथ व्यभिचारी और अन्याय पर अडिग रहने वाला बन जाता है। इसका जीता-जागता उदाहरण है देश में बढ़ते नारी उत्पीड़न के मामले।

अब तो कहा जाता है कि महिला अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है, उसे गैरों की बजाय अपने परिजनों से ज्यादा खतरा उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार जिनके हाथों नारी सुरक्षित रहनी चाहिए थी आज उसी के हाथों वो छली जा रही है। क्या यह रावण के स्थापित होने का प्रमाण नहीं है। गौर करें भारतीय संस्कृति के मानदंडों पर जो कि यह शिक्षा देती है कि आप अपने ही नहीं बल्कि पड़ोसी के भी घर के सुखों की चिंता करें। कहा जाता है कि यदि आपका पड़ोसी भूखा और प्यासा जीवन बिता रहा है तो आपसे ईश्वर कभी प्रसन्न हो ही नहीं सकते, लेकिन यहां तो पड़ोसी का हक मारना पहला कर्तव्य बन गया है।

झूठ, फरेब और धोखा देकर संपत्ति बनाना और दूसरों पर अपना रौब गालिब करना आज के मनुष्यकर्म में शामिल है। जहां नजरें उठाकर देखिए वहीं इसका असत्य का साम्राज्य स्थापित होता दिखाई देता है, ऐसे में हमारा दशहरा पर रावण दहन आखिर कैसे सार्थक साबित हो सकता है। हम भारतीय धर्म आधारित संस्कृति के तहत त्यौहारों और पर्वों की श्रृंखला को हर वर्ष गूंथ तो लेते हैं, लेकिन उनके मूल्यवान संदेशों को आत्मसात नहीं करते हैं।

दिखावे की खातिर इन त्यौहारों और पर्वों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते और खूब धन खर्च करते हैं, लेकिन जब आदर्शों की बात आती है तो हम अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति से भी बहुत दूर छूट चुके होते हैं। मतलब हमारा धर्म आधारित कर्म कहीं नजर ही नहीं आता है, क्योंकि जहां असत्य और छलावा होगा वहां धर्म की स्थापना आखिर कैसे और कहां हो सकती है। इसलिए इस वर्ष जब हम रावण के पुतले का दहन करने जाएं तो उससे पहले अपने अंत: में बैठे उस रावण का भी दहन कर दें जो हमें लगातार अधर्म के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करता है और हमसे गैर कानून काम करवाकर खुश होता है।

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