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नेता झूठ और फेरब के बल पर चमका रहे अपनी राजनीति

लेखक- डॉ हिदायत अहमद खान

यह वह राजनीतिक दौर है जिसमें आप जितनी तेजी से और विश्वास के साथ जितना ज्यादा झूठ बोलेंगे उतना ही ज्यादा स्थापित होते चले जाएंगे। मतलब सच की जगह झूठ को स्थापित करने का दौर चल रहा है। इसलिए बहुप्रचलित मुहाबरे और लोकोक्तियां भी अब अपना या तो अर्थ खो रहे हैं या फिर उन्हें पूरी तरह से पलट कर रख दिया गया है। यदि यकीन नहीं आता तो ‘सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुंह काला’ वाले मुहाबरे को ही ले लें तो आप पाएंगे कि यहां तो ‘झूठ का बोलबाला और सच्चे का मुंह काला’ हो रहा है। जिसे देखिए वही झूठ और फरेब के पीछे भाग रहे हैं। इसे लेकर भी राजनीति चमक सकती है, क्योंकि कोई किसी से कमतर नहीं है।

भाजपा कहती है कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कांग्रेस करती आई है और कांग्रेस कहती है कि झूठ का व्यापार करने की जिम्मेदारी भाजपा के पास है और वह इसे बखूबी कर रही है, जिसकी वजह से आज वो केंद्र तक में पहुंच गई है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर कौन किस बात को लेकर कितना झूठ बोल रहा है और लोग उसे कितना सच मानकर अपना रहे हैं। वैसे भाजपा के झूठ से कांग्रेस खासी परेशान है। इसलिए वह बचाव के साथ ही साथ लगातार हमले करने को मजबूर है। कांग्रेस ऐसा करे भी क्यों ना, आखिर उसकी विरासत को हथियाने का दुस्साहस जो किया जा रहा है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आजादी की लड़ाई की विरासत हथियाने का प्रयास करने का गंभीर आरोप लगाया है। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि एक परिवार को आगे बढ़ाने के लिए महापुरुषों की अनदेखी की गई है।

चूंकि आजाद हिंद सरकार के गठन के 75 साल पूरे होने के मौके पर लाल किले में आयोजित कार्यक्रम को प्रधानमंत्री मोदी संबोधित कर रहे थे, अत: उन्होंने यहां पर भी कांग्रेस पर निशाना साधना अपना धर्म समझा और यहां तक कह दिया कि कांग्रेस ने नेताजी की अनदेखी की है। इस आरोप को खारिज करने और हकीकत को बयां करने के लिए जरुरी है कि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए, जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो सके, लेकिन सवाल यही है कि आखिर सच सुनने को तैयार कौन है। यहां तो जिसे देखिए वही झूठ के पर लगाए आसमान की ऊचाइयां नापने को बेताब नजर आ रहा है। फिर भी सच के अनवेषी बनने का काम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनु अभिषेक सिंघवी करते देखे गए, जिन्होंने पत्रकारों को बुलाकर बकायदा यह बताने का प्रयास किया कि नेताजी के मामले में प्रधानमंत्री मोदी जी लाल किले से गलत बयानी कर रहे हैं।

अब चूंकि इस बात को लेकर राजनीति ही करनी है तो दोनों ओर से अपनी बातों पर नमक-मिर्च लगाने का काम भी बहुतायत में हुआ है। मसालेदार और चटखारेदार भाषा का इस्तेमाल करते हुए बताया जा रहा है कि किस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने नेताजी के नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ को बदलकर ‘तुम मुझे खून-पसीना दो, मैं तुम्हें भाषण दूंगा’ कर दिया है। बकौल सिंघवी राष्ट्रीय आंदोलन में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा वाले लोगों का योगदान रत्तीभर भी नहीं रहा है, बल्कि सच बात तो यह है कि कई अवसरों पर उन्होंने ब्रिटिश शासन का साथ दिया। ऐसे में नेताजी को याद करना और फिर कांग्रेस पर हमले करना इस बात का सबूत है कि प्रधानमंत्री मोदी जी राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत पर कब्जा करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस और सरदार वल्लभभाई पटेल और अन्य राष्ट्रीय नेताओं का गलत संदर्भों में लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं।

इस बात में इसलिए भी दम है क्योंकि नरम दल और गरम दल कांग्रेस की ही दो शाखाएं थीं और खास बात यह है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ही थे जिन्होंने लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने पहले भाषण में नेताजी को याद किया और यही नहीं बल्कि यह याद रखना होगा कि आजाद हिंद फौज का मुकदमा पंडित नेहरु ने ही लड़ा था। इस प्रकार देखा जाए तो सच्चे नेताओं और जिम्मेदार लोगों ने खामोशी से काम किया दिखावा नहीं किया और न ही शोर-शराबा ही किया, क्योंकि उन्हें तो सच को स्थापित करना था, जबकि अब इस दौर में सच को झुठलाने और असत्य को स्थापित करने में लगे तथाकथित नेताओं और जिम्मेदार पदों पर विराजमान लोगों ने चीखने की शैली अपना रखी है, ताकि उनके झूठ को पकड़ा नहीं जा सके और उसे ही सच मानकर लोग उनके पीछे चलते रहें।

इसलिए अब कांग्रेस को अपनी सुनहरी और बेशकीमती विरासत की याद हो आई और बताया जा रहा है कि कुछ लोग उसे हथियाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि यह सच है तो कांग्रेस को एक बार फिर अपने उसूलों, कायदे-कानूनों और परंपराओं की ओर लौटना होगा, क्योंकि जब आप घर छोड़कर अन्यत्र चल देते हैं और आपके वापस आने की उम्मीदें भी न के बतौर हो जाती हैं तो उस पर चोरों का कब्जा हो जाता है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए यदि वाकई कांग्रेस कहती है कि नेताजी उनकी विरासत में शामिल हैं तो उन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए और एक उच्च आदर्शवादी व्यक्तित्व पर यूं ओछी राजनीति कतई पसंद नहीं की जाएगी, फिर चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस। नेताजी देशवासियों के दिलों में बसते हैं, क्योंकि उन्होंने देश की आजादी के लिए जो कुछ किया वो कोई दूसरा कर ही नहीं सकता था।

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