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अपनों के बगावत के खतरे, मगर टीएमसी को तोड़ने में लगी भाजपा

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में टीएमसी का घर तोडऩे में जुटी भाजपा को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है कि क्या दो सौ से ज्यादा सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी सिर्फ दागियों और बागियों के सहारे ही टीएमसी का मुकाबला करेगी?

यह सवाल निराधार नहीं हैं। करीब दो साल पहले तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़ कर बीजेपी के पाले में जाने वाले मुकुल रॉय हों या फिर पिछले शनिवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में अपने दल-बल के साथ भगवा झंडा थामने वाले शुभेंदु अधिकारी, इनमें से किसी का दामन उजला नहीं है।

शारदा चिटफंड घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझने वाले इन दोनों नेताओं में से मुकुल रॉय पर तो टीएमसी विधायक सत्यजित विश्वास की हत्या तक के आरोप हैं। हाल ही में हत्या की जांच करने वाली सीआईडी की टीम ने कोर्ट में जो पूरक आरोप पत्र दायर किया है उसमें मुकुल रॉय का नाम शामिल है।

टीएमसी के बागी नेताओं को शामिल करने पर पार्टी के भीतर लगातार सवाल उठ रहे हैं। टीएमसी के बागी नेताओं को थोक भाव में पार्टी में शामिल करने की बढ़ती मुहिम से बीजेपी के स्थानीय नेताओं में असंतोष भी बढ़ रहा है।

पूछा जा रहा है कि जिन इलाकों में पार्टी मजबूत है वहां के नेताओं को क्यों शामिल किया जा रहा है? वहां जिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जमनी स्तर पर जूझते हुए पार्टी को मजबूत किया था उनकी अनदेखी क्यों की जा रही है?

हालांकि यह नेताओं और कार्यकर्ताओं का यह सवाल बीजेपी नेतृत्व को रास नहीं आ रहा है। ऐसे सवाल करने वाले दो नेताओं को सायंतन बसु और अग्निमित्र पाल को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है।

लेकिन पार्टी में बढ़ते असंतोष के बावजूद भाजपा शीर्ष नेतृत्व टीएमसी का घर तोडऩे की रणनीति पर अडिग है। पार्टी में उठने वाले विरोध की आवाजों को दबाने के लिए कारण बताओ नोटिस को ही हथियार बनाया जा रहा है। अब तक कुल चार नेताओं को कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में कारण बताओ नोटिस भेजी जा चुकी है।

इसी सप्ताह भाजपा सांसद सौमित्र खां की पत्नी सुजाता मंडल खां ने टीएमसी में शामिल होने के बाद आरोप लगाया था कि भाजपा टीएमसी नेताओं को मलाईदार पद का लालच देकर अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रही है।

सुजाता ने कहा था कि मौकापरस्त और दलबदलुओं को पार्टी में शामिल किया जा रहा है। इससे पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है।

सुजाता के इन आरोपों में दम है। इसी सप्ताह नए बनाम पुराने के विवाद की वजह से पश्चिम मेदिनीपुर और दुर्गापुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें भी हो चुकी हैं। इलाके में कई जगह टीएमसी के बागी नेताओं को बीजेपी में शामिल करने के विरोध में पोस्टर भी लगाए गए थे।

इसके अलावा भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो की नाराजगी की वजह से ही बीजेपी नेताओं ने आसनसोल के टीएमसी प्रमुख और पांडवेश्वर के विधायक जितेंद्र तिवारी को लाल झंडी दिखा दी थी और उनको TMC में लौटना पड़ा था। लेकिन जो नेता बाबुल सुप्रियों जितने ताकतवर नहीं है, उनकी बात पर केंद्रीय नेता ध्यान नहीं दे रहे हैं।

थोक भाव में टीएमसी नेताओं को भाजपा में शामिल करने के सवाल पर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, “पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए ही दूसरे दलों के नेताओं को बीजेपी में शामिल किया जा रहा है।”

लेकिन राज्य के ज्यादातर भाजपा नेता उनकी इस दलील से सहमत नहीं हैं। उनको अंदेशा है कि इन नेताओं को पार्टी में शामिल करने के बाद बीजेपी के मूल नेता और कार्यकर्ता चुप्पी साध कर बैठ सकते हैं। इससे फायदे के बजाय नुकसान होने का अंदेशा ही ज़्यादा है। लेकिन भाजपा शीर्ष नेतृत्व को ऐसा नहीं लगता।

अब सवाल उठता है कि इससे भाजपा को कितना फायदा होगा? इस सवाल पर वरिष्ठ  पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि दूसरे दलों से आने वाले नेताओं की वजह से बीजेपी को भले खास फायदा नहीं हो, दूसरे दलों को थोड़ा-बहुत नुकसान तो हो ही सकता है। फिलहाल भाजपा खु़द को मजबूत करने के बजाय दूसरे दलों को कमजोर करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।

वह कहते है कि भाजपा में दागियों के शामिल होते ही उनके भ्रष्टाचार के पुराने रिकार्ड धूल जाते हैं। मिसाल के तौर पर शुभेंदु के पार्टी में शामिल होने के अगले दिन ही बीजेपी ने सोशल मीडिया से वह वीडियो हटा लिया जिसमें नारदा स्टिंग मामले में वे (शुभेंदु) पैसे लेते नजर आ रहे थे। दरअसलए भाजपा प्यार, युद्ध और राजनीति में सब कुछ जायज वाली कहावत को चरितार्थ करने पर तुली है।

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