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LIVE: मोदी बोले- नेताजी आज होते तो यह देखकर गर्व करते कि महामारी में भारत…

कोलकाता। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 125वीं जयंती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में नेताजी नेताजी की स्मृति में सिक्का और डाक टिकट जारी किया। अपने संबोधन में मोदी ने कहा कि देश के लिए अपना जीवन लगा देने वाले नेताजी आज होते तो यह देखकर गर्व करते कि भारत महामारी में दूसरों की मदद कर रहा है।

मोदी का कार्यक्रम और बातें इसलिए अहम हो जाते हैं, क्योंकि बंगाल में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। इसलिए भी कि इस कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मोदी के साथ थीं। मोदी और ममता में बात नहीं हुई, यह अलग बात है। लेकिन, जय श्रीराम के नारे लगने से ममता एक बार फिर नाराज हो गईं और बिना भाषण दिए ही मंच छोड़ दिया।

मोदी के भाषण की खास बातें

1. नेताजी ने कहा था- आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा
प्रधानमंत्री बोले- आज उस दिन को 125 वर्ष हो रहे हैं। 125 वर्ष पहले आज ही के दिन उस वीर सपूत ने जन्म लिया था। आज के ही दिन गुलामी के अंधेरे में वह चेतना फूटी थी जिसने दुनिया की सबसे बड़ी सत्ता के सामने खड़े होकर कहा था कि मैं तुमसे आजादी मांगूंगा नहीं, छीन लूंगा। आज के दिन सिर्फ नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ही नहीं हुआ था, बल्कि भारत के आत्मसम्मान का जन्म हुआ था। नए कौशल का जन्म हुआ था।

2. नेताजी होते तो आज के भारत को देखकर गर्व करते
आज नेताजी देखते कि भारत कोराेेना से खुद लड़कर कामयाब हो रहा है। खुद वैक्सीन बना रहा है। दूसरे देशों को वैक्सीन भेजकर मदद भी कर रहा है तो कितने खुश होते। जहां से भी भारत की संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश की गई, भारत उसका मुंह तोड़ जवाब दे रहा है। मुझे नेताजी की जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है वह है अपने लक्ष्य के लिए सतत प्रयास। अपने संकल्पों को सिद्धियों तक ले जाने की उनकी क्षमता अद्भुत थी।

मोदी-ममता का साथ क्यों है खास?
विक्टोरिया मेमोरियल के मुख्य कार्यक्रम में मोदी के साथ मंच पर ममता बनर्जी भी मौजूद रहीं। अब तक राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर दोनों दलों के कार्यक्रम अलग-अलग होते रहे हैं। आमतौर पर केंद्र के कार्यक्रमों और बैठकों में ममता मौजूद नहीं रही हैं। अपनी पार्टी के मंच से भाजपा को खरी-खोटी सुना चुकीं ममता के सामने इस बार पद की गरिमा के साथ-साथ पार्टी की छवि बचाने की चुनौती है।

ममता ने पराक्रम दिवस को खारिज किया
केंद्र सरकार ने नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया है। लेकिन, ममता बनर्जी ने इसे खारिज करते हुए इस दिन को देशनायक दिवस के तौर पर मनाने की बात कही। ममता ने कोलकाता में श्याम बाजार से रेड रोड तक करीब 8 किमी की पदयात्रा निकाली। इसे दोपहर 12.15 पर शुरू किया गया, क्योंकि 23 जनवरी 1897 को इसी वक्त नेताजी का जन्म हुआ था।

मोदी से पहले ममता का शक्ति प्रदर्शन
इधर मोदी के आने से पहले ही बंगाल की CM ममता बनर्जी ने शक्ति प्रदर्शन कर दिया। ममता ने कोलकाता को राजधानी बनाने की मांग की। उन्होंने कहा, ‘अंग्रेज कोलकाता से ही पूरे देश पर राज करते थे। ऐसे में हमारे देश में एक शहर को ही राजधानी क्यों बनाए रखना चाहिए। देश में चार रोटेटिंग कैपिटल होनी चाहिए।’ इधर, दिलचस्प बात ये है कि आज ही मोदी के दोनों कार्यक्रमों में मंच पर ममता भी उनके साथ रहीं।

मोदी के बंगाल आने के पहले बवाल भी हुआ
प्रधानमंत्री के बंगाल पहुंचने के पहले हावड़ा में बवाल हो गया। भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि तृणमूल के लोगों ने उन पर हमला किया। स्थानीय भाजपा नेता का कहना है कि हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया। अगर तृणमूल ऐसी राजनीति करना चाहती है तो उन्हें इसी भाषा में जवाब देंगे।

हावड़ा में तोड़फोड़ की गई और गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया।

बंगाल की राजनीति में अब दिल्ली का दखल
पश्चिम बंगाल में उत्सव, जनसंस्कृति का हिस्सा है। यहां सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कोई न कोई मौका ढूंढा जाता है, चाहे टैगोर जयंती हो, विवेकानंद जयंती हो या फिर सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन। इन कार्यक्रम कमेटियों में स्थानीय राजनीति भी फलती-फूलती है, मगर इस बार इस राजनीति का दायरा बढ़कर दिल्ली तक पहुंच गया है।

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक फ्रंट पर बंगाली मानुष को लुभाने की होड़ पिछले साल दुर्गा पूजा से ही शुरू हो गई थी। 2021 के शुरू होते ही 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर भी दोनों दलों के बीच जलसे-जुलूस को लेकर मुकाबला जैसा हुआ, पर तृणमूल के कार्यक्रमों के आगे भाजपा के आयोजन शायद थोड़े फीके रह गए। यही कसर निकालने के लिए नेताजी की जयंती पर खुद मोदी मैदान में उतर गए हैं।

दोनों नेताओं का लक्ष्य एक ही- बंगालियत से खुद को करीब दिखाना
बंगाल में राज्य के इतिहास और संस्कृति से जुड़े महापुरुषों के प्रति खासा सम्मान रहा है। यहां जनता इसे बंगालियत से जोड़कर देखती है। यहां खेल और कला की शिक्षा हर घर में दी ही जाती है, यही वजह है कि जनता सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सीधे तौर पर जुड़ी होती है। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के मंच पर भी मोदी और ममता दोनों का मकसद इसी बंगालियत से खुद को करीब दिखाना होगा। यह भी तय है कि इसी बंगाली सेंटीमेंट को जीतने वाले का पलड़ा आने वाले विधानसभा चुनाव में भारी होगा।

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