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किसानों और सरकार का गतिरोध आखिर कैसे टूटेगा? जानिए क्या हो सकते हैं विकल्प

नई दिल्ली। केंद्र सरकार और किसानों के बीच 3 कृषि कानूनों पर गतिरोध बना हुआ है। किसान इन कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं, वहीं सरकार डेढ़ साल तक कानूनों को सस्पेंड करने समेत कई प्रस्ताव किसानों के सामने रख चुकी है। फिलहाल, मामला अटका हुआ है। किसान 64 दिन से कंपकंपा देने वाली ठंड में दिल्ली के बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं।

गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसक झड़प भी देखने को मिली। ऐसे में पूरी नजरें सरकार पर हैं कि क्या वह टकराव का रास्ता अपनाती है या पीछे हटकर कानून निरस्त करती है?

कृषि कानूनों को संसद ने पास किया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लग चुकी है। ऐसे में पीछे नहीं हटेंगे, यह मोदी सरकार की जिद है। पर सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा जरूरी है कि संसद में पास हो जाए तो कानून लागू होगा ही? नहीं। यह कतई जरूरी नहीं है। इससे पहले भी कई मौकों पर संसद में पास हो चुके बिल भी कानून बनने पर लागू नहीं हुए हैं। आइए समझते हैं एक प्रस्ताव के विधेयक और फिर कानून बनने तक का सफर क्या होता है और किन हालात में यह निरस्त या सस्पेंड हो सकता है…

बिल या विधेयक क्या होता है?

जब सरकार किसी विषय पर कानून बनाना चाहती है तो उस प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार करती है। इसे विधेयक और अंग्रेजी में बिल कहते हैं। विधेयक संसद के दोनों सदनों में पेश होता है। वहां पास होने के बाद इस पर राष्ट्रपति की मुहर लगती है। तब यह अधिनियम (अंग्रेजी में एक्ट) यानी कानून बनता है।

कानून कौन बनाता है और उसे निरस्त कौन कर सकता है?

कानून बनाने की ताकत सिर्फ संसद के पास है। सरकार भी अस्थायी तौर पर कोई कानून बना सकती है, जिसे अध्यादेश कहते हैं। यह तभी होता है, जब संसद का अधिवेशन न चल रहा हो। व्यवस्था ऐसी है कि अध्यादेश पर भी संसद की मुहर जरूरी होती है, वरना वह खुद-ब-खुद निरस्त हो जाता है।

कानून को रद्द करने का एक तरीका और है। अगर सुप्रीम कोर्ट उसे अवैध ठहरा दे, तो यह हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट आम तौर पर किसी कानून को निरस्त नहीं करती। अगर वह कानून संविधान के किसी प्रावधान के खिलाफ साबित होता है तो वह उसे निरस्त कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण से जुड़े कानूनों को कई बार निरस्त किया है।

मौजूदा विवाद कृषि कानूनों को लेकर है। उन्हें निरस्त करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया है। यह बात अलग है कि गतिरोध तोड़ने के लिए वह कोशिश कर रही है। उसने कानूनों को लागू करने पर रोक भी लगाई है। दोनों पक्षों से बातचीत करने के लिए एक कमेटी बनाई है। ताकि गतिरोध तोड़ने का कोई रास्ता निकाला जा सके।

क्या संसद से पारित होते ही विधेयक कानून बन जाता है?

नहीं। संसद के दोनों सदनों से पास हुआ विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है। वहां से मंजूरी मिलने के बाद ही वह कानून बनता है। हालांकि, अगर किसी कानून को लागू करने के लिए नियम बनाना जरूरी है तो जब तक यह नहीं बन जाते, कानून लागू नहीं होता। इसमें ही तय होता है कि कोई कानून जमीनी स्तर पर कैसे लागू होगा।

क्या राष्ट्रपति संसद से पास विधेयक को ठुकरा सकते हैं?

हां। संविधान के आर्टिकल 111 के तहत राष्ट्रपति की मुहर कानून बनाने के लिए जरूरी है। वह हस्ताक्षर करने से मना कर सकते हैं। होल्ड भी कर सकते हैं। हालांकि, बहुत ही कम मामलों में ऐसा हुआ है। यहां पेंच यह है कि अगर राष्ट्रपति ने किसी कानून को लौटा दिया तो संसद उस पर दोबारा विचार करेगी। तब बिना बदलाव के विधेयक फिर से भेजा जाए तो राष्ट्रपति के लिए पास करना जरूरी हो जाता है। ऐसे में राष्ट्रपति कानून पर हस्ताक्षर करना टाल सकते हैं। राष्ट्रपति कुछ मौकों पर अपनी ताकत दिखा चुके हैं-

  • 2006: राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने ऑफिस ऑफ द प्रॉफिट बिल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। इसमें सांसदों को लाभ के पद पर रहने की छूट देने का प्रस्ताव था।
  • 1987ः राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच विवाद था। जैलसिंह ने 1987 में पोस्टल अमेंडमेट बिल पर हस्ताक्षर न करते हुए अनिश्चितकाल के लिए अटका दिया था।
  • 1951ः राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू सरकार के हिंदू कोड बिल का विरोध किया था। इसका जब नेहरू ने विरोध किया तो राजेंद्र प्रसाद ने केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की चेतावनी दी थी।

क्या राष्ट्रपति के साइन होने के बाद भी कोई कानून अटका है?

हां। 1995 में पीवी नरसिंहाराव की सरकार ने नेशनल एनवायरनमेंट ट्रिब्यूनल एक्ट और दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट बनाए थे। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद भी ये कानून लागू नहीं हो सके। बाद में 2010 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट से एनवायरनमेंट ट्रिब्यूनल लॉ खत्म किया। दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट को निरस्त करने के लिए 2013 में बिल बना, जो राज्यसभा में लंबित है।

क्या विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर के बाद वह कानून बन जाता है?

नहीं। इसके बाद भी दो महत्वपूर्ण स्टेप्स रह जाते हैं। सरकार यह तय करती है कि यह नया कानून कब लागू होगा। इसी तरह कानून को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए रूल्स और रेगुलेशन भी बनाने होते हैं। यह होने के बाद ही कोई कानून लागू हो पाता है। सरकार रूल्स और रेगुलेशन नहीं बनाती है, तो कानून या उसका कोई भी हिस्सा लागू नहीं किया जा सकता।

बेनामी ट्रांजेक्शन एक्ट 1988 कानून को राष्ट्रपति की अनुमति मिल गई थी, पर रूल और रेगुलेशन तैयार नहीं हुए थे। इससे कानून लागू नहीं हो सका। 2016 में इस कानून को रूल और रेगुलेशन के अभाव में निरस्त कर दिया गया ।

अगर किसी अध्यादेश को कानून बनाया जा रहा हो तो इसमें तय किया जा सकता है कि उस तारीख से यह कानून लागू होगा। कृषि संबंधी नई व्यवस्था 5 जून 2020 को अध्यादेश के जरिए लागू की गई थी। कानून बनने के बाद इसे इसी तारीख से लागू किया गया है।

कृषि कानूनों को लेकर क्या विकल्प हैं?

कृषि कानूनों को लेकर सरकार ने साफ कहा है कि वह किसानों को मनाने के लिए डेढ़ साल के लिए इन्हें सस्पेंड कर सकती है। यानी ये कानून इस समय लागू हैं, पर सरकार चाहे तो इन्हें लागू करने की तारीख डेढ़ साल बाद की तय कर सकती है। इसी तरह सरकार चाहे तो वह इन तीनों ही कानूनों को निरस्त भी कर सकती है। यह पूरी तरह से सरकार के हाथ में है।

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