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लोकतंत्र के यज्ञ में वोट रूपी आहुति बहुत आवश्यक

लेखक-डा. हिदायत अहमद खान

हिन्दुस्तान जब आजाद हुआ तो हमारे देश के तमाम जिम्मेदार कर्ता-धर्ताओं ने एक गौरवशाली संविधान के साथ लोकतांत्रिक कार्य प्रणाली को अंगीकार करना बेहतर समझा। इसी के साथ राजशाही जहां बीते जमाने की बात हो गई वहीं राजे-रजवाड़ों समेत नवाबों की रियासतों को भी यह कहते हुए गणतंत्र में शामिल किया गया कि अब प्रजातंत्र के तहत ही शासन चलेगा। इसी के साथ जिसकी लाठी उसकी भैंस का लोप होता चला गया और सब कुछ कानून के तहत होने लगा। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी देश ने विकास करना लगातार जारी रखा। ऐसा इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि हमारा प्रजातंत्र एक ऐसी व्यवस्था देता है, जिससे बिना रक्तरंजित क्रांति या युद्ध के महज मतों के आधार पर मजबूत से मजबूत कही जाने वाली सरकार को शांतिपूर्वक बदला जा सकता है।

आजादी के बाद से इस प्रक्रिया को बहुत ही ईमानदारी और पूरी लगन के साथ निर्वाचन आयोग पूर्ण कराता चला आ रहा है। इससे देश में एकता और अखंडता को बनाए रखने में काफी मदद मिली है। दरअसल स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही देश का जो बंटवारा हुआ उसके बाद भारत में वही लोग रह गए जो कि सभी धर्मों का आदर करना और तमाम जातियों व संप्रदायों को बराबरी का दर्जा देने से लेकर समस्त नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के जीवन-यापन करने और उन्हें विकास करने देने के प्रति बचनवद्ध थे। इस कारण आज भी देश में अलग-अलग धर्मों, जातियों, संप्रदायों और वर्गों के लोगों का एक साथ, मिल-जुलकर रहना और देश के विकास में अपना योगदान देने जैसा गौरवशाली सिलसिला लगातार जारी है।

यहां इस भूमिका को बांधने का अर्थ यह कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि देश में तोड़-फोड़ करने वाली आशुरी ताकतें और समाज को बांटने वाले पूरी तरह खत्म हो गए हैं, बल्कि कहा तो यही जाता है कि गोरे चले गए लेकिन काले अंग्रेज छोड़ गए, जिनके प्रभाव में आने वाले लोग आज भी फूट डालो और राज करो की नीति अपनाते हुए आपस में बैमनस्य फैलाने और लोगों को आपस में लड़वाने का काम करते देखे जाते हैं। यह तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का ही परिणाम है कि उनके यह सब करने के बावजूद देश की एकता और अखंडता बनी हुई है। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन आज भी कायम है। इस प्रकार प्रजातंत्र की पहली शर्त शासन में जन की भागीदारी होना है।

यह भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए ही चुनाव पर्व का अयोजन किया जाता है, जिसमें प्रत्येक मतदाता को बढ़चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसके साथ ही प्रत्येक मतदाता को मालूम होना चाहिए कि उसका वोट अनमोल है। उसके वोट की कीमत चंद रुपए-पैसे या हीरे-जवाहारात से अदा नहीं की जा सकती है। इसलिए भी मतदाता के अधिकार यानी वोट को ‘मतदान’ कहा जाता है, जिसका अर्थ ‘मत’ का ‘दान’ करने से है। चूंकि हम सभी धर्मनिष्ठ भी हैं अत: सभी लोगों को दान का महत्व भी मालूम है और जब दान किया जाता है तो सीधे हाथ से किया जाने वाले दान का पता बाएं हाथ को भी नहीं होना चाहिए। यही हमारी प्रथा और परंपरा के साथ धार्मिक नियम भी है, इसलिए गुप्त दान करें और वह भी बिना कोई लोभ या लालच के।

प्रत्येक मतदाता को यह भी समझना और अपने स्तर पर तय करना होगा कि वह जब वोट करने जाए तो अपने ‘दान’ की कीमत नहीं वसूले और न ही उसे कम दर्जे का समझे, बल्कि वह तो पूरे सम्मान के साथ अपने कर्तव्य और अधिकार के साथ स्वयं की सरकार चुनने के लिए एक प्रतिनिधि का चुनाव करने जाए। एक ऐसा प्रतिनिधि जो वाकई सरकार में रहने लायक हो और जिसके कार्यों और फैसलों से क्षेत्र व देश का भला होता हो। जिसके मन में सर्वे भवन्तु सुखिन: का वास हो और जो अपने कर्म व वचन से जनहित साधता हो। यह तभी संभव होगा जबकि हम सभी लोकतंत्र की मजबूती की खातिर अपने मताधिकार का प्रयोग बिना भय या लोभ और लालच के करने की ठान लें।

हर संभव कोशिश करें कि पूरी ईमानदारी के साथ मतदान अवश्य ही करें, ताकि मतदान का प्रतिशत भी बढ़े और सरकार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी लोग निभा सकें। दरअसल अभी होता यह है कि कम प्रतिशत मतदान के चलते जो प्रतिनिधि चुना जाता है वह महज 25 से 30 फीसद लोगों का ही प्रतिनिधित्व करता दिखता है। इस प्रकार जो सरकार बनती है वह भी महज 25 से 30 फीसद वोट लिए हुए होती है, इसलिए लोगों से अधिक से अधिक मत करने का आव्हान किया जाता है। मतदाताओं को जागरुक करने के लिए तो चुनाव आयोग बकायदा कार्यक्रम चलाता चला आया है।

चुनाव आयोग की पूरी कोशिश होती है कि मतदाता अधिक से अधिक संख्या में अपने मताधिकार का प्रयोग करें, ताकि अच्छे परिणाम आ सकें। इसमें दोराय नहीं कि वर्तमान समय का मतदाता समझदार और जिम्मेदारी निभाने वाला भी है, अत: उसे इस बात का उदाहरण पेश करते हुए मतदान करे। जरुरी है कि पढ़ा-लिखा और समझदार मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए इस बात का आभास भी कराए कि वह लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए हर संभव कोशिश करने से पीछे हटने वाला नहीं है।

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