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जहां ग्लेशियर टूटा, वहीं से 51 साल पहले शुरू हुआ था चिपको मूवमेंट

चमोली। देवभूमि उत्तराखंड में करीब साढ़े सात साल बाद फिर से कुदरती कहर दिखा। हम आपको हादसे की जगह यानी चमोली के रैणी गांव से ग्राउंड रिपोर्ट दे रहे हैं। यह वही जगह है, जहां ग्लेशियर टूटने से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। चमोली के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. वीपी भट्‌ट और एग्जामिनेशन कंट्रोलर डॉ. अखिलेश कुकरेती ने भास्कर के लिए ये रिपोर्ट दी है…

‘मैं डॉ. वीपी भट्‌ट चमोली के गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में प्रोफेसर हूं। आज आपको अपने साथी डॉ. अखिलेश कुकरेती के साथ चमोली में ग्लेशियर टूटने की पूरी घटना का आंखो देखा हाल बता रहा हूं। इस दर्दरनाक हादसे की चीखें हमारे कानों में अब भी बसी हुई हैं। हमने इस हादसे में अपने प्रिय स्टूडेंट के परिवार के सदस्य को भी खो दिया है। चमोली जिले की कुल आबादी 3.90 लाख है। हरा-भरा और पहाड़ों का खूबसूरत नजारा इसकी पहचान है। लेकिन आज की आपदा ने हम सबको झकझोर दिया है।

ये आपदा सुबह के करीब दस बजे आई। तपोवन के रैणी गांव के पास सप्तऋषि और चंबा पहाड़ है। इन दोनों पहाड़ों के बीच के सबसे निचले हिस्से से ग्लेशियर टूटकर ऋषिगंगा नदी में गिर गया। इससे नदी का पानी उफान पर आ गया। देखते ही देखते नदी के पास का मुरिंडा जंगल इसकी चपेट में आकर साफ हो गया। करीब 15 से 20 हेक्टेयर जंगल को नुकसान हुआ। ये वही जंगल है जहां से 1970 में गौरा देवी ने चिप्को मूवमेंट शुरू किया था।

इसके बाद त्रषिगंगा पावर प्रोजेक्ट भी सैलाब के आगोश में समा गया। प्रोजेक्ट में काम कर रहे करीब दो सौ लोग फंस गए। इनमें मजदूर से लेकर प्रोजेक्ट के ऑफिसर हैं। इस पावर प्रोजेक्ट के दूसरे छोर पर रैणी गांव है। इस गांव के आस-पास पल्ला रैणी, लाता, सूर्यायीथोता, तोल्मा, सुकी, भालगांव, पंगरासू, तमाकनाला गांव भी हैं। शुक्र है पानी का बहाव इन गांवों की तरफ नहीं आया। नहीं तो हालात हद से ज्यादा बदतर होते। इन गांवों में करीब दो हजार की आबादी रहती है।

गांव से बाहर और ऋषिगंगा नदी के किनारे ऊपरी छोर पर मेरे स्टूडेंट देवेंद्र सिंह रावत का घर है। देवेंद्र GIC पांडुकेश्वर में बायोलॉजी के प्रवक्ता हैं। देवेंद्र के भाई ने जब ग्लेशियर टूटने की आवाज सुनी तो वह नदी के पास पहुंच गए। कुछ समझ पाते इसके पहले ऊपर से आए पानी ने उनको भी बहा लिया।

धौलीगंगा नदी में पानी बढ़ने से BRO का पुल भी टूट गया।

ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट को तबाह करने के बाद सैलाब आगे बढ़ा और भारत-चीन को जोड़ने वाला ब्रिज बहा ले गया। ये ब्रिज एकमात्र जरिया है जिससे हमारे सैनिक चीन बॉर्डर पर पहुंचते हैं। ब्रिज टूटने से आस-पास के 12 गांवों से कनेक्शन भी टूट गया। पास में घास काटने गईं करीब 30 महिलाएं भी बह गईं। इसके बाद सैलाब धौलीगंगा नदी में जाकर मिल गया। यहां उसकी रफ्तार और तेज हो गई।

चंद मिनटों में ही नदी किनारे का काली मंदिर और NTPC का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पानी-पानी हो गया। यहां करीब 180 से 200 लोगों का पता नहीं चल रहा है। अब ये सैलाब पीपल कोटी, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर, ऋषिकेश और हरिद्वार की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन गनीमत है कि अब ये कमजोर पड़ चुका है। इसकी रफ्तार घट गई है। इससे इन इलाकों में रहने वाले लोगों को कोई खतरा नहीं है।’

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