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मोदी के बाद आजाद के भी आंसू छलके: आतंकी हमले में लोगों की मौत पर बोले- एयरपोर्ट…

नई दिल्ली। राज्यसभा में मंगलवार को जिस आतंकी घटना का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री मोदी रो पड़े, उसी घटना को याद कर गुलाम नबी आजाद भी भावुक हो गए। आंसू उनके भी छलक पड़े। गुलाम नबी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में हुए आतंकी हमले में जब गुजरात के पर्यटकों की मौत हुई तो उन पर क्या गुजरी थी। गुलाम नबी की बातें जस की तस…

‘नवंबर 2005 में सीएम बना.. उसके बाद जब दरबार कश्मीर में खुला तो मेरा स्वागत गुजरात के मेरे भाई-बहनों की कुर्बानी से हुआ। वहां मिलिटेंट्स का स्वागत करने का यही तरीका था। वे बताना चाहते थे कि हम हैं, गलतफहमी में न रहना। निशात बाग में एक बस पर लिखा था कि वो गुजरात से है। उसमें 40-50 गुजराती टूरिस्ट सवार थे। उसमें ग्रेनेड से हमला हुआ। एक दर्जन से ज्यादा लोग वहीं हताहत हुए। मैं फौरन वहां पहुंचा। मोदीजी ने डिफेंस मिनिस्टर से बात की, मैंने प्रधानमंत्रीजी से बात की।’

‘जब मैं एयरपोर्ट पर पहुंचा तो किसी की मां, किसी के पिता मारे गए थे। वे बच्चे रोते-रोते मेरी टांगों से लिपट गए, तो जोर से मेरी भी आवाजें निकल गईं… या खुदा, ये तुमने क्या किया। मैं कैसे जवाब दूं उन बच्चों को, उन बहनों को, जो यहां सैर और तफरीह के लिए आए थे और आज मैं उनके माता-पिता की लाशें लेकर उनके हवाले कर रहा हूं।’ (यह कहते-कहते आजाद भावुक हो गए)

‘आज हम अल्लाह से, भगवान से यही दुआ करते हैं कि इस देश से मिलिटेंसी खत्म हो जाए, आतंकवाद खत्म हो जाए। सिक्युरिटी फोर्सेस, पैरामिलिट्री और पुलिस के कई जवान मारे गए। क्रॉस फायरिंग में कई सिविलियंस मारे गए। हजारों माएं और बेटियां बेवा हैं। कश्मीर के हालात ठीक हो जाएं।’

मोदी और शाह से कहा- कश्मीर को आप फिर आशियाना बनाएं
आजाद ने आगे कहा- ‘कश्मीरी पंडित भाई-बहनों के लिए एक शेर कहना चाहता हूं। मैं जब यूनिवर्सिटी में जीतकर आता था, तब कश्मीरी पंडित मुझे सबसे ज्यादा वोट देते थे। मुझे अफसोस होता है, जब मैं अपने क्लासमेट्स से मिलता हूं। क्योंकि वे कश्मीरी पंडित हैं, जो घर से बेघर हो गए। उनके लिए शेर- गुजर गया वो छोटा सा जो फसाना था, फूल थे, चमन था, आशियाना था। न पूछ उजड़े नशेमन की दास्तां, न पूछ कि चार तिनके मगर आशियाना तो था।

आप दोनों (मोदी और शाह) यहां बैठे हैं, आप फिर उसे आशियाना बनाएं। हम सभी को प्रयास करना है। दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है, लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है। बदलेगा न मेरे बाद भी मौजूं-ए-गुफ्तगू, मैं जा चुका होऊंगा, फिर भी तेरी महफिल में रहूंगा।’

आजाद ने नायडू-मोदी का शुक्रिया अदा किया
आजाद ने आगे कहा, ‘चेयरमैन साहब (वेंकैया नायडू), जब आप अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने, तब आपसे बात होती थी। जब आप मंत्री बने, तब भी बात थी। चेयरमैन बनने से पहले आप संसदीय कार्य मंत्री थे, तब भी बात होती थी। जिस तरह का आशीर्वाद, प्रेम चेयरमैन के तौर पर मिला, जो गाइडेंस मिला, उसका हमेशा कर्जदार रहूंगा।

आपका धन्यवाद देता हूं। माननीय प्रधानमंत्री जी। कई दफा टोका-टोकी हुई। आपने कभी बुरा नहीं माना। जब मैं विपक्ष का नेता रहा तो लंबी-लंबी स्पीचें आपकी और मेरी हुईं। खासकर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लंबी तकरीरें होती थीं, कभी हम विपक्ष के नेता के नाते कुछ कहते थे, लेकिन आपने व्यक्तिगत तौर पर कभी इसे अपने खिलाफ नहीं लिया। आपने हमेशा व्यक्तिगत संदर्भ और पार्टी को अलग-अलग रखा।’

ईद-दिवाली पर सोनिया-मोदी के फोन जरूर आते थे
गुलाम नबी ने कहा- ‘ईद हो, दिवाली हो, जन्मदिन हो, उसमें आप बराबरी से बात करते थे। दो लोगों को सबसे पहले फोन आता था। एक आप और एक कांग्रेस प्रेसिडेंट मिसेज गांधी। आपने हमेशा बताया कि कोई काम हो तो जरूर बताना। (हंसते हुए बोले) जब मैं राज्यसभा का चुनाव लड़ रहा था, तब भी आपका फोन आया कि आपको कोई जरूरत है।

मैंने कहा कि ये तो लड़ाई है। आपका भी कैंडिडेट है। इसमें आप कुछ नहीं कर सकते। …ये पर्सनल टच होता है। इससे आदमी भावुक हो जाता है। जब मैं पहली बार मंत्री बना, तब से आज तक मेरे विपक्ष से संबंध रहे हैं। हम मिलकर देश को चला सकते हैं, गालियां देकर नहीं चला सकते।’

‘मैं डिप्टी चेयरमैन साहब का भी धन्यवाद देता हूं। बहुत सिम्पल और स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं। शरद पवार जी, यादव जी, सभी नेताओं का बहुत धन्यवाद देता हूं। लेफ्ट, राइट और सेंटर, सभी का धन्यवाद। इंशाअल्लाह, हम मिलते रहेंगे, भले ही यहां न मिल पाएं। जाते-जाते एक शेर आप लोगों के लिए कहता हूं- नहीं आएगी याद तो बरसों नहीं आएगी, मगर जब याद आएगी तो बहुत याद आएगी।’

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