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खुलासा: इजराइल के जासूसों ने 8 महीने तैयारी की, टुकड़ों में तेहरान पहुंचाई 1 टन की मशीनगन

तेहरान। जगह: ईरान की राजधानी तेहरान। तारीख और वक्त : 27 नवंबर 2020, शाम करीब 6 बजे। हाई सिक्योरिटी जोन से 5 ब्लैक गाड़ियां गुजरती हैं। अचानक एक गाड़ी पर हैवी फायरिंग होती है। कुछ ही पल में एक कार में बैठा बुजुर्ग एक तरफ लुढ़क जाता है। काफिले की गाड़ियां रुकती हैं। इसी वक्त कुछ दूरी पर मौजूद एक पिकअप वैन में धमाका होता है। धूल और धुआं जब छंटता है तब पता लगता है कि ईरान के सबसे बड़े न्यूक्लियर साइंटिस्ट मोहसिन फखरीजादेह मारे जा चुके हैं।

तमाम सवाल उठे। मोहसिन को किसने और क्यों मारा? इससे भी बड़ा सवाल- मोहसिन की हत्या को कैसे अंजाम दिया गया। ईरानी जांच एजेंसियां शक तो इजराइल और अमेरिका पर करती रहीं, लेकिन सबूतों के नाम पर उनके हाथ आज भी खाली हैं।

अब इजराइल के ही एक अखबार Jewish Chronicle ने मोसाद के इस ऑपरेशन का खुलासा किया है। उसने अपनी स्पेशल रिपोर्ट में वो तमाम राजफाश किए हैं, जिनका पता ईरान आज तक नहीं लगा पाया।

मोसाद को ईरानी एजेंट्स से मदद मिली
इजराइल, अमेरिका और अरब देश ईरान को एटमी ताकत बनते नहीं देखना चाहते। इजराइल के टारगेट पर ईरानी न्यूक्लियर साइंटिस्ट पहले भी रहे हैं। कुछ करीब-करीब इसी अंदाज में मारे भी गए। बहरहाल, इजराइली अखबार की रिपोर्ट बताती है कि ऑपरेशन को इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने अंजाम दिया। इसमें उसके कुछ ईरानी एजेंट्स भी शामिल थे। कुल मिलाकर 20 एजेंट्स ने यह मिशन पूरा किया।

8 महीने तक मोहसिन पर नजर रखी
मोसाद के पास मोहसिन के हर मूवमेंट की जानकारी थी। इसके लिए 8 महीने रैकी की गई। हर तरह के इंटेलिजेंस इक्युपमेंट्स इस्तेमाल हुए। मोहसिन ने 6 साल पहले यानी 2014 में एटमी प्रोग्राम की कमान संभाली। लेकिन, इजराइल ने उन्हें टारगेट तब किया जब वे इसमें कामयाब होने वाले थे। यही वजह है कि मोहसिन अमेरिका, इजराइल और खाड़ी देशों की आंखों में लंबे वक्त से खटक रहे थे।

‘ईरानी बम के पितामह’
59 साल के मोहसिन को father of the bomb कहा जाता था। उन्हें 13 गोलियां लगीं। बगल में बैठीं पत्नी और काफिले की दूसरी गाड़ियों के अलावा 12 बॉडीगार्ड्स भी सुरक्षित रहे। ईरान के एक अफसर ने कहा- 62 बंदूकधारियों ने मोहसिन की हत्या की। अब इस दावे पर सिर्फ हंसा जा सकता है, क्योंकि बिना सबूत के उन्होंने यह बात कही। एक वजह यह भी कि ऑपरेशन की सच्चाई इजराइल से ही सामने आ गई है।

कैसे हुआ ऑपरेशन: संक्षेप में
8 महीने तैयारी की गई। 20 एजेंट्स की टीम थी। इजराइल से एक टन वजन वाली एक मशीनगन को स्मगलिंग के जरिए तेहरान में मौजूद एजेंट्स तक पहुंचाया गया। निसान कंपनी की पिकअप वैन खरीदी गई। इसके ऊपर मशीनगन फिट की गई। दिन और वक्त तय किया गया। मोहसिन का काफिला वहां से गुजरा। बाकी अब इतिहास है।

एक बात जिसने ऑपरेशन का कोई सबूत नहीं छोड़ा, वो जरूर समझनी चाहिए। मोसाद के एजेंट्स ने मोहसिन को मारने के बाद फौरन बाद उस पिकअप बैन को उड़ा दिया, जिसकी रूफ यानी छत पर मशीनगन फिट की गई थी। धुएं और धूल के गुबार में ये एजेंट्स फरार हुए और सेफ लोकेशन पर पहुंच गए। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस ऑपरेशन को अकेले मोसाद ने अंजाम दिया। अमेरिका या कोई दूसरा देश इसमें शामिल नहीं था।

कितने अहम थे मोहसिन
इजराइल के प्राइम मिनिस्टर बेंजामिन नेतन्याहू के डिफेंस एडवाइजर जैकब नागेल का बयान ईरान के लिए मोहसिन की अहमियत बताता है। नागेल कहते हैं- मोसाद के पास इस बात के पुख्ता सबूत थे कि मोहसिन ऐसे कई एटमी बम बनाने के करीब थे, जो बेहद घातक हो सकते थे। एक बम से हिरोशिमा जैसे पांच शहर खत्म किए जा सकते थे। हमें लगता था कि उन्होंने अपने हिस्से की जिंदगी पूरी कर ली है।

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