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उठे सवालः कहीं कौड़ियों के दाम पर तो नहीं बिक गया सीतापुर का फूलपुर जंगल

सीतापुर। सरकारों में हुए घोटालेबाजो पर अब जनता का आरोप लग रहा है जनता स्पष्ट कर रही है की कहीं ऐसा ना हो जाए कि वर्तमान सरकार में भी ओहदा पाए अधिकारी फिर किसी नए घोटाले की संरचना न कर रहे हो और यह सरकार के लिए भी सिरदर्द बन सकती है क्योंकि कभी-कभी कोई घपला छुप जाता है लेकिन कभी कोई किया हुआ घपला सामने आ ही जाती है यह अलग की बात है कि समय अधिक लग जाए लेकिन घोटाला छुपाए नहीं छुपता है उस पर चाहे जितनी ही मिट्टी क्यों नहीं डाल दी जाए वह सामने आ ही जाता है अधिकारी अपनी मनमानी के चलते कुछ भी करें लेकिन जनता उसको सामने लाने के लिए भरकर प्रयास कर देती है और वह मामला अधिकारियों के लिए एक चुनौती बन जाता है।

जो भ्रष्टाचार उन्होंने किया है लेकिन मिटाने के प्रयास भी हुए हैं लेकिन जनता इस पर अगर दृष्टि बनाए हुए तो वह उनका किया हुआ भ्रष्टाचार उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन सकता है। लेकिन बात तो तब और बड़ी हो जाती है जब पूर्ववर्ती सरकार का किया हुआ घोटाला उजागर होता है और देखा यह जाता है कि वर्तमान सरकार में भी वह अधिकारी अपने ओहदे पर कायम है और उन पर किसी भी प्रकार की कोई जांच होती नजर नहीं आती है। यह कह लीजिए मामला दबा हुआ सा लगता है ऐसा ही एक मामला पूर्व में भी हो चुका है कहने का अर्थ है कि पिछली सरकार जो समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ थी उसके समय में एक बहुत बड़ा घोटाला जिसकी कीमत आंकी जा रही है।

लगभग 50 लाख का हुआ था यह मामला जंगल नीलामी से जुड़ा हुआ है। जो ग्राम सभा स्तर से जंगल की नीलामी हुई देखने से पता चलता है कि आज तक उस जंगल नीलामी की हिस्सेदारी का पैसा ग्राम सभा तक पहुंचा ही नहीं है जबकि जंगल नीलामी को काफी वक्त बीत चुका है2014-2015 सत्र के बीच में इसकी नीलामी हुई थी। उसके बाद सरकार बदली और भारतीय जनता पार्टी की योगी नेतृत्व की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी लेकिन देखने से यह भी पता चलता है की आज भी विभाग के सक्षम अधिकारी भी यह नहीं बता पा रहे हैं कि आखिर जंगल की नीलामी कितने की हुई? और जंगल की हिस्सेदारी से जो ग्राम सभा को पैसा मिलना चाहिए था विकास कार्यों के लिए आज तक ग्राम सभा क्यों नहीं पहुंचा?

आखिर यह कैसे हो सकता है कि विभाग को ही इस विषय की कोई जानकारी न हो, मामला तहसील सिधौली के विकासखंड कस्मंडा की ग्राम पंचायत फूलपुर से संबंधित यहां पर जंगल का नीलामी हुआ था और बताया जाता है कि काफी बड़ा जंगल था लेकिन नीलामी के बाद क्या हुआ इसका पैसा अब तक ग्राम सभा की विकास निधि को नहीं पहुंचा इस बात पर आज भी सवाल बना हुआ है लोगों का यह मानना है कि अधिकारी मिलकर डकार गए और ऐसा तो नहीं हो गया कि लाखों का जंगल कौड़ियों के भाव दिखा कर बाकी का पैसा घोटाले की मार्फत डकार लिया गया जिससे कि इसकी जांच कराने के लिए अब ग्रामीण लामबंद है।

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