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क्या स्पीकर स्वीकार करेंगे खट्टर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

गुरुग्राम। कृषि कानून पर केंद्र सरकार और किसान संगठनों का टकराव बीजेपी शासित राज्यों के लिए सिरदर्द बन रहा है. किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा सियासी असर हरियाणा में दिख रहा है। यही वजह है कि हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। एक तरफ किसान आंदोलित हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस ने खट्टर सरकार के खिलाफ विधानसभा सत्र के पहले दिन ही अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है। ऐसे में देखना है कि खट्टर सरकार इससे कैसे पार पाती है।

हरियाणा में पांच मार्च से शुरू होने वाले विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस ने खट्टर सरकार को घेरने की रणनीति तैयार कर ली है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में करीब एक दर्जन राज्य स्तरीय मुद्दे सदन में उठाने पर सहमति बनी है।

हुड्डा ने कहा कि बैठक में तय हुआ कि राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के बजट अभिभाषण के बाद खट्टर सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएग। इसके अलावा कानून में संशोधन कर उसमें किसान के लिए एमएसपी की गारंटी का प्रावधान जोड़ने के लिए कांग्रेस की तरफ से एक प्राइवेट मेंबर्स बिल भी इसी सत्र में लाए जाने का फैसला हुआ है।

प्रदेश के विधानसभा सदन में मौजूदा समय में कांग्रेस के 30 विधायक हैं और 18 विधायक खड़े होकर अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। हालांकि इसे स्वीकार या अस्वीकार करना स्पीकर के विवेक पर निर्भर करता है।

कांग्रेस विधायकों के द्वारा लाए जा रहे हैं प्रस्ताव को स्पीकर स्वीकार करते हैं तो दस दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करानी जरूरी होगा। ऐसे में खट्टर सरकार की पूरी कोशिश होगी कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव न लाए, क्योंकि किसानों के मुद्दे पर कई जेजेपी और निर्दलीय विधायक पिछले दिनों बागी रुख अपना चुके हैं।

बता दें कि हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार है। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 40 विधायक जीतकर आए थे, जिसके बाद जेजेपी के 10 विधायकों ने समर्थन दिया था। इसके अलावा निर्दलीय विधायकों की संख्या सात है। वहीं, कांग्रेस के 31 विधायक हैं। इसके अलावा एक विधायक लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा हैं। ऐसे में कुछ विधायक इधर से उधर हुए तो खट्टर सरकार के लिए परेशानी बढ़ा सकता है।

किसानों की बढ़ती नाराजगी के चलते जेजेपी के 10 विधायकों में से आधे विधायक शुरू से किसान आंदोलन के साथ खड़े हैं। इनमें बरवाला से जोगीराम सिहाग, शाहबाद से रामकरण काला, गुहला चीका से ईश्वर सिंह, नारनौंद से राम कुमार गौतम और जुलाना से अमरजीत ढांडा किसानों के समर्थन में हैं।

जेजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक राम कुमार गौतम ने नए कृषि कानूनों को रद्द करने को लेकर केंद्र से अनुरोध करने के लिए एक प्रस्ताव लाने के जरिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग पहले ही कर चुके हैं।

निर्दलीय विधायकों में महम के एमएलए बलराज कुंडू शुरू से बीजेपी के खिलाफ हैं, जबकि चरखी दादरी के निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान न केवल पशुधन विकास बोर्ड के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे चुके हैं, बल्कि सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैं।

ऐसे में बिजली मंत्री रणजीत चौटाला, पृथला के विधायक नयनपाल, पूंडरी के विधायक रणधीर गोलन, नीलोखेड़ी के विधायक धर्मपाल गोंदर और बादशाहपुर के विधायक राकेश दौलताबाद बचे हैं, जो फिलहाल खट्टर सरकार के साथ हैं। ऐसे में कांग्रेस सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाती है तो खट्टर सरकार के लिए इससे पार पाना बड़ी चुनौती होगी।

बता दें कि हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं, जिनमें से दो सीटें खाली है। मौजूदा विधानसभा में सदस्यों की संख्या देखें तो 88 है, जिनमें 40 बीजेपी, 30 कांग्रेस, सात निर्दलीय,10 जेजेपी विधायक और एक हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा है।

ऐसे में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाती है तो खट्टर सरकार को 45 विधायकों का समर्थन जुटाना होगा। बीजेपी-जेजेपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बनी सरकार के पास 55 विधायकों का समर्थन हासिल था, लेकिन फिलहाल आठ विधायक सरकार से अपनी नाराजगी जता चुके हैं।

हालांकि, जेजेपी के 6 विधायक कृषि कानून के खिलाफ हैं और समर्थन दे रहे दो निर्दलीय विधायक भी अब उसका साथ छोड़ चुके हैं। इस तरह से 8 विधायक सरकार के खिलाफ हो गए हैं, जिसके बाद खट्टर सरकार के समर्थन में फिलहाल 47 की संख्या हो रही है।

ऐसी स्थिति में खट्टर सरकार को बचाने का सारा दारोमदार निर्दलीय विधायकों पर होगा। इसी बात को देखते हुए पिछले दिनों सीएम मनोहर लाल खट्टर ने निर्दलीय विधायकों के साथ लंच रखा था। ऐसे में देखना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रस्ताव लाते हैं तो उनके साथ कितने विधायक खड़े होते हैं।

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