लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इन दिनों किसान आंदोलन के अलावा ‘नदी अधिकार यात्रा’ की चर्चा है। यह यात्रा कांग्रेस की है जो करीब 600 किमी तक निकलेगी। दरअसल, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। वे 21 फरवरी को प्रयागराज के बसवार गांव में उन नाविक परिवारों की महिलाओं से मिली थीं, जिन पर 4 फरवरी को पुलिस ने कथित रूप से लाठीचार्ज किया था। यह कार्रवाई अवैध खनन के आरोप में की गई थी।
तब प्रियंका ने निषादों की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया था। इस दौरान उन्होंने 1 मार्च से बलिया के मांझी घाट तक नदी अधिकार यात्रा निकालने की घोषणा की थी। हालांकि प्रियंका गांधी नहीं पहुंचीं, उनकी गैर मौजूदगी में कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने तय तारीख पर बसवार से इस यात्रा को रवाना किया था।
दरअसल, इस यात्रा के जरिये कांग्रेस मुख्य रूप से निषाद और दूसरी अति पिछड़ी जातियों को साधना चाहती है। कारण यह है कि पिछड़ी जातियां किसी एक पार्टी का वोट बैंक नहीं रही हैं। यही वजह है कि कांग्रेस इनको अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। यूपी में इनकी लगभग 13% की आबादी तो है लेकिन यह कभी एकजुट नहीं रहे।
इन्होंने कभी किसी विशेष दल का नहीं, बल्कि अपनी जाति के नेताओं को ही सपोर्ट किया है। यही वजह रही है कि यह कभी भी वोट बैंक नही बन पाए। लेकिन इन्हें एक वोट बैंक के रूप में प्रयोग करने की कवायद काफी लंबे समय से चल रही है। अब कांग्रेस भी इसी कोशिश में है।
यूपी में पिछड़ी जातियां कौन कौन सी है ?
यूपी में यादव और कुर्मी को पिछड़ी जातियों में छोड़ दें तो राजनीतिक दल 17 जातियों को लेकर हमेशा ही राजनीति करते आए हैं। इनमें राजभर जो पूरे प्रदेश में लगभग 1.32%, कुम्हार व प्रजापति लगभग 1.84%, गोंड .022% हैं। इनके अलावा बाकी 13 जातियां निषाद समुदाय से आती हैं। जिनमें निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, कहार, धीमर, मांझी और तुरहा शामिल हैं। पूरे प्रदेश में इस समुदाय की आबादी करीब 10% के आसपास है। यह लोग गंगा और यमुना नदी किनारे बसे हुए हैं। इन्हीं 13% वोट पर कांग्रेस की नजर है।
आखिर यह क्यों खास बने?
कितना प्रभाव है इन जातियों का?
जानकार बताते हैं कि प्रदेश की 153 विधानसभा सीटों पर यह 40 हजार से ज्यादा की संख्या में हैं। मिर्जापुर, गाजीपुर, वाराणसी, चंदौली, मऊ, जौनपुर, बलिया, आजमगढ़, भदोही, सिद्धार्थनगर, बस्ती, कुशीनगर और गोरखपुर जैसे इलाकों में इनकी बहुतायत है। वहीं, निषाद समाज का सबसे ज्यादा पूर्वांचल में प्रभाव है।
इसके बाद बुंदेलखंड में बांदा, हमीरपुर, फतेहपुर, जालौन और झांसी में हैं। वहीं, पश्चिमी यूपी में फर्रुखाबाद, औरैया, इटावा, कन्नौज, शाहजहांपुर, आगरा, फिरोजाबाद, बरेली, पीलीभीत जैसे जिले शामिल हैं। लेकिन एकजुट न होने के कारण इनकी स्थिति भी दलितों की तरह है। मुख्य पार्टियां भी केवल यादव, कुर्मी, पटेल और लोध बिरादरी को ही वोट बैंक मान कर चलती हैं।
क्या कांग्रेस को यह वोट बैंक मिलेगा?
प्रियंका गांधी के यूपी की कमान संभालने के बाद से ही ये लोग उनकी नजर में थे। इसकी पुष्टि उनके दाे बड़े कामों से होती है। पहली बात कि उन्होंने पूर्वांचल के कुशीनगर जिले से सदन में कांग्रेस की नुमाइंदगी करने वाले अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी। लल्लू भी पिछड़ी जाति के कानू समाज से आते हैं। दूसरी बात यह कि 2019 चुनावों से पहले ही प्रियंका गांधी ने गंगा यात्रा नाव पर की थी। प्रयागराज से वाराणसी तक उन्होंने गंगा किनारे बसे इसी वोट बैंक को साधा था। अब वह फरवरी महीने में 10 दिन के भीतर 2 बार प्रयागराज आ चुकी हैं और गंगा स्नान भी किया है।
एक्सपर्ट कमेंट
क्या कहते हैं इन जातियों के नेता?
भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को अगवा कराने में मदद करने वाले मुफ्ती…
चैंपियंस ट्रॉफी 2025 का फाइनल आज भारत और न्यूजीलैंड के बीच खेला जाएगा। मुकाबला दुबई…
भारत-न्यूजीलैंड के बीच चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला रविवार को दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में खेला…
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बां थी प्यारे उफ़ सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब…
दिल्ली सरकार की महिलाओं को 2500 रुपये हर महीने देने वाली योजना को लेकर नई…
अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेनी नेता की यह कहकर बेइज्जती किए जाने के बाद कि ‘आप…