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भट्टाचार्य, जो सिंगुर आंदोलन में ममता के रहे साथ, अब क्‍यों हुए खिलाफ? ज्‍वाइन की भाजपा

कोलकाता। बंगाल में पिछले 10 वर्षों से सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव से पहले लगातार झटके पर झटके लग रहे हैं। दीदी के सबसे भरोसेमंद व पुराने सिपाही भी एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं। इसी क्रम में ममता को उस वक्त एक और बड़ा झटका लगा जब बहुचर्चित सिंगुर आंदोलन में उनके प्रमुख साथी रहे वरिष्ठ नेता रवींद्र नाथ भट्टाचार्य ने भी उनका साथ छोड़ दिया।

टिकट नहीं मिलने से नाराज हुगली के सिंगुर से लगातार चार बार के विधायक व पूर्व मंत्री 80 वर्षीय भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा का झंडा थाम लिया। उनका भाजपा में जाना ममता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

इससे पहले बहुचर्चित नंदीग्राम आंदोलन के पोस्टर ब्यॉय व प्रमुख साथी रहे कद्दावर नेता सुवेंदु अधिकारी दिसंबर में ही तृणमूल छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। सुवेंदु इस बार नंदीग्राम सीट से ममता बनर्जी के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं, जिसपर सभी की नजरें हैं। दरअसल, सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन की बदौलत ही ममता ने बंगाल में लगातार 34 साल लंबे वाम शासन का अंत कर 2011 में सत्ता हासिल की थीं।

इस दोनों आंदोलन की अगुवाई ममता ने की थीं। कहा जाता है कि इनमें से नंदीग्राम आंदोलन में जहां सुवेंदु ने जबकि सिंगुर आंदोलन में रवींद्र नाथ भट्टाचार्य ने अहम भूमिका निभाई थीं। सिंगुर में टाटा के लखटकिया नैनो कारखाने के लिए किसानों से जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता ने तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के खिलाफ 2007-08 में आंदोलन चलाया था। ममता के आंदोलन के फलस्वरूप टाटा को सिंगूर छोडऩा पड़ गया था।

सिंगूर में हजारों करोड़ के निवेश से लगभग तैयार हो चुके कारखाने को टाटा को अक्टूबर 2008 में गुजरात के साणंद में स्थानांतरित करने को मजबूर होना पड़ा था। उस दौरान सिंगुर के विधायक व इलाके में मास्टर मोशाय (पूर्व शिक्षक) के रूप में विख्यात रहे भट्टाचार्य ने आंदोलन में ममता का भरपूर साथ दिया था। उन्होंने आंदोलन के लिए वहां के किसानों को ममता के पक्ष में गोलबंद किया था। लेकिन, वयोवृद्ध विधायक भट्टाचार्य को इस बार तृणमूल ने टिकट नहीं दिया।

सिंगुर आंदोलन के प्रमुख साथी रहे और 2001 से ही लगातार जीतते आ रहे भट्टाचार्य की जगह ममता ने इस बार उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रहे हरिपाल से विधायक बेचाराम मन्ना को सिंगुर सीट से टिकट दे दिया। इतना ही नहीं बेचाराम की पत्नी को भी दूसरी सीट से तृणमूल ने टिकट दे दिया।

इससे नाराज होकर अंतत: भट्टाचार्य को पार्टी छोडऩी पड़ी। वहीं, भाजपा में शामिल होने के मौके पर भट्टाचार्य ने कहा कि तृणमूल अब परिवार की पार्टी बन गई हैं। उन्होंने भाजपा से टिकट मिलने पर सिंगुर से ही लडऩे की इच्छा जताई।

गौरतलब है कि सिर्फ भट्टाचार्य और सुवेंदु अधिकारी ही नहीं बल्कि चुनाव से पहले 20 से ज्यादा तृणमूल विधायक ममता का साथ छोड़ चुके हैं। इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दावा कर चुके हैं चुनाव समाप्त होने तक ममता अकेले रह जाएंगी।

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