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भारत से दोगुने बड़े जंगल को मार्केट में बदल रहा रूस

रूस का अधिकांश सुदूर पूर्व इलाका इतना विशाल है कि यह ज्यादातर भालू, भेड़िए और दुर्लभ नस्ल के बाघों के लिए छोड़ दिया गया है। अब क्रेमलिन इसका उपयोग दुनिया को यह समझाने के लिए करना चाहता है कि वह जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अपनी ओर से कोशिशें कर रहा है। रूस, जो दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा निर्यातक और सबसे बड़े प्रदूषणकर्ता देशों में से एक है, ने एक नया डिजिटल प्लेटफार्म तैयार किया है जो सैटेलाइट और ड्रोन के जरिए कार्बन सोखने वाले जंगलों का डेटा जुटाएगा।

मकसद ये है कि भारत के आकार का लगभग दोगुना यह जंगली इलाका एक ऐसा मार्केट प्लेस बन जाए, जहां कंपनियां अपने कार्बन फुटप्रिंट्स को सहेज सकें। अपने जंगलों को मॉनिटाइज करने की इस योजना के तहत, कंपनियां रूसी सरकार से जंगल का कुछ हिस्सा किराए पर लेंगी। मौजूद पेड़ों का संरक्षण करेंगी और नए पेड़ भी लगाएंगी। आंकड़े ये बताते हैं कार्बन का अवशोषण बढ़ा तो कंपनियों को कार्बन क्रेडिट दिया जाएगा, जिसे वे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर खरीद-बेच सकेंगी।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक, रूस ने 2018 तक अपने जंगलों के जरिए 6 करोड़ 20 लाख टन कार्बन का अवशोषण किया है लेकिन उसकी कार्बन ऑफसेट स्कीम को वैज्ञानिकों की काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। रूस की तरह कनाडा भी, जिसके पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा वनक्षेत्र है और उसकी अर्थव्यवस्था जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, कार्बन क्रेडिट की खरीद-बिक्री का मार्केट तैयार कर रहा है।

रूस के मंत्री अलेक्सी चेकुलकोव कहते हैं, ‘रूस के पास विश्व का 20% जंगल है और हम उन्हें बड़े पैमाने पर ‘कार्बन कैप्चर हब’ में बदलने की क्षमता है। इस वजह से दुनिया को इस मामले में ईमानदार होना चाहिए कि हम भी सकारात्मक ढंग से जलवायु को बेहतर बनाने की कोशिशें कर रहे हैं।’

मकसद-जंगलों से पैसा कमाना और आलोचकों को जवाब देना

दरअसल, घने जंगलों से पैसा कमाने के साथ रूस दिखाना चाहता है कि वह जलवायु नियंत्रण के लिए प्रयासरत है। साथ ही उन आलोचकों को भी जवाब देना चाहता है, जो कार्बन उत्सर्जन के लिए अक्सर रूस को जिम्मेदार बताते हैं।

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