नई दिल्ली। भारतीय सेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन देने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सेना एक महीने के अंदर महिला अधिकारियों के लिए स्थाई कमीशन देने पर विचार करे और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए इन्हें स्थाई कमीशन दे।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने परमानेंट कमीशन के लिए महिला अफसरों के लिए बनाए गए मेडिकल फिटनेस मापदंडों को मनमाना और तर्कहीन बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे समाज का ताना-बाना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए ही बनाया गया है। अगर समय रहते इसे बदला नहीं गया, तो महिलाओं को पुरुषों के बराबर मौके नहीं मिल पाएंगे।
सेना की प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट नाराज
फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 250 की सीलिंग को 2010 तक पार नहीं किया गया। जिन आंकड़ों को रिकॉर्ड पर रखा गया है, वो केस के बेंचमार्किंग को पूरी तरह से ध्वस्त करते हैं। कोर्ट ने कहा कि सेना के अपनाए गए मानकों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। सेना में किसी का करियर कई ट्रायल के बाद शुरू होता है। यह तब और मुश्किल हो जाता है जब समाज महिलाओं पर चाइल्ड केयर और घरेलू काम की जिम्मेदारी डालता है।
मूल्यांकन की प्रक्रिया फिर से तय हो : कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्विस का गोपनीय रिकॉर्ड मेंटेन करने की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी हो। इसके मूल्यांकन की प्रक्रिया नए सिरे से तय की जाए, ताकि किसी अधिकारी के साथ भेदभाव नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट ने सेना में कई महिला अधिकारियों को फिटनेस, अन्य योग्यताओं और शर्तों को पूरा करने के बावजूद स्थाई कमीशन नहीं दिए जाने पर नाराजगी जताई।
फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
17 साल की कानूनी लड़ाई के बाद पिछले साल फरवरी में थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थाई कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं।
क्या है स्थाई कमीशन?
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