नई दिल्ली। पिछले साल काेराेना ने जब भारत पर पहली बार हमला किया, तब यहां दुनिया का सबसे सख्त लाॅकडाउन लगाया गया। चेतावनी साफ थी कि 130 कराेड़ की आबादी में अगर यह वायरस तेजी से फैला, ताे बेहद खतरनाक साबित हाेगा। हालांकि, यह लाॅकडाउन गलतियाें से भरा था और इसने काफी नुकसान भी पहुंचाया, लेकिन संक्रमण की राेकथाम में यह काम करता दिखाई पड़ रहा था। संक्रमण दर घट रही थी और तुलनात्मक रूप से कम थी।
फिर सरकारें और जनता सावधानी छाेड़कर राेजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त हाे गईं। विशेषज्ञाें ने चेतावनी भी दी थी कि अगर संक्रमण की दूसरी लहर आती है ताे सरकार की बेतरतीब कार्यप्रणाली एक और संकट काे जन्म देगी और अब वह संकट सिर पर खड़ा है। हालांकि, मृत्युदर अभी कम है, लेकिन बढ़ रही है। इतने बड़े देश में वैक्सीन लगाना आसान नहीं है, इसके बावजूद यह काम धीमे चल रहा है। अस्पताल में बिस्तर भी कम पड़ते दिख रहे हैं।
वैज्ञानिक अभी वायरस के नए स्ट्रेन को समझने की कोशिश कर रहे
वैज्ञानिक अभी वायरस के नए स्ट्रेन (रूप) काे समझने की काेशिश कर रहे हैं। खासताैर पर यहां उस स्ट्रेन की पहचान की काेशिश कर रहे हैं, जिसने ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका के लिए खतरा पैदा किया था। समस्या यह है कि प्रशासन ने यह कहते हुए हथियार डाल दिए हैं कि काॅन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग लगभग असंभव है।
विशेषज्ञाें का मानना है कि लापरवाही और सरकार की गलत नीतियाें के कारण भारत जाे संक्रमण के खिलाफ सफल हाेता नजर आ रहा था, वह आज दुनिया का सबसे ज्यादा प्रभावित देश बनता जा रहा है। इसका असर न केवल भारत पर, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा। बावजूद इसके नेता बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां करते दिख रहे हैं।
ताे 70% आबादी काे वैक्सीन लगाने में दाे साल लग जाएंगे
एक महीना अहम, तभी जान पाएंगे कि हम किस वैरिएंट से लड़ रहे हैं
भारत में दाे तिहाई आबादी की उम्र 35 साल से कम है। अगर कोरोना से मृत्यु दर 45 से 75 साल के आबादी में मापी जाए, ताे हालात इटली, ब्राजील और अमेरिका से ज्यादा खराब नजर आएंगे। माैजूदा लहर में संक्रमण का वैरिएंट अलग हाे सकता है।
लेकिन, इसकी पुष्टि तब तक नहीं हाे सकती, जब तक जिनाेम सिक्वेंसिंग टेस्ट की मात्रा 5% न हाे जाए। फिलहाल यह संख्या 1% है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगला एक महीना अहम हाेगा, यह जानने के लिए कि किस वैरिएंट से लड़ रहे हैं।
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