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खुद हार गया हज़ारो जिंदगियां बचाने वाला गरीबो का मसीहा…

न्यूज 7 एक्सप्रेस ब्यूरो
-शहर के प्रतिष्ठित एरा मेडिकल कॉलेज में कार्यरत हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ फ़ज़ल करीम की कोरोना ने ली जान
-नहीं काम आयीं दुवाएं, गरीबों को बिखलता छोड गया मसीहा

लखनऊ। परेशानियों से भागना आसान होता है, हर मुश्किल जिंदगी में एक इम्तेहान होता है,
हिम्मत हारने वाले को कुछ नहीं मिलता ज़िंदगी में, और मुश्किलों से लड़ने वाले के क़दमों में ही तो जहान होता है।

जी हां, यह वही अल्फाज हैं, जो डाक्टर फ़ज़ल करीम पर एक दम सटीक और सार्थक बैठते हैं। कहने को आज इंसान खुद के लिए सब कुछ हासिल कर लेता है, लेकिन अगर धरती पर आकर आपने दूसरों के लिए जीवन नहीं जिया, तो क्या जिया।

खुद की जान की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा करने में जुटा रहा गरीबों का मसीहा कहा जाने वाला शहर का जांबाज डाक्टर फ़ज़ल करीम खुद को भी कोरोना से संक्रमित होने होने के बाद अपनी जान नहीं बचा पाया। इसके साथ ही शहर ने एक अच्छा व गरीबों के लिए समर्पित डाक्टर को खो दिया।  डॉ फजल कर्मचारियों, छात्रों, मरीजों और सहयोगियों को अपने परिवार की तरह मानते थे।
हज़ारो जिंदगियां बचा कर परिवारों में खुशी लौटने वाले शहर के प्रतिष्ठित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर फ़ज़ल करीम खुद मौत से हार गए। एरा लखनऊ मेडिकल कॉलेज के हृदय रोग विभाग के प्रमुख डॉक्टर फ़ज़ल करीम 9 अप्रैल को कोरोना से संक्रमित हुए थे , वे अस्पताल में भर्ती थे।
चार दिन पहले ब्रेन स्टॉक के कारण उनकी हालत अति गंभीर हो गयी थी। तभी से सोशल मीडिया के तमाम माध्यम पर उनके स्वस्थ होने की दुआएं मांगी जा रही है। लोगो ने डॉ फ़ज़ल की फ़ोटो को अपनी डीपी बना लिया था। लेकिन जिंदगी की जंग वो हार गए और बुधवार सुबह उन्होंने एरा में अंतिम सांस ली।
डाक्टर फ़ज़ल करीम की खासियत थी कि न सिर्फ गरीबों का मुफ्त में इलाज करते थे बल्कि दवा भी मुफ्त में देते थे। गंभीर रूप से बीमार लोगों की आर्थिक मदद भी करते थे, उनके असमय चले जाने की वजह से लोगों को अपूर्णीय क्षति हुई है। उल्लेखनीय है कि राजधानी में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर, नर्स और स्टाफ किस स्थिति में काम कर रहे हैं, ये सिर्फ वहीं जानते हैं।
वे 24 घंटे मरीजों के लिए तैयार रहते थे। डॉ फ़ज़ल को बेहतर कार्डियोलॉजिस्ट के साथ साथ गरीबो का मसीहा भी कहा जाता था, वे मरीजो को अपने परिवार का सदस्य मानते थे, यहाँ तक कि अस्पताल में भर्ती कुछ मरीजो के लिए अपने घर से भी खाना लाते थे। वो हर स्तर से गरीबों की मदद करते थे।  जिन मरीजों के पास पैसा नहीं होता उसे फीस नहीं लेने के साथ-साथ दवा भी देते थे। उनकी मौत न सिर्फ उनके परिवार और दोस्तों का नुकसान है बल्कि मेडिकल की दुनिया का भी बड़ा नुकसान है।
46 वर्षी की उम्र में ही डाक्टर फ़ज़ल करीम ने चिकित्सा विशेषज्ञों की दुनिया मे अपना नाम कमाया था। उन्होंने ने एमबीबीएस अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से किया था, एमडी और डीएम कार्डियोलॉजी पीजीआई चंडीगढ़ से किया था। डॉ फ़ज़ल 2015 से एरा में कार्यरत थे। डॉ फ़ज़ल की मौत से चारों तरफ शोक की लहर है।
एरा यूनिवर्सिटी के प्रो उप कुलपति मीसम अली खान ने अपने बयान में कहा है कि  एरा परिवार ने आज अपने सबसे प्रिय सदस्य को खो दिया है। डॉ फ़ज़ल कर्मचारियों, छात्रों, मरीजो और सहयोगियों को अपने परिवार की तरह मानते थे। उन्होंने कहा कि हम सभी अपने जीवन में कई अच्छे लोगों को जानते हैं लेकिन जिस पद पर मैंने उन्हें देखा वह बहुत ऊँचा था। एक ईमानदार, दयालु और विद्वान व्यक्ति को खोजना मुश्किल है, इसे कभी भी प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इस मौके पर हम  जरूरतमंद और गरीब मरीजों की सेवा के लिए अपने संकल्प को और मजबूत करते हैं, हमारी सेवा ही इस महान आत्मा को हम सभी की तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि होगी*।
उन्होंने डॉ फ़ज़ल को बचाने में लगी क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट की टीम, डॉ मुस्तहसिन मलिक, डॉ मधुलिखा, रेजिडेंट्स और अन्य सभी स्टाफ के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भगवान डॉ फ़ज़ल के परिवार और एरा परिवार को इस नुकसान को सहन करने की शक्ति प्रदान करें । मृतक को  स्वर्ग में सर्वोच्च स्थान प्रदान करें। डॉ फ़ज़ल की शहादत पर आज देश गमज़दा है।
भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को कोरोना से बचाने के लिए ढाल बने हुए हैं। वे 12.12 घंटे काम करते हैं, परिवार से दूर रहते हैं और फिर क्वारंटीन में चले जाते हैं। उनकी जगह कोई और डॉक्टर ले लेता है। यह सिलसिला बिना रुके चल रहा है।
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