काबुल। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित एक स्कूल के पास 5 मई को एक धमाका हुआ था। इसमें 80 लोगों की मौत हो गई, जबकि 160 लोग घायल हुए थे। धमाका ऐसे वक्त हुआ था जब लड़कियां स्कूल से घर जाने के लिए निकली थीं। फिर भी यहां के छात्र, परिवार और शिक्षकों ने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।
इस हमले में फरजाना असगरी की 15 वर्षीय छोटी बहन की भी मौत हो गई थी। धमाके के दौरान फरजाना भी फस गई थीं। लेकिन जिंदा बचकर घर लौटने के बाद फरजाना ने दृढ़ संकल्प लिया कि वह स्कूल खुलने पर दोबारा पढ़ने जाएंगी।
वहीं जब स्कूल खुले तो वहां पहुंचने वाले स्टूडेंट्स में सबसे ज्यादा लड़कियां ही थीं। फरजाना के साथ-साथ अन्य लड़कियां कहती हैं- ‘एक और हमला हुआ तो हम तब भी स्कूल जाएंगे। तालिबान चाहता है हम अशिक्षित रहें। लेकिन हम उनके मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे। हम शिक्षित होकर ही रहेंगे।’
फरजाना कहती हैं- हम निराश होने वालों में से नहीं हैं। हमें ज्ञान और शिक्षा हासिल करने के लिए डर छोड़ना ही होगा।’ अफगानिस्तान के एनजीओ से जुड़ी फौजिया कूफी बताती हैं कि यहां तालिबानी शासन 1996 से 2001 के दौरान लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगी थी। लेकिन अब परिवार भी बिना डरे लड़कियों को स्कूल भेज रहे हैं।
अफगानिस्तान में 35 लाख लड़कियां जा रही हैं स्कूल
एक एनजीओ से जुड़ी फौजिया कूफी कहती हैं- ‘अफगानिस्तान ने पिछले दो दशक में परिवर्तनकारी बदलाव देखे हैं। देश में अब 35 लाख लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं।’ पहले महिलाओं को अपने शरीर-चेहरे को पूरी तरह बुर्के से ढकना होता था। जो धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है।
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