नई दिल्ली। इस साल मार्च-मई की अवधि में देश में बेरोजगारी दर दोगुनी से अधिक हो गई है क्योंकि महामारी की दूसरी लहर ने काम-धंधों को चौपट कर दिया है। एक प्राइवेट रिसर्च ग्रुप द्वारा जारी किए गए डेटा में ये जानकारी सामने आई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी द्वारा जारी साप्ताहिक बेरोजगारी के आंकड़ों के अनुसार, इस बार महामारी और इसके चलते लगाए गए प्रतिबंधों का खामियाजा ग्रामीण आबादी को भी भुगतना पड़ा है।
पिछले साल पहली लहर के दौरान, शहरी तबका मुख्य रूप से प्रभावित हुआ था।साथ ही, नवीनतम कोविड उछाल से महिलाओं पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि 16 मई तक बेरोजगारी दर 14.45 प्रतिशत थी। जबकि 14 मार्च को ये आंकड़ा 6.63 प्रतिशत था। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी स्थिति समान रूप से दयनीय है।
सीएमआईई ने उन लोगों को बेरोजगार के रूप में वर्गीकृत किया, जिन्होंने नौकरी की तलाश की, लेकिन एक सप्ताह में 1 घंटे से कम काम प्राप्त किया। गंभीर स्थिति का एक और संकेत ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों में पाया जा सकता है। जिसमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी के तहत प्रदान किए गए काम में भारी वृद्धि हुई है। मनरेगा के तहत प्रदान की जाने वाली मजदूरी कम है और भुगतान में अक्सर देरी होती है। जिसके चलते मजदूर इसे कम ही प्राथमिकता देते हैं।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा के तहत मई में लगभग 1.85 करोड़ लोगों को काम की पेशकश की गई है। 2019 की तुलना में ये 52 प्रतिशत से अधिक है। मनरेगा के तहत मजदूरी की दर 16 राज्यों में आधिकारिक न्यूनतम मजदूरी दर से कम है। राज्यों की न्यूनतम मजदूरी दरें स्वयं बाजार मजदूरी दरों से कम होती हैं।
इसके अलावा, मनरेगा के तहत काम खत्म करने के 15 दिन बाद मजदूरों को भुगतान किया जाता है, और फिर भी भुगतान में अक्सर देरी होती है।अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक फैकल्टी, श्रम अर्थशास्त्री अमित बसोले ने कहा कि महामारी ने श्रमिक-जनसंख्या अनुपात (WPR) को कम कर दिया है, जो आबादी के बीच कार्यरत कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या को दर्शाता है।
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