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थोक महंगाई निकली 10% के पार, 7.39% से बढ़कर हुई 10.49%

नई दिल्ली। महामारी के इस दौर में आम लोगों की मुश्किलों कम होने का नाम ले रही। एक तरफ कोरोना वायरस से लोगों के जान पर बन आई है, तो दूसरी ओर महंगाई की मार से आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो रही है। अप्रैल में लागत बढ़ने से थोक महंगाई दर 11 साल के सबसे ऊंचे स्तर 10.49% पर पहुंच गई है, जो मार्च में 7.39% रही। यह सप्लाई चेन पर बुरा असर पड़ने, ईंधन और मेटल के महंगे होने से बढ़ रही है।

हालांकि, रिटेल महंगाई दर घटकर 4.3% रही, जो मार्च में यह 5.52% थी। यह लगातार 5वें महीने रिजर्व बैंक के तय दायरे 2%-6% में है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरा थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।

दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग आइटम को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07%, कपड़े की 6.53% और फ्यूल सहित अन्य आइटम की भी भागीदारी होती है।

महंगाई से इकोनॉमी पर क्या असर पड़ रहा है?
प्रोडक्शन में लागत बढ़ने से महंगाई भी बढ़ती है, जिसका सीधा असर ग्राहकों की जेब पर पड़ता है। अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर से सप्लाई पर बुरा असर पड़ा। इससे थोक महंगाई दर एक दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया। इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों के पर्चेजिंग पावर और जीवनयापन के तौर-तरीके बुरी तरह प्रभावित हुई। जानकारों के मुताबिक महंगाई बढ़ने से कर्ज लेने वालों के लिए तो राहत की बात होती है, लेकिन बैंक और NBFC जो इन्हें कर्ज बांटते हैं उन्हें नुकसान होता है।

चुनावी मौसम में राजनीतिक पार्टियों पर भी महंगाई का असर पड़ता है?
हां। चुनाव के दौरान महंगाई काफी अहम मुद्दा होता है। क्योंकि यह आम जनता यानी मतदाताओं की जेब पर भारी पड़ता है। नतीजतन सत्ताधारी पार्टी हमेशा महंगाई को काबू में रखने के लिए तरह-तरह की रियायतें देती रहती है। क्योंकि सब्जी, फल सहित रोजमर्रा के आइटम महंगे होने से विपक्षी पार्टियां सरकार को घेर सकती हैं। इसके अलावा किसान भी सरकार के खिलाफ जा सकते हैं।

महंगाई में रिजर्व बैंक की भूमिका काफी अहम होती है
रिजर्व बैंक यानी RBI देश में महंगाई दर 2%-6% के दायरे में रखने के लिए काफी अहम भूमिका निभाता है। जैसे कैश सप्लाई, ब्याज दरों में कटौती के अलावा समय-समय पर अन्य रियायतें देता रहता है।

महंगाई में हमेशा गिरावट कितनी अच्छी होती है?
इकोनॉमिस्ट के मुताबिक डिमांड में गिरावट से महंगाई दर भी गिरती है तो यह अच्छी बात नहीं। लेकिन अगर खान-पान के आइटम कीमतें घटने के अलावा, अप्रैल में कीमतों में गिरावट की बड़ी वजह लॉकडाउन से बने कमजोर इकोनॉमिक एक्टिविटी को माना जा सकता है। क्योंकि लोगों की आमदनी या तो घटी या फिर खत्म हो गई, जिससे डिमांड में गिरावट आई।

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