वॉशिंगटन। एक साल पहले जब शिकागो के मिनियापोलिस में गोरे पुलिस अफसर डेरेक शाउविन ने अश्वेत जार्ज फ्लॉयड को गले पर घुटना रखकर मार डाला था, तब उस दृश्य में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था। अमेरिका में पुलिस हर साल एक हजार से अधिक लोगों को जान से मार देती है। मरने वालों में गोरों की संख्या अधिक रहती है। लेकिन, आबादी के अनुपात (13%) में अश्वेतों की मौतें दोगुनी होती हैं।
कई अन्य मापदंडों पर अश्वेत पिछड़े हैं। इधर, बीते कुछ दशकों में स्थिति बदल रही है। 90% अमेरिकी गोरों और कालों के बीच विवाह का समर्थन करते हैं। देश में 2019 के बाद श्वेत बच्चों की संख्या अश्वेतों से कम हो गई है। अब अश्वेत भी महसूस करते हैं कि पहले के मुकाबले रंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव में गिरावट आई है।
लोगों के रुख में परिवर्तन के संबंध में पत्रकार मैट येगलेसियस कहते हैं, 2008 में बराक ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वामपंथी झुकाव रखने वाले श्वेत अमेरिकियों में नस्ल को लेकर जागरूकता पैदा हुई थी। फिर ट्रम्प समर्थकों ने अभियान चलाया कि देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा विदेशी हैं। पुलिस द्वारा बाल्टीमोर और न्यूयॉर्क में एक-एक अश्वेत की हत्या और साउथ केरोलिना में एक अश्वेत चर्च में भीषण गोलीबारी की घटनाओं से लोगों को अहसास हुआ कि वे जितना सोचते थे, रंगभेद उससे बहुत अधिक व्यापक है। और फिर डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बन गए।
इस बीच ऐसा सोचने वाले गोरों की संख्या बढ़ गई है कि भेदभाव के कारण अश्वेत अमेरिकियों के पास अच्छी नौकरियां नहीं हैं, उनकी आय कम है। यह सोचने वाले श्वेतों की संख्या पिछले छह सालों में 33% घटी है कि सरकार को अश्वेतों के साथ विशेष व्यवहार नहीं करना चाहिए। उल्टे अब अश्वेत लोग ही अपनी स्थिति के लिए गोरों की बजाय अश्वेतों को दोषी ठहराते हैं। रंग और नस्ल को लेकर लोगों के रुख में बदलाव तो आया है लेकिन काले और गोरे अमेरिकी अब भी 1970 के समान ही अलग-थलग हैं।
रंगभेद अब भी स्वास्थ्य, गरीबी और पर्यावरण से महत्वपूर्ण मुद्दा
अमेरिकी अफ्रीकी भी सोचते हैं कि अब पहले की तुलना में नस्लीय भेदभाव कम है। 1985 में तीन चौथाई अश्वेत सोचते थे कि भेदभाव के कारण ही गोरों के पास अच्छी नौकरियां, आकर्षक वेतन और शानदार मकान हैं। 2012 में ऐसा सोचने वालों की संख्या आधी रह गई थी। हालांकि, डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद यह संख्या बढ़ गई थी। फिर भी, गैलप के सर्वे में रंगभेद को स्वास्थ्य सेवाओं, गरीबी, अपराध, पर्यावरण या राष्ट्रीय सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा माना गया है।
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