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ग्लोबल टेंडर के बाद भी हाथ खाली: राज्यों को वैक्सीन खरीदने की छूट मिले महीना पूरा

नई दिल्ली। भारत में मरीजों की संख्या घटने के बावजूद वैक्सीन की कमी से कोरोना के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ रही है। दिल्ली सहित कई राज्यों में टीके न होने से बड़ी संख्या में वैक्सीनेशन सेंटर बंद हो गए हैं। केंद्र सरकार ने 19 अप्रैल को राज्यों को सीधे कंपनियों से टीका खरीदने की छूट तो दी, लेकिन इसमें भी एक महीना बर्बाद ही हुआ। उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली सहित 9 राज्यों ने दुनियाभर के वैक्सीन निर्माताओं से 28.7 करोड़ डोज खरीदने के ग्लोबल टेंडर जारी किए, लेकिन कोई विदेशी कंपनी राज्यों को इस साल वैक्सीन देने की स्थिति में नहीं है।

कंपनियों ने राज्यों के आवेदनों पर गौर ही नहीं किया
अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने पंजाब को वैक्सीन देने से इनकार कर दिया। वहीं, फाइजर ने दिल्ली सरकार को कहा कि वह केंद्र सरकार को ही वैक्सीन देगी। इस बीच भास्कर ने अमेरिकी वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना से संपर्क किया। उनका कहना था कि हमने भारतीय राज्यों के आवेदनों पर गौर ही नहीं किया। ज्यादातर राज्यों ने कंपनियों को सप्लाई के लिए 3-6 महीने की डेडलाइन दी है, लेकिन वैश्विक मांग को देखते हुए जनवरी से पहले हम टीका देने की स्थिति में नहीं हैं।

अमेरिकी कंपनी ने उठाया सवाल
अमेरिकी कंपनियों ने राज्यों के अलग-अलग टेंडर पर सवाल उठाया। उनका कहना है कि राज्यों के साथ काम करने में ज्यादा समय लगेगा। अधिकारियों ने कहा कि भारत ने पहले ही वैक्सीन का सौदा करने में देर कर दी है। कई देश तो ऐसे हैं जिन्होंने वैक्सीन को मंजूरी मिलने से पहले कंपनियों से करार कर लिया था।

केंद्र से ही ऑर्डर लेने की बात कही
फाइजर के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि दुनियाभर में यही नीति है कि वैक्सीन का ऑर्डर सीधे संघीय (केंद्र) सरकार देती है। लाखों-करोड़ों लोगों की जिंदगी का सवाल हो तो ऐसा करने से काम आसान और तेज हो जाता है। भारत ने बीते महीने फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन सहित विदेशी वैक्सीन निर्माताओं से फास्ट-ट्रैक अनुमोदन का वादा किया, लेकिन किसी कंपनी ने दवा नियामक से टीके की अनुमति नहीं मांगी।

दिसंबर तक 216 करोड़ डोज
हालांकि भारत सरकार ने हाल ही में दावा किया था कि अगस्त से दिसंबर के बीच देश में वैक्सीन की 216 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी। देश में अभी कोवीशील्ड, कोवैक्सिन और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक-वी के इस्तेमाल की ही मंजूरी है।

फाइजर से बातचीत जारी, मतभेद सुलझाएंगे विदेश मंत्री जयशंकर
विदेश मंत्री एस. जयशंकर सोमवार को अमेरिका पहुंचे। फाइजर ने बताया कि कंपनी भारत सरकार से बात कर रही है। टीकों की सप्लाई वहां की सरकार को करना है। जल्द समझौते की उम्मीद है। सूत्र कह रहे हैं कि भारत सरकार फाइजर को कानूनी संरक्षण की पेशकश कर सकती है।

बाइडेन ने रुकावटें हटाईं, इसलिए मौतें घटी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका में वैक्सीन उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए टीके बनाने और वितरण में आने वाली रुकावटें हटाईं। फाइजर और मॉडर्ना को टीकों के उत्पादन और आपूर्ति के लिए अरबों डॉलर की मदद दी। अमेरिका के 50 राज्य अपने-अपने दम पर वैक्सीन लेते तो इसमें देरी होती। वहीं, फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बौर्ला ने कहा कि उत्पादन बढ़ाने पर हम विदेशों में ज्यादा टीके भेजेंगे। अमेरिका की मांग पूरी होने के बाद कंपनियां भारत को टीका दे सकेंगी।

चुनौती: राज्यों को मार्केट से टीका लेने का अनुभव नहीं
केरल, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा, कर्नाटक सहित 20 राज्यों ने फ्री टीके देने की घोषणा तो कर दी लेकिन उन्हें इंटरनेशनल मार्केट से टीके खरीदने का पहले कोई अनुभव नहीं है। दरअसल, देश में 1960 से टीकाकरण केंद्र कर रही है। राज्य वैक्सीन खरीदने के लिए अलग-अलग टेंडर जारी करते हैं तो फायदा उठाकर कंपनियां मनमाना पैसा वसूल सकेंगी।

एक्सपर्ट व्यू : टीके को लेकर एक मंच पर काम करें केंद्र-राज्य

  • के. श्रीनाथ रेड्‌डी, कोविड-19 पर नेशनल टास्क फोर्स के सदस्य: केंद्र व राज्य को एक प्लेटफॉर्म पर काम करना होगा। कंपनी भारतीय हो या बाहर की, एक कीमत पर बात हो और राज्यों को जरूरत के हिसाब से टीके मिलें।
  • इंद्रनील मुखोपाध्याय, हेल्थ इकोनॉमिस्ट: 130 करोड़ लोगों के लिए टीके की कीमत करीब 56 हजार करोड़ (500 रु. प्रति व्यक्ति) पड़ेगी। केंद्र पूरी वैक्सीन खरीदे तो लागत करीब 35 हजार करोड़ रु. आएगी। पैसे कम पड़ें तो पीएम केयर फंड से दे सकते हैं।
  • अमर जेसानी, इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स: टीकाकरण केंद्र चलाता था। राज्यों को नहीं कह सकते।
  • शोभित सिन्हा, अर्थशास्त्री: राज्यों का हेल्थ बजट कम है। भार कैसे उठाएंगे?

बजट में की व्यवस्था पर भी संशय
वित्तमंत्री ने इस बजट में टीकाकरण के लिए 35 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया, पर यह स्पष्ट नहीं कि अनुदान मिलेगा या कर्ज? वहीं, टीके रखने के लिए जरूरी संसाधन भी बड़ी चुनौती है। कुछ टीके माइनस 70 तापमान पर रखने होते हैं। राज्य ये संसाधन कैसे जुटा पाएंगे?

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