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चीनी कोरोना जैविक युध्द की कठपुतली तो नहीं ?

ऋतुपर्ण दवे
दुनिया भर में यूँ तो चमगादड़ मानव सभ्यता के विकसित होने के साथ ही कई-कई किवदंतियों और धारणाओं के कारण चर्चित रही हैं लेकिन हाल ही में कोविड-19 के दौरान एकाएक फिर चर्चाओं के केन्द्र बिन्दु में आ गईं। यह बात अलग है कि अबतक ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जिसके चलते पुख्ता तौर पर साबित हो जाए कि चमगादड़ से ही कोरोना वायरस निकला, फिर वुहान से आगे फैला या फैलाया गया।
चमगादड़ों से पहले भी कई तरह की खतरनाक बीमारियां हो चुकी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की 2018 की एक रिपोर्ट में जीका, इबोला और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स कोरोनो वायरस सरीखी एक नई अज्ञात बीमारी ‘डिजीज एक्स’ की भी चर्चा थी। यहां ध्यान रखना होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में ही इसके सहित 10 ऐसी वायरल बीमारियों की सूची भी जारी की जो महामारी पैदा कर सकते है। अब ऐसा माना जा रहा है कि कहीं कोविड-19 ही वही डिजीज एक्स तो नहीं?
वैज्ञानिक और शोधकर्ता पीटर दासजक भी डब्ल्यूएचओ की उस टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने यह सूची बनाई थी। उन्होंने तभी एक लेख में लिखा था कि एक ऐसी संक्रामक बीमारी होगी जो तेजी से उभरेगी। इसका आर्थिक विकास, जनस्वास्थ्य पर जबरदस्त असर पड़ेगा। शुरुआत में इसे लेकर भ्रम की स्थिति होगी। संक्रमण यात्रा, व्यापार व आपसी संपर्कों के चलते तेजी से पूरी दुनिया में फैलेगी। उन्होंने यहां तक कहा कि इससे मौतें साधारण मौसमी फ्लू से बहुत अधिक होंगी जो महामारी बन दुनिया के तमाम बाजारों को झकझोर देगी। हुआ भी वही।
चीन के दक्षिण-पश्चिम पहाड़ी इलाके में कुछ गांव हैं जहाँ तांबे की खदानें हैं। इनकी खाली जगहों पर चमगादड़ों के झुण्ड रहते हैं। सन् 2012 में कुछ मजदूर खाद बनाने के लिए इनकी बीट इकट्ठा करने गए थे। इसी दौरान 6 मजदूर एक रहस्यमयी बीमारी की चपेट में आ गए। पहले बुखार फिर खांसी और करीब पखवाड़े भर बाद गहरा कत्थई बलगम आने लगा। इलाज के दौरान 3 की मौत हो गई जिससे हड़कंप मच गया। इस नई बीमारी की पतासाजी का जिम्मा वुहान के जैविक अनुसंधान केन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को दिया गया। जिसने खदान में चमगादड़ों के सैंपल बटोरे। जांच में कोरोना फैमिली के कई विषाणुओँ का पता चला।
जबकि कई का मानना है कि इसी वुहान लैब से कुछ दूर हुआनन पशु बाजार है। लैब से लीक वायरस यहां पहुंचा। पहले पशुओं को चपेट में लिया फिर उनसे इंसानों तक। कोरोना वायरस लीक को लेकर अमेरिकी इंटेलिजेंस की एक गुप्त रिपोर्ट में भी ऐसा ही जिक्र है कि नवंबर 2019 में वुहान लैब के 3 शोधकर्ता एक नए और गंभीर रोग के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हुए थे।
चीन भी मानता है कि कोविड जैसे लक्षणों से बीमार होने का पहला मामला 8 दिसंबर को 2019 को आया था। सभी को जोड़कर देखें तो कोरोना की शुरुआत के दावे में दम है। लेकिन कोविड-19 को लेकर भ्रम है क्योंकि उसी समय सार्स-कोविड-2 भी पैर पसार रहा था। कुल मिलाकर पीटर दासजक की थ्योरी यहां काम कर रही है। सन् 2018 में ही उन्होंने रहस्मय बीमारी डिजीज एक्स का नाम देकर यह इशारा किया था।
घूम फिरकर शक वुहान की लैब पर बार-बार जाने की वजहें भी हैं। कोरोना वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिकों ने अपने शोध के दौरान वायरस में कुछ फिंगरप्रिन्ट देखे। यह न केवल चौंकाने वाला सत्य था बल्कि बड़ा तथ्य था कि हो न हो कहीं इंसानी करतूत तो नहीं? कई वैज्ञानिक उसी वक्त खुलासा करना चाहते थे तो कई बड़ी चीनी जांच संस्थाओं सहित दूसरों ने इसे नकारते हुए चमगादड़ जनित बीमारी की वजनदारी दे डाली।
जाहिर है कहीं न कहीं कुछ तो हुआ था। घूम फिरकर बात वहीं जा अटकती है। थोड़ा राजनैतिक घटनाक्रम भी समझना होगा। तबके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प लगातार चीन पर आरोप मढ़ते रहे लेकिन उनकी चर्चित कार्यप्रणालियों के चलते गंभीरता से तवज्जो नहीं मिली। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कोरोना का खूब असर दिखा और ट्रम्प राष्ट्रपति का चुनाव हार गए। हां, यह कहना गलत न होगा कि ट्रम्प की हार कोरोना वायरस से नहीं हुई बल्कि इस संकट से निपटने की नाकामी जरूर कही जा सकती है। इस तरह कोरोना ने दुनिया के दारोगा कहलाने वाले देश को भी आईना दिखा दिया।
हालांकि काफी जोर आजमाइश के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम भी वुहान लैब गई और केवल 3 घण्टे रही। चीनी वैज्ञानिकों की मौजूदगी और दांवपेंच के साथ जांच के बाद लैबोरेटरी लीक की गुंजाइशों को बहुत कम बताया। टीम को लैब के तमाम जरूरी दस्तावेज मांगने पर भी नहीं दिखाए गए। संगठन प्रमुख डॉ. टेड्रोस घेब्रेसस ने भी माना कि कोरोना के लैब लीकेज की गहराई से पड़ताल नहीं हो सकी। टीम न वह खदान पहुंच सकी जहां से चमगादड़ की बीट इकट्ठी की गई और न ही वहां के लोगों के एंटीबॉडी टेस्ट व जानवरों तक की जांच ही करा पाई।
इधर जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के 4 महीने बाद 90 दिनों में कोरोना वायरस की शुरुआत होने की निर्णायक जांच के आदेश से कहीं न कहीं न ट्रम्प के दावों को न केवल बल मिला बल्कि चीन की हेकड़ी को भी ठेंगा मिला। जाहिर है चीन चिढ़ा है, उसपर शक की तमाम गुंजाइशें अभी खत्म नहीं हुईं। अमेरिका के सबसे बड़े विषाणु विज्ञानी एंथनी फाउची भी मानते हैं कि यकीन की गुंजाइश ही नहीं है कि कोरोना वायरस स्वाभाविक रूप से जन्मा हो।
चीन बताता क्यों नहीं कि लैब में क्या हुआ था? पूरी जांच तब तक नहीं रुके जबतक इसकी तह तक न पहुंच जाएं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के पास भी पुख्ता सबूत की बात कही जा रही है जिसमें वुहान लैब में 3 लोगों के गंभीर रूप से संक्रमित होने को अबतक राज रखा गया बल्कि वायरस के गंभीर खतरों से आगाह कराने वाले व्हिसल ब्लोअर डॉ. ली वेलियांग का बुरा हश्र और संदिग्ध परिस्थितियों में इससे मौत के कारण भी हैं।
बीते डेढ़ बरस से कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। करोड़ों के संक्रमित होने और लाखों की मौत के बाद भी शक की सुई वुहान पर ही बने रहने की तमाम वजहों के बीच कोरोना के ओरिजिन का सवाल, सवाल ही बना हुआ है? इसको लेकर तमाम तरह के भ्रम भी लगातार फैलाए जा रहे हैं। बीमारी की उत्पत्ति को लेकर विकसित, विकासशील और तमाम तरह की वैज्ञानिक और शोध तकनीकों के बाद भी दुनिया पहली बार इतनी भ्रमित है।
शायद इसीलिए कि कोरोना बहुरूपिया है। वह चकमा देना जानता है। परिस्थितियों के अनुसार अपना रूप और आक्रमण का तरीका बदल लेता है। इंसान के शरीर पर अलग-अलग तरह के प्रभावों का असर डाल चपेट में लेकर जान पर भारी पड़ता है। बस यही सवाल दुनिया भर में अहम है कि संक्रमण की डोर वुहान की लैब से निकल कोरोना रूपी कठपुतली बन चीन की उंगलियों पर तो नहीं नाच रही और इस बहुरूपिये का असल मकसद जैविक युध्द तो नहीं?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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